-->

Breaking News

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 1:प्रबन्ध: परिचय, महत्त्व, प्रकृति एवं क्षेत्र

प्रबन्ध: परिचय, महत्त्व, प्रकृति एवं क्षेत्र
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“प्रबन्ध दूसरों से कार्य करवाने की कला है।” यह परिभाषा किसने दी है?
(अ) लारेन्स एप्पले
(ब) मेरी पार्कर फोलेट
(स) स्टेनले वेन्स
(द) लुईस ए. एलन
प्रश्न 2.
प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है –
(अ) उचित मात्रा में लाभार्जन
(ब) विभिन्न संसाधनों में गुणवत्ता
(स) यथोचित समय एवं स्थान पर उपयोग
(द) समाज के प्रत्येक घटक की इच्छापूर्ति
प्रश्न 3.
उदारीकरण के पश्चात् ‘प्रबन्ध का महत्व है –
(अ) सहायक
(ब) परम्परागत
(स) प्राथमिक
(द) आन्तरिक
प्रश्न 4.
प्रबन्ध की प्रकृति में सम्मिलित है –
(अ) प्रबन्ध की सार्वभौमिकता
(ब) प्रबन्ध पेशे के रूप में
(स) अ एवं ब दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 5.
प्रबन्ध के नवीन क्रियात्मक क्षेत्र में सम्मिलित नहीं है –
(अ) वातावरण प्रबन्ध
(ब) उद्यमिता प्रबन्ध
(स) थोक एवं फुटकर व्यापार प्रबन्ध
(द) परिवर्तन का प्रबन्ध
उत्तरमाला:
1. (ब)
2. (अ)
3. (स)
4. (स)
5. (अ)

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लारेन्स एप्पले की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
“अन्य व्यक्तियों के प्रयासों से परिणाम प्राप्त करना ही प्रबन्ध है।”
प्रश्न 2.
प्रबन्ध की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
  • प्रबन्ध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
  • प्रबन्ध मानवीय प्रयासों से सम्बन्धित है।
प्रश्न 3.
प्रबन्ध के दो सहायक उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
  • विभिन्न संसाधनों में गुणवत्ता उत्पन्न करना।
  • संसाधनों का यथोचित समय एवं स्थान पर उपयोग करना।
प्रश्न 4.
भावी पेशा किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधुनिक व्यावसायिक तकनीकों पर आधारित सेवा प्रदान करना भावी पेशा कहलाता है। जैसे – प्रबन्ध।
प्रश्न 5.
‘प्रबन्ध सर्वव्यापी है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध सर्वव्यापी है, क्योंकि आज प्रबन्ध प्रक्रिया के सिद्धान्तों एवं तकनीकों का प्रयोग सभी व्यावसायिक, गैर व्यावसायिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। बिना प्रबन्ध के कोई भी क्षेत्र विकास नहीं कर सकता है।
प्रश्न 6.
‘प्रबन्ध अपूर्व शक्ति है।’ कैसे?
उत्तर:
निश्चित प्रबन्धकीय योजनानुसार व्यक्तिगत जीवन या व्यावसायिक क्षेत्र में जब कार्य सम्पन्न किये जाते हैं, तो अभूतपूर्व सुखद परिणामों की प्राप्ति होती है, इसीलिए प्रबन्ध को अपूर्व शक्ति कहा जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रबन्ध की चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रबन्ध की चार विशेषताएँ निम्न हैं –
  1. प्रबन्ध एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है।
  2. प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित है।
  3. प्रबन्ध एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
  4. प्रबन्ध एक अदृश्य शक्ति है।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध के प्राथमिक उद्देश्य कौन – से हैं?
उत्तर:
प्रबन्ध के प्राथमिक उद्देश्य निम्नलिखित है –
  1. उचित लागत पर उत्पादों एवं सेवाओं का उत्पादन करना।
  2. उपभोक्ताओं को सन्तुष्टि प्रदान करने हेतु उत्पादों एवं सेवाओं का उचित मूल्य पर वितरण करना।
  3. उपक्रम के संसाधनों का संरक्षण करना।
  4. उपक्रम को उचित मात्रा में लाभ अर्जन करना तथा उत्तरोत्तर प्रगति करना।
प्रश्न 3.
उदारीकरण से पूर्व प्रबन्ध के चार महत्व समझाइये।
उत्तर:
  1. उदारीकरण से पूर्व बाजार का स्वभाव विक्रेता बाजार पर आधारित था।
  2. उदारीकरण से पूर्व प्रत्येक व्यावसायिक क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा केवल आन्तरिक उपक्रमों द्वारा ही पैदा की गई थी।
  3. उदारीकरण से पूर्व व्यवसाय का उद्देश्य अधिक लाभार्जन पर आधारित था।
  4. प्रतिस्पर्धा का स्वरूप एकाधिकार एवं सीमित था।
प्रश्न 4.
उदारीकरण के पश्चात् प्रबन्ध के चार महत्व समझाइये।
उत्तर:
  1. उदारीकरण के पश्चात् बाजार का स्वभाव क्रेता बाजार पर आधारित है।
  2. उदारीकरण के पश्चात् प्रत्येक व्यावसायिक क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा केवल आन्तरिक उपक्रमों द्वारा ही नहीं बल्कि बाह्य उपक्रमों से भी पैदा हुई है।
  3. उदारीकरण के पश्चात् व्यवसाय का उद्देश्य हित रखने वाले सभी पक्षकारों को सन्तुष्टि प्रदान करना है।
  4. उदरीकरण के पश्चात् प्राथमिकता के आधार पर मानवीय संसाधनों पर ध्यान दिया जाता है।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध विज्ञान एवं कला के रूप में है। समझाइए।
उत्तर:
प्रबन्ध विज्ञान एवं कला के रूप में है क्योंकि इसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूपों को अलग नहीं किया जा सकता। विज्ञान के रूप में कारण एवं परिणाम का सम्बन्ध, नियमों का परीक्षण आदि विशेषतायें तथा कला के रूप में व्यावहारिक ज्ञान, निपुणता, रचनात्मक उद्देश्य एवं अभ्यास द्वारा विकास आदि विशेषतायें प्रबन्ध में सम्मिलित होती हैं।
प्रश्न 6.
प्रबन्ध ‘बहु – विधा’ के रूप में है। समझाइए।
उत्तर:
ज्ञान के जिस विषय का अध्ययन किया जाता है उसे विधा की संज्ञा दी जाती है। प्रबन्ध अपने आप में एक स्वतन्त्र विधा है किन्तु इसके सिद्धान्तों को विकसित करने में भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, मानव शास्त्र, इतिहास, व्यवहार विज्ञान, इलेक्ट्रोनिक्स आदि विधाओं के योगदान के कारण इसे बहु-विधा के रूप में माना जाता है। अर्थशास्त्र ने प्रबन्ध में निर्णय प्रक्रिया, राजनीति शास्त्र ने संगठन के सिद्धान्त, जीव विज्ञान व मनोविज्ञान ने व्यक्ति के व्यवहार को समझने, मानव शास्त्र ने नैतिक मूल्यों व व्यावसायिक नैतिकता से सम्बन्धित सिद्धान्तों के विकास में योगदान दिया है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रबन्ध की परिभाषा देते हुए इसके उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्रबन्ध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु नियोजन, संगठन, नियुक्ति, निर्देशन एवं नियन्त्रण की प्रक्रिया है। प्रबन्ध का प्रयोग सर्वव्यापक एवं सार्वभौमिक है इसलिए विभिन्न विद्वानों ने अलग – अलग तरीके व दृष्टिकोण से परिभाषित किया है, जिनकी कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं। मेरी पार्कर फोलेट के अनुसार – “प्रबन्ध दूसरों से कार्य करवाने की कला है।” W.F. टेलर के अनुसार – “प्रबन्ध यह जानने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं और तत्पश्चात् यह सुनिश्चित करना है कि वह कार्य सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्ण विधि से किया जाये।”
थिरोफ, क्लेकैम्प एवं ग्रीडिंग के शब्दों में,”प्रबन्ध नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण द्वारा संस्था के संसाधनों के आवंटन की प्रक्रिया है, ताकि ग्राहकों की इच्छित वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन कर संस्था के उद्देश्यों को पूरा किया जा सकें। इस प्रक्रिया में कार्य का निष्पादन प्रतिदिन परिवर्तनशील व्यावसायिक वातावरण में संगठन के कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है।”उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रबन्ध एक कला एवं विज्ञान है जो अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाने, लागतों को कम करने, मानवीय प्रयासों की सहायता से संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में नियोजन से लेकर नियन्त्रण तक समग्र क्रियाओं में निहित है।
प्रबन्ध के उद्देश्य –
उद्देश्य, किसी भी क्रिया के अपेक्षित परिणाम होते हैं। प्रबन्ध भी कुछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्य करता है। प्रबन्ध को इन सभी उद्देश्यों को ढंग एवं दक्षता से पाना होता है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से प्रबन्ध के उद्देश्यों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है –
(i) संगठनात्मक उद्देश्य –
प्रबन्ध, संगठन के लिए उद्देश्यों का निर्धारण एवं उनको पूरा करने के लिए उत्तरदायी होता है। इसे विभिन्न क्षेत्रों के अनेक उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है तथा हित रखने वाले सभी पक्षों, जैसे – अंशधारी, कर्मचारी, ग्राहक, सरकार आदि के हितों को ध्यान में रखना होता है। किसी भी व्यावसायिक संगठन का प्रमुख उद्देश्य अपने लाभों में वृद्धि करना होता है। प्रमुख संगठनात्मक उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
(a) अपने आप को जीवित रखना –
किसी भी व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने अस्तित्व को बनाये रखना होता है। प्रबन्ध को संगठन के बने रहने की दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए संगठन को पर्याप्त धन अर्जित करना होगा जिससे कि लागते पूर्ण हो सकें।
(b) लाभ अर्जित करना –
किसी भी व्यवसाय के लिए उसका जीवित रहना ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि प्रबन्ध को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि संगठन लाभ कमाये। लाभ, उद्यम के निरन्तर सफल संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा का कार्य करता है। लाभ व्यवसाय की लागत एवं जोखिमों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है।
(c) बढ़ोत्तरी करना –
दीर्घ अवधि में संभावनाओं में वृद्धि व्यवसाय के लिए बहुत आवश्यक है। इसके लिए व्यवसाय का बढ़ना बहुत आवश्यक है। उद्योग में बने रहने के लिए प्रबन्ध को संगठन विकास की संभावना का पूरा लाभ उठाना चाहिए। व्यवसाय के विकास को विक्रय में वृद्धि, कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि या पूँजी के निवेश में वृद्धि आदि के रूप में मापा जा सकता है।
(ii) सामाजिक उद्देश्य –
प्रबन्ध को सामाजिक उद्देश्य समाज को लाभ पहुँचाना है। संगठन चाहे व्यावसायिक हो या गैर – व्यावसायिक, उसे समाज का अंग होने के कारण सामाजिक दायित्वों को पूरा करना भी आवश्यक होता है। इसका आशय है कि प्रबन्ध का उद्देश्य समाज के विभिन्न अंगों के लिए अनुकूल आर्थिक मूल्यों की रचना करना भी होता है। इसमें उत्पादन पर्यावरण के अनुकूल करना, रोजगार सुरक्षा प्रदान करना, कर्मचारियों के बच्चों के लिए विद्यालय, शिशु गृह आदि की सुविधाएँ प्रदान करना शामिल हैं।
(iii) व्यक्तिगत उद्देश्य –
संगठन ऐसे विभिन्न लोगों से मिलकर बनता है जिनकी व्यक्तिगत पृष्ठभूमि, अनुभव एवं उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं। ये सभी लोग अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संगठन का अंग बनते हैं। ये प्रतियोगी वेतन एवं अन्य आर्थिक लाभ, साथियों द्वारा मान्यता, व्यक्तिगत बढ़ोत्तरी एवं विकास जैसी उच्चस्तरीय आवश्यकताओं के रूपों में अलग-अलग होती है। प्रबन्ध को संगठन में तालमेल के लिए व्यक्तिगत उद्देश्यों का संगठन के उद्देश्यों के साथ मिलान करना होता है।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध के महत्व को समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध का महत्व:
संस्था चाहे छोटी हो या बड़ी, व्यावसायिक हो अथवा गैर – व्यावसायिक, बिना सुचारु प्रबन्ध के अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकती है। इसी प्रकार चाहे कोई देश हो या कोई भी आर्थिक प्रणाली हो, सभी में समान रूप से प्रबन्ध का महत्व है। व्यवसाय में प्रबन्ध का और भी अधिक महत्व है। व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है जिसमें विभिन्न साधनों के प्रयोग से उत्पादन और विपणन किया जाता है। इसके समुचित प्रबन्ध के द्वारा ही व्यावसायिक क्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में उर्विक का कथन प्रबन्ध के महत्व को प्रदर्शित करता है, “कोई सिद्धान्त, वाद अथवा राजनीतिक कल्पना सीमित मानवीय तथा भौतिक साधनों के उपयोग से एवं कम प्रयत्न द्वारा अधिक उत्पादन सम्भव नहीं बना सकते। यह केवल प्रभावी प्रबन्ध से ही सम्भव है। इस अधिक उत्पादन के आधार पर जन – साधारण के उच्च जीवन स्तर, अधिक आराम तथा अधिक सुविधाओं की नींव रखी जा सकती है।”
आधुनिक व्यावसायिक जगत में प्रबन्ध के महत्व को निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
(i) लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक –
प्रबन्ध का कार्य संगठन के सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयासों को समान दिशा देना है। अत: यह संगठन के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
(ii) क्षमता वृद्धि में सहायक –
प्रबन्धक का लक्ष्य संगठन की क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निर्देशन, नियुक्तिकरण एवं नियन्त्रण के द्वारा लागत को कम करके उत्पादकता को बढ़ाना होता है। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि होती है।
(iii) गतिशील संगठन का निर्माण –
सामान्यतया देखने में आता है कि किसी भी संगठन में कार्यरत् लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि परिवर्तन होने पर उन्हें परिचित एवं सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं चुनौतीपूर्ण पर्यावरण में जाना होता है। प्रबन्ध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायक करता है जिससे संगठन अपनी प्रतियोगी क्षमता को बनाये रखकर गतिशील बना रहता है।
(iv) व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक –
अभिप्रेरणा एवं नेतृत्व के माध्यम से प्रबन्ध व्यक्तियों की टीम भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता के प्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता करता है। इससे वे अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों को भी प्राप्त कर सकते हैं।
(v) समाज के विकास में सहायक –
प्रबन्ध श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं को उपलब्ध कराने, रोजगार के अवसर देने, नयी तकनीकों को अपनाने, बुद्धि एवं विकास के रास्ते पर चलने में सहायक होता है। इससे समाज के विकास में सहायता मिलती है।
(vi) कटु प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सहायक –
आज के समय में प्रत्येक व्यावसायिक क्षेत्र प्रतिस्पर्धी हो गया है। यह प्रतिस्पर्धा केवल आन्तरिक उपक्रमों द्वारा ही नहीं बल्कि बाह्य उपक्रमों से भी पैदा हुई है। ऐसी अवस्था में उपक्रम को प्रतिस्पर्धी बनाना प्रबन्ध का महत्वपूर्ण कार्य है। प्रतिस्पर्धी का सामना करने के लिए आवश्यक है कि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद निर्माण और कीमत भी तुलनात्मक रूप में कम हो। यह प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव हो सकता है।
(vii) देश की समृद्धि के लिए –
जब प्रबन्ध न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन सम्भव बनाता है, उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करता है, श्रम समस्याओं को सुलझाते हैं एवं समाज के विभिन्न अंगों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को भली-भाँति निभाते हैं, तो निश्चय ही राष्ट्र समृद्धि की ओर अग्रसर होता है। विश्व के अनेक राष्ट्रों ने अल्पावधि में जो प्रगति की है, वह इसका उदाहरण है।
प्रश्न 3.
प्रबन्ध की सार्वभौमिकता का अर्थ बताते हुये इसके पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
प्रबन्ध की सार्वभौमिकता:
सार्वभौमिकता का तात्पर्य किसी ज्ञान का सर्वत्र एक समान रूप से लागू होना होता है। प्रबन्ध की उपयोगिता सार्वभौमिक है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रबन्ध के सामान्य सिद्धान्त धार्मिक, राजनैतिक तथा अन्य सभी क्षेत्रों पर लागू होते हैं। कोई भी संस्था जिसका उद्देश्य सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना है, उन लक्ष्यों को बिना नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय तथा नियन्त्रण के प्राप्त नहीं कर सकती है। प्रबन्ध की सार्वभौमिकता के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ हैं – एक पक्ष में, दूसरी विपक्ष में।
सार्वभौमिकता के पक्ष में तर्क – थियो हैमन ने कहा है, “प्रबन्ध के सिद्धान्त लागू किये जा सकते हैं। इसके पक्ष में निम्न तर्क दिये हैं –
(i) प्रबन्ध की प्रक्रिया का प्रयोग सभी तरह के संगठनों एवं सभी देशों में समान रूप से होता है। प्रबन्ध की प्रक्रियाओं में नियोजन, संगठन, सेविवर्गीय क्रियाएँ, निर्देशन एवं नियन्त्रण आदि सम्मिलित होते हैं।
(ii) प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं। यद्यपि उन सिद्धान्तों का प्रयोग करते समय देश या संगठन विशेष की परिस्थितियों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
उपरोक्त विचारों के अनुसार प्रबन्ध सार्वभौमिक है अर्थात् संगठन चाहे. आर्थिक हो, सामाजिक हो या राजनैतिक, प्रबन्ध की क्रियाएँ सभी में समान रूप से लागू होती है। प्रभावी कार्य निष्पादन के लिए प्रबन्ध सभी संगठनों के लिए आवश्यक होता है। इसमें लोच होती है, इसलिए इसे संस्थाओं में व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
सार्वभौमिकता के विपक्ष में तर्क –
स्टीफन राबिन्सन के अनुसार, प्रबन्ध में पाँच दर्जन से अधिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। यद्यपि इनमें से अधिकांश परिस्थितियों के अनुरूप लागू होते हैं, किन्तु इनको सार्वभौमिक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि सार्वभौमिकता के परीक्षण में ये खरे नहीं उतरे हैं। विभिन्न शोधों से भी इस बात की पुष्टि हुई है कि अमेरिका में प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्तों को विश्व के सभी देशों में समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। हॉलैण्ड के एक शोधकर्ता गीर होस्टेड ने 1980 के दशक में 40 देशों की प्रबन्ध प्रणालियों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि मानवीय विशेषताएँ विभिन्न देशों में अलग – अलग हैं, इसलिए अमेरिकी प्रबन्ध सिद्धान्तों को सर्वत्र लागू नहीं किया जा सकता है। केवल यही नहीं, बल्कि किसी एक प्रबन्ध सिद्धान्त को एक ही. देश में दो अलग तरह के उपक्रमों में समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। प्रबन्ध के किसी भी प्रकार के सिद्धान्तों को लागू होना या न होना देश या संगठन की संस्कृति, संगठन का उद्देश्य एवं संगठन का प्रबन्धकीय दर्शन आदि कारकों पर निर्भर करता है।
प्रश्न 4.
प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र को समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र:
प्रबन्ध का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, जहाँ भी संगठित रूप से सामूहिक प्रयास होंगे, वहाँ प्रबन्ध की व्यापकता हमेशा विद्यमान होगी। प्रबन्ध के सामान्य सिद्धान्त नियोजन, संगठन, नियन्त्रण, निर्देशन, समन्वय तथा अभिप्रेरणाओं का उपयोग प्रत्येक उपक्रम एवं संस्थाओं में पेशेवर प्रबन्धकों द्वारा किया जाने लगा है, इसलिए इसे प्रबन्ध का क्रियात्मक क्षेत्र कहा जाता है।
अध्ययन की दृष्टि से क्रियात्मक क्षेत्र को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
(i) व्यावसायिक प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र – व्यावसायिक प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र निम्नवत है –
(a) उत्पादन प्रबन्ध –
उत्पादन प्रबन्ध एक महत्वपूर्ण भाग है जिसमें प्रबन्धक को कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं कि किस वस्तु का व कितनी मात्रा में उत्पादन करना है, उत्पादन किस प्रकार करना है, उत्पादन कब करना है आदि।
(b) सेविवर्गीय प्रबन्ध –
व्यावसायिक संस्था में समस्त क्रियाओं का संचालन कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता है। अतः सेविवर्गीय प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, कार्य मूल्यांकन, सामाजिक सुरक्षा, कार्यदशाओं में सुधार, विवादों का निपटारा आदि कार्यों को सम्मिलित किया जा सकता है।
(c) कार्यालय प्रबन्ध –
प्रबन्ध की इस शाखा के अन्तर्गत पत्र व्यवहार, सूचना प्राप्ति एवं प्रेषण, संस्था के भीतर सम्पर्क श्रृंखला बनाये रखना, विभिन्न प्रपत्रों व दस्तावेजों की देखभाल करना, सभी सौदों का रिकार्ड रखना आदि कार्यों को में सम्मिलित किया जाता है।
(d) वित्तीय प्रबन्ध –
वित्तीय प्रबन्ध की शाखा में व्यावसायिक संस्था की वित्तीय जरूरतों का सही अनुमान लगातर उसे उन स्रोतों से तथा इस प्रकार एकत्रित करना है कि इसकी लागत को कम-से-कम रखा जा सके, इसके उपयोग को अधिक से अधिक कुशल बनाया जा सके।
(e) सामग्री प्रबन्ध –
प्रबन्ध की यह शाखा सामग्री के क्रय, भण्डारण, उठाईधराई, स्टॉक, नियन्त्रण आदि क्रियाओं को इस क्षेत्र में सम्मिलित करती है।
(ii) गैर – व्यावसायिक प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र – गैर – व्यवसायिक प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
(a) शिक्षा प्रबन्ध – शिक्षा मानवीय विकास का महत्वपूर्ण अंग है। प्रबन्ध की यह शाखा शिक्षा प्रशिक्षण सुविधाओं के विकास, विस्तार और संचालन से सम्बन्ध रखती है।
(b) प्रतिरक्षा प्रबन्ध – देश की रक्षा के लिए सुरक्षा व्यवस्था का प्रबन्ध उत्तम होना चाहिए। प्रबन्ध की यह शाखा सैन्य संगठनों की स्थापना, संचालन तथा नियन्त्रण से सम्बन्ध रखती है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत बनी रहे।
(c) तकनीकी प्रबन्ध – देश की समृद्धि के लिए देश की तकनीकी का विकास परम आवश्यक है। प्रबन्ध की यह शाखा ज्ञान-विज्ञान को बढ़ावा देने वाली सेवाओं और क्रियाओं के विकास-विस्तार को अपने क्षेत्र में सम्मिलित करती है।
(d) जन उपयोगी सेवाओं का प्रबन्ध – पानी, बिजली, परिवहन, संचार, चिकित्सा आदि जनोपयोगी सेवाओं के अन्तर्गत आते हैं जिनके विकास द्वारा सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाया जा सकता है। प्रबन्ध की यह शाखा मानव उपयोगी सेवाओं का प्रबन्ध करती है।
(iii) नवीन क्रियात्मक क्षेत्र –
औद्यौगिक प्रगति के साथ-साथ प्रबन्ध की आवश्यकता वर्तमान में बढ़ती जा रही है जिसके कारण कई क्षेत्र महत्वपूर्ण हो गए हैं जो उद्योगों की प्रकृति पर निर्भर है। प्रबन्ध के नवीन क्रियात्मक क्षेत्र में निम्नलिखित प्रबन्ध सम्मिलित हैं –
(a) सार्वजनिक उपक्रमों का प्रबन्ध
(b) निर्यात – आयात प्रबन्ध
(c) उद्यमिता प्रबन्ध
(d) समय का प्रबन्ध
(e) सीखने का प्रबन्ध
(f) विपणन शोध प्रबन्ध
(g) परिवर्तन का प्रबन्ध
(h) लघु व्यवसाय प्रबन्ध
(i) जोखिम एवं सुरक्षा प्रबन्ध
(j) थोक एवं फुटकर व्यापार प्रबन्ध

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दो या दो से अधिक का जुड़ना कहलाता है –
(अ) बन्ध
(ब) प्रबन्ध
(स) अनुबन्ध
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 2.
अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाने की कला ही ….है।
(अ) संगठन
(ब) नियोजन
(स) प्रबन्ध
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 3.
“प्रबन्ध निर्णय करने तथा नेतृत्व प्रदान करने की कला, तथा विज्ञान है।” कथन है –
(अ) क्रीटनर का
(ब) लारेन्स एप्पले का
(स) प्रो. क्लग को
(द) लुईस ऐलन।
प्रश्न 4.
निम्न में कौन – मी प्रबन्ध की विशेषता है?
(अ) प्रबन्ध एक सामूहिक क्रिया है।
(ब) प्रबन्ध एक सामाजिक क्रिया है।
(स) प्रबन्ध एक सार्वभौमिक क्रिया है ।
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 5.
‘प्रबन्ध’ शब्द का प्रयोग किया जाता है –
(अ) एक पाठ्य विषय के रूप में
(ब) एक प्रक्रिया के रूप में
(स) एक अंश के रूप में।
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 6.
उपक्रम को उचित मात्रा में लाभार्जन करना उद्देश्य है –
(अ) प्राथमिक
(ब) सहायक
(स) व्यक्तिगत
(द) सामाजिक
प्रश्न 7.
प्रबन्ध उपयोगी है –
(अ) व्यावसायिक संस्थाओं में
(ब) धार्मिक संस्थाओं में
(स) सामाजिक संस्थाओं में
(द) उपरोक्तं सभी में।
प्रश्न 8.
प्रबन्ध को कहते हैं –
(अ) कला
(ब) विज्ञान
(स) कला एवं विज्ञान दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 9.
“चातुर्य के प्रयोग से वांछित परिणाम प्राप्त करना ही कला है।” यह कथन है –
(अ) अटेरी का
(ब) थियो हेमन को
(स) स्टीफन राबिसन का
(द) पीटर एफ. डुकर का
प्रश्न 10.
व्यावसायिक प्रबन्ध का क्रियात्मक क्षेत्र नहीं है –
(अ) विपणन प्रबन्ध
(ब) कार्यालय प्रबन्ध
(स) उत्पादन प्रबन्ध
(द) प्रतिरक्षा प्रबन्ध
उतरमाला:
1. (अ)
2. (स)
3. (स)
4. (द)
5. (ब)
6. (अ)
7. (द)
8. (स)
9. (अ)
10. (द)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सम्पूर्ण विश्व में मानव सभ्यता की प्रथम विकसित नगरीय सभ्यता किसे माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप की सिन्धु घाटी सभ्यता को।
प्रश्न 2.
विश्व प्रसिद्ध शोध – पत्रिका – नेचर में प्रकाशित शोध-पत्र के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता कितने वर्ष पूर्व अस्तित्व में आयी थी?
उत्तर:
8000 वर्ष पूर्व।
प्रश्न 3.
विभिन्न शोध अध्ययन के प्रमाणों से सिन्धु घाटी सभ्यता (इण्डस वैली) को मिस्र व मेसोपोटामिया सभ्यता से कितने वर्ष प्राचीन माना गया है?
उत्तर:
3000 वर्ष प्राचीन।
प्रश्न 4.
सभ्यता की जननी किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप को सभ्यता की जननी कहा जाता है।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध क्या है?
उत्तर:
प्रबन्ध लक्ष्यों को प्रभावी एवं दक्षतापूर्ण ढंग से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा करने की प्रक्रिया है।
प्रश्न 6.
मेरी पाकीर फोलेट ने प्रबन्ध को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
“प्रबन्ध दूसरों से कार्य करवाने की कला है।”
प्रश्न 7.
“प्रबन्ध औपचारिक रूप से संगठित समूहों के द्वारा एवं समूहों में कार्य करवाने की कला है।” यह कथन किस विद्वान द्वारा कहा गया है?
उत्तर:
हेराल्ड कुण्ट्ज।
प्रश्न 8.
“प्रबन्ध एक मानवीय प्रक्रिया है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध एक मानवीय प्रक्रिया है प्रबन्धकीय कार्य श्रेष्ठ या विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं, ऐसे व्यक्ति (प्रबन्धक) विशिष्ट ज्ञान, अनुभव वाले होते हैं।
प्रश्न 9.
“प्रबन्ध एक अदृश्य शक्ति है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध को देखा या छुआ नहीं जा सकता है। इसकी उपस्थिति की जानकारी केवल परिणामों के आधार पर हो सकती है। अत: इसे अदृश्य शक्ति माना जाता है।
प्रश्न 10.
प्रबन्ध के दो प्राथमिक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
  • उचित लागत पर उत्पादों एवं सेवाओं का उत्पादन करना।
  • उत्पादों एवं सेवाओं का उचित मूल्य पर वितरण करना।
प्रश्न 11.
लाभ अर्जित करना प्रबन्ध का किस प्रकार का उद्देश्य है?
उत्तर:
लाभ अर्जित करना, प्रबन्ध का प्राथमिक उद्देश्य है।
प्रश्न 12.
प्रबन्ध के व्यक्तिगत उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
संगठन में कार्यरत् कर्मचारियों की योग्यता, अनुभव, पृष्ठभूमि एवं आवश्यकताएँ अलग – अलग होती है। प्रबन्ध का संगठन में सन्तुलन बनाए रखने के लिए उनके व्यक्तिगत उद्देश्यों का ध्यान रखना होता है।
प्रश्न 13.
प्रबन्ध के दो सामाजिक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
  • उचित मूल्यों पर वस्तुओं को उपलब्ध कराना।
  • समाज को गुणवत्ता की वस्तुओं को उपलब्ध कराना।
प्रश्न 14.
प्रबन्ध को महत्वपूर्ण क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
प्रबन्ध को महत्वपूर्ण समझा जाता है क्योंकि प्रबन्ध द्वारा महत्वपूर्ण लक्ष्यों का निर्धारण एवं संसाधनों को अनुकूलतम उपयोग होता है।
प्रश्न 15.
देश में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया क्यों प्रारम्भ हुई?
उत्तर:
देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया गया।
प्रश्न 16.
भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया कब प्रारम्भ हुई थी?
उत्तर:
1990 के दशक में।
प्रश्न 17.
उदारीकरण से पूर्व प्रबन्ध के दो महत्व बताइए।
उत्तर:
  • बाजार का स्वभाव विक्रेता पर आधारित था।
  • व्यवसाय का उद्देश्य अधिक लाभार्जन पर आधारित था।
प्रश्न 18.
उदारीकरण के पश्चात् प्रबन्ध के दो महत्व बताइये।
उत्तर:
  • व्यवसाय का उद्देश्य हित रखने वाले सभी पक्षकारों को सन्तुष्टि प्रदान करना।
  • बाजार का स्वभाव क्रेता बाजार पर आधारित होना।
प्रश्न 19.
प्रबन्ध भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्यों उपयोगी है? दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
  • प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए।
  • संसाधनों का विकास एवं समुचित उपयोग के लिए।
प्रश्न 20.
नवप्रवर्तन को क्या आशय है?
उत्तर:
नवप्रवर्तन का आशय किसी नयी वस्तु का उत्पादन, जैसे – वसा – आधारित धोने के साबुन के स्थान पर कृत्रिम रूप से साफ करने वाला पदार्थ, किसी वस्तु में परिवर्तन करके उसे अधिक उपयोगी बनाना।
प्रश्न 21.
नवप्रवर्तन का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर:
नवप्रवर्तन का उद्देश्य मुख्य रूप से ग्राहकों को अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करना है।
प्रश्न 22.
नवप्रवर्तन में प्रबन्ध का क्या महत्व है?
उत्तर:
नवप्रवर्तन की समस्त क्रियाएँ प्रबन्ध द्वारा ही सम्पन्न की जाती हैं। जिस संस्था का प्रबन्ध नवप्रवर्तन पर जितना अधिक ध्यान देता है वह संस्था उतनी ही सफल होती है।
प्रश्न 23.
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) कब स्थापित हुई थी?
उत्तर:
सन् 1907 में।
प्रश्न 24.
भारत में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एवं सफल कम्पनी किसे माना जाता है?
उत्तर:
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO).
प्रश्न 25.
वर्तमान में प्रबन्ध के स्वभाव को कौन – कौन से स्वरूपों में देखा जा सकता है?
उत्तर:
वर्तमान में प्रबन्ध को बहु – विधा, विज्ञान, कला एवं सार्वभौमिक प्रक्रिया के स्वरूप में देखा जा सकता है।
प्रश्न 26.
“प्रबन्ध एक कला है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध एक कला है क्योंकि प्रत्येक प्रबन्धक, निर्णय लेने एवं कार्यवाही करने में अपने विशेष ज्ञान और कौशल का प्रयोग करता है।
प्रश्न 27.
“प्रबन्ध एक विज्ञान है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध एक विज्ञान है क्योंकि इसमें प्रबन्धक, निर्णय लेने और कार्यवाही करने में वैज्ञानिक तकनीकी को प्रयोग करता है।
प्रश्न 28.
प्रबन्धक क्या है। कला, विज्ञान या दोनों?
उत्तर:
प्रबन्ध कला एवं विज्ञान दोनों है।
प्रश्न 29.
पेशा क्या है?
उत्तर:
पेशे में वे क्रियाएँ शामिल होती हैं जिनमें विशेष ज्ञान एवं दक्षता की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 30.
सन् 1928 में कार सांडर्स ने पेशे को किस रूप में परिभाषित किया है?
उत्तर:
“प्रबन्ध सम्भवतः वह व्यवसाय है जो बौद्धिक अध्ययन एवं प्रशिक्षण पर आधारित है और जिसका उद्देश्य फीस या वेतन लेकर दूसरों को प्रवीण सेवाएँ देना है।”
प्रश्न 31.
पेशे की एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
सभी पेशे अपनी आचार संहिता में बंधे होते हैं।
प्रश्न 32.
मैक्फारलैण्ड ने पेशे की कितनी विशेषताएँ बतायी हैं?
उत्तर:
पाँच।
प्रश्न 33.
किस विद्वान द्वारा पेशों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा गया है और विभाजन में प्रबन्ध को होने वाला भावी पेशा बताया है?
उत्तर:
‘रीस’ ने।
प्रश्न 34.
स्थापित पेशा क्या है?
उत्तर:
ज्ञान की शाखा पर आधारित पेशे को स्थापित पेशा कहते हैं। जैसे – चिकित्सा, कानून।
प्रश्न 35.
प्रावधिक दक्षता पर आधारित पेशे को किस रूप में जाना जाता है?
उत्तर:
सीमान्त पेशा।
प्रश्न 36.
पेशेवर प्रबन्ध की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
  • पेशेवर ज्ञान एवं तकनीक के प्रति समर्पित होना।
  • आधुनिक प्रबन्धकीय तकनीकी का प्रयोग।
प्रश्न 37.
“प्रबन्ध के सिद्धान्त लागू किए जा सकते हैं” यह कथन किसका है?
उत्तर:
थियो हैमन का।
प्रश्न 38.
प्रबन्ध के किसी सिद्धान्त का लागू होना या न होना किन मुख्य कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
  • देश या संगठन की संस्कृति।
  • संगठन का उद्देश्य।
  • संगठन का प्रबन्धकीय दर्शन।
प्रश्न 39.
प्रबन्ध के ज्ञान के हस्तान्तरण का कोई एक तरीका बताइए।
उत्तर:
विकसित देशों के प्रबन्ध साहित्य के अध्ययन एवं प्राचीनतम प्रबन्ध व्यवस्था शोध द्वारा।
प्रश्न 40.
“प्रबन्ध एक सार्वभौमिक विज्ञान है जो वाणिज्य, उद्योग, राजनीति, धर्म युद्ध या जन कल्याण सभी पर समान रूप से लागू होता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
हेनरी फेयोल का।
प्रश्न 41.
व्यावसायिक प्रबन्ध के दो क्रियात्मक क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
  • उत्पादन प्रबन्ध
  • सेविवर्गीय प्रबन्ध
प्रश्न 42.
सामग्री प्रबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रबन्ध की यह शाखा सामग्री के क्रय, भण्डारण उठाई – धराई, स्टॉक, नियन्त्रण आदि क्रियाओं को अपने क्षेत्र में सम्मिलित करती है।
प्रश्न 43.
गैर – व्यावसायिक प्रबन्ध के दो क्रियात्मक क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
  • शिक्षा प्रबन्ध।
  • प्रतिरक्षा प्रबन्ध।
प्रश्न 44.
न्याय प्रबन्ध की शाखा किससे सम्बन्ध रखती है?
उत्तर:
कानूनों की विवेचना, अपराधों की सुनवाई तथा न्याय दिलाने में।
प्रश्न 45.
प्रबन्ध के दो नवीन क्रियात्मक क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
  • उद्यमिता विकास
  • जोखिम एवं सुरक्षा

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – 1)

प्रश्न 1.
पाषाण युग से वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में विभिन्न कालखण्डों में प्रयुक्त संसाधनों में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर:
पाषाण युग से वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी युग के विभिन्न कालखण्डों में प्रयुक्त संसाधन (सामग्री, पूँजी, पद्धतियाँ, मानव, मशीन, बाजार) लगभग समान ही रहे हैं, केवल उनके प्रयोग के तरीके, विधियाँ, पद्धतियाँ तथा मात्रा ही शोध, अनुभव और आवश्यकता के आधार पर बदलते रहे हैं।
प्रश्न 2.
‘प्रबन्ध’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध उद्देश्यों को प्रभावी एवं दक्षतापूर्ण ढंग से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरी कराने की प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियन्त्रण को सम्मिलित किया जाता है। हेराल्ड कूण्ट्ज के शब्दों में, “प्रबन्ध औपचारिक रूप से संगठित समूहों के द्वारा एवं समूहों में कार्य करवाने की कला है।”
प्रश्न 3.
“प्रबन्ध अधिकार एवं दायित्व की श्रृंखला के निर्माण की प्रक्रिया है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्धक दूसरों से कार्य करवाने हेतु अपने कुछ अधिकारों को अपने अधीनस्थों को सौंपते हैं। ये अधीनस्थ पुनः अपने कुछ अधिकारों को अपने अधीनस्थों को सौंपते हैं। फलतः प्रत्येक अधीनस्थ अपने अधिकारों के प्रति उत्तरदायी भी बन जाता है। इस प्रकार संस्था के प्रत्येक स्तर पर अधिकार एवं दायित्व की श्रृंखला का निर्माण हो जाता है।
प्रश्न 4.
प्रबन्ध के सहायक उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: प्रबन्ध के सहायक उद्देश्य निम्नवत् हैं –
  1. संसाधनों में गुणवत्ता उत्पन्न करना।
  2. संसाधनों का यथोचित समय एवं स्थान पर उपयोग करना।
  3. संसाधनों के उपयोग में सामंजस्य स्थापित करना जिससे सभी संसाधन एक – दूसरे के पूरक रूप में कार्य करें और कार्यक्षमता प्रभावशाली हो।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध के सामाजिक उद्देश्यों को समझाइए।
उत्तर:
व्यावसायिक या गैर व्यावसायिक सभी संगठनों का समाज का एक अंग होने के कारण इनके कुछ सामाजिक उत्तरदायित्व भी होते हैं। जैसे – पर्यावरण की तुलना के अनुकूल उत्पादन की तकनीक अपनाना, रोजगार के अवसर प्रदान करना, औषधालय एवं विद्यालयों की स्थापना करना।
प्रश्न 6.
प्रबन्ध के महत्व के प्रमुख बिन्दुओं को बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है –
  1. प्रबन्ध से कुशलता में वृद्धि होती है।
  2. प्रबन्ध सामूहिक
  3. प्रबन्ध समाज के विकास में सहायक होता है।
  4. प्रबन्ध एक ऐसी आधारशिला है जिस पर गतिशील संगठन तैयार होता है।
  5. प्रबन्ध संगठन में लगे लोगों के व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
प्रश्न 7.
“प्रबन्ध से कुशलता बढ़ती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक प्रबन्धक द्वारा उपलब्ध सभी संसाधनों का उपयोग मितव्ययिता एवं पूर्ण क्षमता के साथ किया जाता है। इससे कार्य करने की कुशलता बढ़ती है। इस कुशलता और मितव्ययिता के द्वारा प्रबन्धक संगठन के संसाधनों, जैसे – मानव, मशीन व माल आदि का कुशलतम उपयोग करने में सफल रहता है।
प्रश्न 8.
र्विक द्वारा प्रबन्ध के महत्व को किस प्रकार परिभाषित किया गया है?
उत्तर:
“कोई सिद्धान्त, वाद अथवा राजनीतिक कल्पना सीमित मानवीय तथा भौतिक साधनों के उपयोग से एवं कम प्रयत्न द्वारा अधिक उत्पादन सम्भव नहीं बना सकते। यह केवल प्रभावी प्रबन्ध से ही सम्भव है। इस अधिक उत्पादन के आधार पर जन – साधारण के उच्च जीवन स्तर, अधिक आराम तथा अधिक सुविधाओं की नींव रखी जा सकती है।”
प्रश्न 9.
देश के आर्थिक विकास में प्रबन्ध की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक विकास में प्रबन्ध का प्रमुख योगदान होता है। जब प्रबन्धक न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन सम्भव बनाते हैं, उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करते हैं, श्रमिकों की समस्याओं का समाधान करते हैं, अधीनस्थों तथा कर्मचारियों के साथ मानवीय व्यवहार करते हैं एवं समाज के सभी वर्गों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ठीक प्रकार से निभाते हैं, तो किसी देश का आर्थिक विकास निश्चित ही होगा।
प्रश्न 10.
कला क्या है? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
टेरी के अनुसार, “चातुर्य के प्रयोग से वांछित परिणाम प्राप्त करना ही कला है।” कला की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
  • कला इच्छित परिणामों को प्राप्त करने की विधि है।
  • कला व्यावहारिक अथवा अभ्यास पक्ष से सम्बन्धित होने के कारण निरन्तर अभ्यास से किसी कार्य को करने में इसके द्वारा दक्षता प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 11.
प्रबन्ध में कला की कौन – कौन – सी विशेषताएँ पायी जाती हैं?
अथवा
आप किस आधार पर कह सकते हैं कि “प्रबन्ध एक कला है?”
उत्तर:
प्रबन्ध में कला की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –
  1. प्रबन्ध अन्य कलाओं, जैसे – संगीत, नृत्य, चित्रकारी आदि की भाँति व्यक्तिगत गुणों पर आधारित है।
  2. प्रबन्ध में अन्य कलाओं की भाँति निरन्तर अभ्यास से दक्षता प्राप्त की जा सकती है।
  3. प्रबन्ध में अन्य कलाओं की भाँति सृजनात्मकता प्राप्त की जा सकती है जिसका उपयोग समस्याओं के समाधान में हो सकता है।
प्रश्न 12.
पेशा क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेशा एक ऐसा व्यवसाय है जिसके लिए विशिष्ट ज्ञान, दक्षता एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है तथा इस दक्षता का प्रयोग समाज के व्यापक हितों के लिए किया जाता है और प्रयोग की सफलता केवल मुद्रा अर्जन में नहीं मापी जाती है।
प्रश्न 13.
एक पेशेवर प्रबन्ध की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
  • पेशेवर ज्ञान एवं तकनीक के प्रति समर्पित होना।
  • आधुनिक प्रबन्धकीय तकनीकों का प्रयोग करना।
  • व्यक्तिगत स्वेच्छाचारिता के स्थान पर टीम भावना पर बल देना।
  • परिवर्तन एवं परिवर्तन प्रबन्ध हेतु तैयार करना आदि।
प्रश्न 14.
प्रबन्ध के ज्ञान के हस्तान्तरण के लिए कौन-कौन विधि अपनायी जा सकती है?
उत्तर:
प्रबन्ध के ज्ञान हस्तान्तरण के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जा सकती हैं –
  1. विकसित देशों के प्रबन्ध साहित्य के अध्ययन एवं प्रचीनतम प्रबन्ध व्यवस्था के शोध द्वारा।
  2. अविकसित देशों के प्रबन्धकों को विकसित देशों में प्रशिक्षण द्वारा।
  3. विकसित देशों के प्रबन्धकीय परामर्शदाताओं द्वारा।
  4. कम विकसित देशों में व्यवसाय करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के वृत अध्ययन द्वारा।
प्रश्न 15.
सेविवर्गीय प्रबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी भी संस्थान के कर्मचारी महत्वपूर्ण घटक होते हैं, इसलिए उनके कुशल प्रबन्धन की बहुत ही आवश्यकता होती है। सेविवर्गीय प्रबन्ध में कर्मचारियों की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, कार्य मूल्यांकन, योग्यता अंकन, श्रम कल्याण, सामाजिक सुरक्षा, विवादों के निपटारे आदि कार्यों को अपने क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 16.
गैर – व्यावसायिक प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्रों को बताइए।
उत्तर:
गैर – व्यावसायिक प्रबन्ध के क्रियात्मक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
  1. जनपयोगी सेवाओं का प्रबन्ध
  2. वातावरण प्रबन्ध
  3. शिक्षा प्रबन्ध
  4. प्रतिरक्षा प्रबन्ध
  5. न्याय प्रबन्ध
  6. तकनीकी प्रबन्ध
प्रश्न 17.
प्रबन्ध के नवीन पाँच क्रियात्मक क्षेत्रों को बताइए।
उत्तर:
  • सार्वजनिक उपक्रमों का प्रबन्ध
  • जोखिम एवं सुरक्षा
  • विपणन शोध प्रबन्ध
  • परिवर्तन की प्रबन्ध
  • थोक एवं फुटकर व्यापार का प्रबन्ध आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – 2)

प्रश्न 1.
“प्रबन्ध विषय भी इतना ही प्राचीन है जितना मानव सभ्यता का विकास।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता लगभग 8000 वर्ष पूर्व की मानी जाती है जो नगरीय सभ्यता कही जाती है, जहाँ का विकास भी श्रेष्ठ था। इसी सभ्यता में विशाल अन्नागार, वस्त्र निर्माण, लोथल में बन्दरगाह की स्थापना एवं आस – पास के देशों से व्यापार करना जो बिना प्रबन्ध के असम्भव है। मिस्र के पिरामिड, कम्बोडिया का प्राचीनतम विशाल हिन्दू मन्दिर एवं विश्व की अनेक प्राचीन धरोहरों का अवलोकन करने पर हमें उनके निर्माण एवं प्रयोग के विवरण पर आश्चर्य होता है। इसका तात्पर्य है कि प्राचीनतम सभ्यताओं के निर्माण एवं विकास में प्रबन्ध का प्रयोग हुआ था। अतः प्रबन्ध विषय भी इतना ही प्राचीन है जितना मानव सभ्यता का विकास।
प्रश्न 2.
“प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने की तकनीक है।” समझाइए।
उत्तर:
किसी भी संस्था का प्रबन्धक वह व्यक्ति होता है जो उस संस्था को संचालित करने के लिए नीतिनिर्धारण, नियोजन एवं निर्णयन का कार्य करता है। वह अपने द्वारा लिए गये निर्णयों को लागू कराने के लिए संस्था में कार्य करने वाले अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उनका मार्गदर्शन करता है। प्रबन्धक एक अधिकारी के रूप में कार्य करता है जो अन्य व्यक्तियों से कार्य लेता है तथा उनके बीच बेहतर समन्वय बनाये रखने का प्रयास करता है। कोई एक व्यक्ति सभी कार्यों को नहीं कर सकता है। अतः एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता प्रत्येक संस्था को होती है जो कर्मचारियों के मध्य समन्वय रखकर संस्था के कार्यों को पूर्ण करा सके। निदेशन करने एवं अन्य व्यक्तियों से कार्य करवाने के कार्य को प्रबन्धक करता है। अतः यह कहना उचित ही होगा कि प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से कार्य कराने की तकनीक है।
प्रश्न 3.
प्रबन्ध की पारम्परिक एवं आधुनिक अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध की पारम्परिक अवधारणा –
पारम्परिक अवधारणा के अन्तर्गत प्रबन्ध को दूसरे लोगों से कार्य करवाने की कला के रूप में जाना जाता है। इसके अन्तर्गत प्रबन्ध कर्मचारियों को निर्देशित करता है तथा उनके सहयोग से संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है। लेकिन आधुनिक युग में प्रबन्ध की पारम्परिक अवधारणा को उपयुक्त नहीं माना जाता है।
प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा –
प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा के अनुसार मानव एवं भौतिक संसाधनों को इस प्रकार प्रयोग किया जाता है जिससे संगठन के उद्देश्यों को पूर्ण रूप से, शीघ्रतापूर्वक एवं बेहतर तरीके से प्राप्त किया जा सकता हो। इस अवधारणा में प्रबन्ध के अन्तर्गत संगठन, नियोजन, नियुक्तिकरण, नियन्त्रण एवं निर्देशन को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 4.
प्रबन्ध की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(i) प्रबन्ध सर्वव्यापी है –
संगठन में सभी क्रिया-कलापों को सुचारु एवं व्यवस्थित रूप में संचालित करते रहने के लिए प्रबन्ध आवश्यक होता है। यदि किसी क्रिया – कलाप से प्रबन्ध को हटा दिया जाए, तो उसकी सफलता की सम्भावनाएँ शून्य हो जाती हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध सर्वव्यापी क्रिया है।
(ii) प्रबन्ध एक अमूर्त शक्ति है –
प्रबन्ध एक अमूर्त शक्ति है जो दिखाई तो नहीं देती, लेकिन इसकी उपस्थिति को संगठन के कार्यों के रूप में अनुभव किया जा सकता हैं। संगठन में प्रबन्ध के प्रभाव का आभास पूर्व में बनाई गई योजनाओं के अनुसार लक्ष्यों की प्राप्ति, प्रसन्न एवं संतुष्ट कर्मचारी तथा प्रत्येक स्थान पर समुचित व्यवस्था के रूप में होता है।
प्रश्न 5.
“प्रबन्ध एक अदृश्य शक्ति है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध एक अदृश्य शक्ति है क्योंकि इसे देखा एवं छुआ नहीं जा सकता है किन्तु इसके प्रयासों के परिणाम के आधार पर इसकी उपस्थिति का स्वत: अनुमान हो जाता है। जब संस्था में सभी कार्य सुचारू रूप से होते रहते हैं, मानवीय संसाधनों की सन्तुष्टि तथा संस्था में सौहार्दपूर्ण कार्य का वातावरण होता है, तब प्रबन्ध की शक्ति की उपस्थिति का सहज ही अनुमान हो जाता है। जब संस्था असफलता की ओर जाती है, तो इस अदृश्य शक्ति का अनुमान प्रबन्ध की अनुपस्थिति से लगाया जाता है।
प्रश्न 6.
प्रबन्ध के सामाजिक उद्देश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सामाजिक उद्देश्य –
प्रबन्ध के सामाजिक उद्देश्यों का सम्बन्ध समाज के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं पर्यावरण आदि से है। सभी संगठन समाज का ही अंग होते हैं। अतः प्रबन्ध का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने कार्यों से समाज को भी लाभ पहुँचाए।
इसके लिए प्रबन्ध समाज के लिए निम्नलिखित प्रकार से सुविधायें उपलब्ध कराता है –
  1. प्रबन्ध रोजगार के अवसर पैदा करता है।
  2. उचित मूल्य पर उच्च गुणवत्ता की वस्तुएँ उपलब्ध कराने का प्रयास करता है।
  3. सामूहिक योजनाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है।
  4. शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए सहायता प्रदान करता है।
  5. प्रबन्ध औषधालयों की स्थापना एवं संचालन करता है।
  6. कर्मचारियों एवं अन्य लोगों के बच्चों के लिए विद्यालयों की स्थापना करके उनका संचालन करता है।
प्रश्न 7.
आधुनिक व्यावसायिक जगत में प्रबन्ध के महत्व को समझाइए।
अथवा
आधुनिक व्यावसायिक जगत में प्रबन्ध की आवश्यकता बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध का महत्व – आधुनिक व्यावसायिक जगत में प्रबन्ध के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं में बताया जा सकता है –
(i) लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक –
प्रबन्ध का कार्य संगठन के सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत प्रयासों को समान दिशा देना है। अतः यह संगठन के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
(ii) क्षमता वृद्धि में सहायक –
प्रबन्धक का लक्ष्य संगठन की क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निदेशन, नियुक्तिकरण एवं नियन्त्रण के द्वारा लागत को कम करके उत्पादकता को बढ़ाना होता है। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि होती है।
(iii) गतिशील संगठन का निर्माण –
सामान्यतया देखने में आता है कि किसी भी संगठन में कार्यरत् लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि परिवर्तन होने पर उन्हें परिचित एवं सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं चुनौतीपूर्ण पर्यावरण में जाना होता है। प्रबन्ध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायता करता है जिससे संगठन अपनी प्रतियोगी क्षमता को बनाये रखकर गतिशील बना रहता है।
प्रश्न 8.
क्या प्रबन्ध एक विधा है? समझाइए।
उत्तर:
ज्ञान के जिस विषय का अध्ययन किया जाता है, उसे विधा की संज्ञा दी जाती है। अत: यह कहा जा सकता है कि ज्ञान की प्रत्येक स्वतन्त्र शाखा विधा कहलाती है। जैसे- विज्ञान, वाणिज्य, कला, संगीत, विधि, इंजीनियरिंग, चिकित्सा आदि विधाएँ हैं। ये सभी ऐसी विधाएँ हैं जिनमें अध्ययन एवं ज्ञानार्जन करके विद्यार्थी विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक एवं औद्योगिक संगठनों में रोजगार प्राप्त करते हैं। इन्हीं विधाओं के समान प्रबन्ध भी ज्ञान की एक विधा है, जिसका अध्ययन करके विद्यार्थी विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक एवं औद्योगिक संगठनों में प्रबन्धक के रूप में एक अच्छा रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। इस विधा के अन्तर्गत प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं, जैसे – मानव संसाधन, विपणन, वित्त, विज्ञापन आदि का अध्ययन किया जाता है। प्रबन्ध का विद्यार्थी यह मानकर चलता है कि वह प्रबन्ध के बारे में विशेष अध्ययन कर रहा है तथा वह अध्ययन पूर्ण हो जाने पर प्रबन्धक के रूप में ही कार्य करेगा।
प्रश्न 9.
प्रबन्ध को कला मानने के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध को निम्नलिखित कारणों से कली माना जाता है –
  • प्रबन्ध के क्षेत्र, जैसे – वित्त, मानव संसाधन एवं विपणन सिद्धान्तों पर विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण तकनीकों को बताया है।
  • प्रबन्धक को प्रबन्ध से सम्बन्धित निर्णय लेने में कला की भाँति व्यक्तिगत कौशल का प्रयोग का होता है।
  • प्रबन्ध करने की कला को सीखा भी जा सकता है तथा उसको निरन्तर अभ्यास करने से प्रबन्धक के रूप में विशेषज्ञता प्राप्त की जा सकती है।
  • प्रबन्ध को भविष्य की प्रगति के लिए नई परिस्थितियों का सृजन करना होता है तथा नई – नई समस्याओं से निपटना होता है।
  • सर्वश्रेष्ठ प्रबन्धक वे होते हैं जो उच्च शिक्षित एवं प्रशिक्षित होने के साथ – साथ जिनमें उत्कृष्ट आकांक्षा, स्वप्रेरणा, सृजनात्मकता एवं कल्पनाशीलता जैसे व्यक्तिगत गुण होते हैं।
प्रश्न 10.
प्रबन्ध को विज्ञान मानने के क्या कारण है?
उत्तर:
प्रबन्ध को निम्नलिखित कारणों से विज्ञान माना जाता है –
(i) वैधता –
प्रबन्धकीय क्षेत्र में इसके सिद्धान्तों को वैज्ञानिक एवं सत्य पर आधारित माना जाता है। प्रबन्ध के सिद्धान्तों को सार्वभौमिक प्रयोग किया जाता है और उन्हें सभी परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है।
(ii) परीक्षण पर आधारित –
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का विकास अनेक वर्षों के तथ्यों के संग्रह, विश्लेषण एवं प्रयोगों के बाद हुआ है। अतः ये सिद्धान्त पूर्व परीक्षणों पर आधारित हैं।
(iii) आवश्यक क्रमबद्ध ज्ञान – प्रबन्ध एक आवश्यक एवं व्यवस्थित ज्ञान है। क्योंकि यह विशेषज्ञों के द्वारा लम्बे समय तक क्रमबद्ध रूप से किए गये प्रयोगों पर आधारित है।
प्रश्न 11.
प्रबन्ध एक विज्ञान के रूप में तथा कला के रूप में है। तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
तुलना
प्रबन्ध विज्ञान के रूप में प्रबन्ध कला के रूप में
ज्ञान के आधार पर दक्षता।
सिद्धान्तों का प्रतिपादन।
समस्याओं को पारिभाषित करना।
वैज्ञानिक प्रतिरूप (मॉडल) के आधार पर निर्णय।
अभ्यास के आधार पर दक्षता।
सिद्धान्तों का उपयोग।
समस्याओं की व्याख्या करना।
अंतर्ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर निर्णय।
प्रश्न 12.
पेशे का आशय स्पष्ट करते हुए इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पेशे का आशय – पेशे का आशय उस आर्थिक क्रिया से है जिसमें एक व्यक्ति अपनी कुशलता और प्राप्त ज्ञान के द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा करता है।
पेशे की विशेषताएँ –
  • सेवा का उद्देश्य – पेशे का मुख्य उद्देश्य अपने ग्राहक एवं संगठन में कार्य करने वाले कर्मचारी आदि की सेवा एवं उनका हित साधना है।
  • नैतिक आचार संहिता – सभी पेशों की एक नैतिक आचार संहिता होती है जिसका पालन उसके सभी सदस्यों को करना पड़ता है।
  • पेशागत परिषद – सभी पेशे किसी – न – किसी संस्था से जुड़े होते हैं, जो कार्य करने हेतु प्रमाण – पत्र प्रदान करती है।
  • अवरोधित प्रवेश – किसी भी पेशे में प्रवेश करने के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता का होना आवश्यक होता है।
प्रश्न 13.
क्या आप सोचते हैं कि प्रबन्ध में एक सम्पूर्ण पेशे की विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
प्रबन्ध, पेशे के सिद्धान्तों को पूरी तरह पूरा नहीं करता है, लेकिन इसमें पेशे की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –
  1. पूरे विश्व में प्रबन्ध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसित हुआ है। यह ज्ञान के व्यवस्थित समूह पर आधारित है जिसके भली – भाँति पारिभाषिक सिद्धान्त हैं तथा यह व्यवसाय की विभिन्न परिस्थितियों पर आधारित है।
  2. किसी भी व्यावसायिक इकाई में किसी भी व्यक्ति को प्रबन्धक नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन प्रबन्ध का ज्ञान एवं विशेष डिग्री होने पर अच्छा माना जाता है।
  3. भारत में प्रबन्ध के क्षेत्र में कार्यरत् लोगों को एक संगठन ए.आई.एम.ए. है जिसने आचार संहिता भी बनाई है, लेकिन इसकी सदस्यता वैधानिक रूप से आवश्यक नहीं है।
  4. प्रबन्ध का मूल उद्देश्य संगठन को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करना है। अत: प्रबन्ध संगठन के समाज सेवा करने के उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक होता है।
प्रश्न 14.
पेशे के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पेशे के विभिन्न स्वरूप निम्नवत् है –
  1. स्थापित पेशा – ज्ञान की शाखा पर आधारित पेशा। जैसे – चिकित्सा।
  2. नवीन पेशी – नये विषयों पर आधारित पेशा। जैसे – रसायन शास्त्र।
  3. अर्द्ध पेशा – प्राविधिक ज्ञान एवं अभ्यास पर आधारित पेशा। जैसे – नर्स, प्रयोगशाला सहायक।
  4. भावी पेशा – आधुनिक व्यावसायिक तकनीकों पर आधारित पेशा। जैसे – प्रबन्ध।
  5. सीमान्त पेशा – प्राविधिक दक्षता पर आधारित पेशा। जैसे – ड्राफ्टमैन।
प्रश्न 15.
प्रबन्ध की सार्वभौमिकता के पक्ष में थियो हैमन द्वारा दिये गये तर्को को बताइये।
उत्तर:
थियो हैमन ने कहा है, “प्रबन्ध के सिद्धान्त लागू किये जा सकते हैं।”
इसके पक्ष में निम्न तर्क दिए हैं –
  • प्रबन्ध की प्रक्रिया (नियोजन, संगठन, सेविवर्गीय क्रियायें, निर्देशन, नियन्त्रण) सभी प्रकार के संगठनों एवं सभी देशों में समान रूप से पायी जाती हैं।
  • प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक है। यद्यपि उन सिद्धान्तों का प्रयोग करते समय देश या संगठन विशेष की परिस्थिति को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
प्रश्न 16.
प्रबन्ध ज्ञान के हस्तान्तरण में किन तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है?
उत्तर:
प्रबन्ध ज्ञान के हस्तान्तरण में निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है –
  • प्रबन्ध के वे सिद्धान्त जो सार्वभौमिक है और मानवीय व्यवहार का प्रभाव नगण्य है, तो उनको पूर्णतः हस्तान्तरित किया जा सकता है। जैसे – नियोजन का सिद्धान्त, पूर्वानुमान का सिद्धान्त आदि।
  • प्रबन्ध के वे सिद्धान्त जो मानवीय व्यवहार से प्रभावित होते हैं और सार्वभौमिक नहीं है, उन्हें हस्तान्तरित करने के लिए देश एवं संगठन को ध्यान में रखना आवश्यक है, जैसे – निर्देशन के सिद्धान्त, अभिप्रेरणा के सिद्धान्त, नेतृत्व के सिद्धान्त आदि।
प्रश्न 17.
व्यावसायिक प्रबन्ध के दो क्रियात्मक क्षेत्रों को समझाइए।’
उत्तर:
  • वित्तीय प्रबन्थ –
    वित्तीय प्रबन्ध की शाखा में व्यावसायिक संस्था की वित्तीय जरूरतों का सही अनुमान लगाकर उसे उन स्रोतों से तथा इस प्रकार एकत्रित करना है कि इसकी लागत को कम – से – कम रखा जा सके, इसके उपयोग को अधिक से अधिक कुशल बनाया जा सके।
  • कार्यालय प्रबन्ध –
    प्रबन्ध की यह शाखा पत्र व्यवहार, सूचना प्राप्ति एवं प्रेषण, संस्था के भीतर सम्पर्क श्रृंखला बनाए रखना, विभिन्न प्रपत्रों एवं दस्तावेजों की देखभाल करना, सभी सौदों का रिकॉर्ड रखना आदि कार्यों को अपने क्षेत्र में सम्मिलित किया जा सकता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा क्या है? स्पष्ट रूप से समझाइए।
उत्तर:
प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा –
विद्यालय, अस्पताल, दुकानें एवं बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ये सभी संगठन हैं जिनके अलग – अलग उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को पाने के लिए सभी संगठन प्रयासरत रहते हैं। इन सभी संगठनों में प्रबन्ध एवं प्रबन्धक की समानता होती है, यह सभी संगठनों में पाये जाते हैं। सफल संगठन अपने उद्देश्यों को केवल संयोग से ही प्राप्त नहीं कर सकते हैं बल्कि वे सफल होने के लिए पूर्व निर्धारित एवं सोची – समझी प्रक्रिया को अपनाते हैं जिसे प्रबन्ध कहते हैं। संगठन चाहे कैसा भी हो लेकिन सभी के लिए प्रबन्ध आवश्यक होता है। संगठन में प्रबन्ध की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति का संगठन के सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में योगदान सुनिश्चित करने के लिए होती है।
प्रबन्ध एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है। प्रबन्ध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्यों को पाने के लिए कार्य करता है। इस प्रकार प्रबन्ध यह देखता है कि कार्य कम-से-कम साधनों एवं न्यूनतम लागत पर पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किये जायें। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा कराने की प्रक्रिया है। इस परिभाषा में आये निम्नलिखित शब्दों का विश्लेषण करने से प्रबन्ध को भली-भाँति समझने में आसानी होगी –
(i) प्रक्रिया
(ii) प्रभावी ढंग से
(iii) पूर्ण क्षमता से।
परिभाषा में प्रयुक्त प्रक्रिया से अभिप्राय है, प्राथमिक कार्य या क्रियाएँ जिन्हें प्रबन्ध कार्यों को पूरा कराने के लिए करता है। यह कार्य नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियन्त्रण हैं। कार्य को प्रभावी ढंग से करने का अभिप्राय दिये गये कार्य को सम्पन्न करने से है। प्रभावी प्रबन्ध का सम्बन्ध सही कार्य को करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्य को प्राप्त करने से है। लेकिन कार्य को सम्पन्न करना मात्र ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका एक और पहलू भी है और वह है कार्य को कुशलतापूर्वक अर्थात् पूर्ण क्षमता से पूर्ण करना।
कुशलता का अर्थ है – कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर पूरा करना। इसमें एक प्रकार की लागत – लाभ विश्लेषण एवं आगत एवं निर्गत के बीच सम्बन्ध होता है। यदि कम साधनों (आगतों) का उपयोग कर अधिकतम लाभ (निर्गत) प्राप्त करते हैं, तो इसे क्षमता में वृद्धि के रूप में देखा जाएगा। अर्थात् क्षमता में वृद्धि होगी यदि उसी लाभ के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाए एवं लागत पर कम व्यय हो।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध की विशेषताओं अथवा लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध की विशेषताएँ अथवा लक्षण –
प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित हैं –
(i) प्रबन्ध सार्वभौमिक है – संगठन चाहे आर्थिक हो, सामाजिक हो या राजनैतिक, प्रबन्ध की क्रियाएँ सभी में समान रूप से लागू होती हैं। प्रभावी कार्य निष्पादन के लिए प्रबन्ध सभी संगठनों के लिए आवश्यक होता है। इसमें लोच होती है इसलिए इसे संस्थाओं की व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
(ii) प्रबन्ध बहुआयामी है – प्रबन्ध एक जटिल क्रिया है, जिसके तीन प्रमुख परिमाण अग्रलिखित हैं –
(a) कार्य का प्रबन्ध – प्रबन्ध कार्यों को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक संसाधने एकत्रित करता है।
(b) लोगों का प्रबन्ध – प्रबन्ध सभी प्रकार के कार्यों के लिए व्यक्ति नियुक्त करता है जिससे संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके।
(c) परिचालन का प्रबन्ध – किसी भी संस्था का परिचालन वस्तु या सेवा के उत्पन्न करने हेतु किया जाता है। संस्था का परिचालन व्यक्तियों के प्रबन्ध या कार्य के प्रबन्ध से जुड़ा होता है क्योंकि व्यक्तियों द्वारा ही कच्चे माल को विक्रय योग्य माल में परिवर्तित किया जाता है।
(iii) प्रबन्ध एक सतत् प्रक्रिया है –
प्रबन्ध के बारे में यह धारणा है कि “प्रबन्ध कभी नहीं रुकता है। इसके अन्तर्गत संगठन, नियुक्ति, निर्देशन, नियोजन एवं नियन्त्रण का कार्य हमेशा चलता रहता है इसलिए यह एक सतत् प्रक्रिया है।
(iv) प्रबन्ध एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है –
प्रत्येक संगठन के कुछ आधारभूत उद्देश्य होते हैं जिनके कारण उसका अस्तित्व होता है। प्रबन्ध संगठन के विभिन्न लोगों के प्रयासों को संगठन के इन्हीं आधारभूत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक सूत्र में बाँधता है।
(v) प्रबन्ध एक सामूहिक प्रक्रिया है –
संगठन अलग-अलग आवश्यकता वाले विभिन्न लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक सदस्य संगठन में किसी – न – किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्मिलित होता है, लेकिन संगठन के सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करता है।
(vi) प्रबन्ध एक गतिशील कार्य है –
प्रबन्ध एक गतिशील कार्य होता है एवं दलते पर्यावरण में इसे अपने अनुरूप ढालना होता है। संगठन बाह्य पर्यावरण के सम्पर्क में आता है जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक तत्व सम्मिलित होते हैं, अत: सामान्यतया संगठन को, अपने आप को एवं अपने उद्देश्यों को पर्यावरण के अनुरूप बदलना होता है।
(vii) प्रबन्ध एक अमूर्त शक्ति है –
प्रबन्ध एक ऐसी अमूर्त शक्ति है जो दिखाई नहीं पड़ती लेकिन संगठन के कार्यों के रूप में जिसकी उपस्थिति को अनुभव किया जा सकता है। संगठन में प्रबन्ध की उपस्थिति का अनुभव योजनाओं के अनुसार लक्ष्यों की प्राप्ति, प्रसन्न एवं सन्तुष्ट कर्मचारी के स्थान पर व्यवस्था के रूप में होता है।
प्रश्न 3.
‘एक सफल उद्यमी अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं कुशलता से प्राप्त करता है।’ समझाइए।
उत्तर:
एक सफल उद्यमी वही होता है जो अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं कुशलतापूर्वक प्राप्त कर सके। लेकिन ऐसा करने के लिए उसे एक सफल प्रबन्धक होना अति आवश्यक है क्योंकि एक प्रबन्धक ही प्रभावपूर्णता एवं कुशलता में सन्तुलन स्थापित कर सकता है। प्रबन्ध के महत्व को हम निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं –
(i) प्रबन्ध सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है –
संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। प्रबन्ध का कार्य संगठन के सम्पूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत उद्देश्यों को समान दिशा देना है।
(ii) प्रबन्ध क्षमता में वृद्धि करता है –
प्रबन्ध का लक्ष्य संगठन की क्रियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निर्देशन, नियुक्तिकरण एवं नियन्त्रण के माध्यम से लागत को कम करना एवं उत्पादकता को बढ़ाना है। अतः इससे संगठन की क्षमता में वृद्धि होती है।
(iii) प्रबन्ध गतिशील संगठन का निर्माण करता है –
प्रत्येक संगठन का प्रबन्ध निरन्तर बदल रहे पर्यावरण के अन्र्तगत करना होता है। सामान्यत: यह देखा जाता है कि किसी भी संगठन में कार्यरत लोग अपरिचित, कम सुरक्षित एवं अधिक चुनौतीपूर्ण पर्यावरण की ओर जाना पसन्द नहीं करते हैं। लेकिन संगठन की प्रतियोगी श्रेष्ठता को बनाये रखने के लिए प्रबन्ध लोगों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायता करता है।
(iv) प्रबन्ध व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है –
प्रबन्धक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता हैं एवं उसका नेतृत्व करता है जिससे कि प्रत्येक सदस्य संगठन के सामूहिक उद्देश्यों में योगदान देते हुए व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करता है।
(v) प्रबन्ध समाज के विकास में सहायक होता है –
संगठन के विभिन्न घटकों के उद्देश्यों को पूरा करने की प्रक्रिया में प्रबन्ध संगठन के विकास में सहायक होता है तथा इसके माध्यम से ही समाज के विकास में सहायक होता है। यह श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं को उपलब्ध कराने, रोजगार के अवसर पैदा करने, नयी तकनीकों को अपनाने, बुद्धि एवं विकास के रास्ते पर चलने में सहायक होता है।
प्रश्न 4.
प्रबन्ध कला भी है एवं विज्ञान भी, समझाइए।
उत्तर:
व्यक्तिगत योग्यता, ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग करना ‘कला’ कहलाता है, जबकि विज्ञान एक क्रमबद्ध ज्ञान समूह है जो किन्हीं सामान्य सिद्धान्तों को स्पष्ट करता है।
प्रबन्ध कला के रूप में –
कला की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित है –
(i) सैद्धान्तिक ज्ञान का होना –
कला में यह माना जाता है कि कुछ सैद्धान्तिक ज्ञान पहले से है। विशेषज्ञों ने अपने – अपने क्षेत्रों में कुछ मूलभूत सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है जिनका प्रयोग एक विशेष प्रकार की कला में होता है।
(ii) व्यक्तिगत योग्यतानुसार उपयोग – कला के मूलभूत ज्ञान का उपयोग व्यक्तिगत रूप से अलग – अलग होता है इसलिए कला व्यक्तिगत धारणा है।
(ii) व्यवहार एवं रचनात्मकता पर आधारित – कला वर्तमान सिद्धान्त के ज्ञान का रचनात्मक उपयोग है इसलिए सभी कला व्यावहारिक होती हैं।
प्रबन्ध में कला की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती है .
(a) एक सफल प्रबन्धक, प्रबन्ध कला का उद्यम के दिन – प्रतिदिन के प्रबन्ध में उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है।
(b) कोई भी प्रबन्धक प्रबन्ध के सिद्धान्तों, वैज्ञानिक पद्धतियों एवं ज्ञान को दी गयी परिस्थिति एवं समस्या के अनुसार अपने विशिष्ट तरीके से प्रयोग करता है।
(c) एक प्रबन्धक प्राप्त ज्ञान का परिस्थितिजन्य वास्तविकता के अनुसार तथा व्यक्तिगत विभिन्नता एवं दक्षतानुसार उपयोग करता है। इससे प्रबन्ध की विभिन्न शैलियों का जन्म होता है।
प्रबन्ध, विज्ञान के रूप में –
विज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) क्रमबद्ध ज्ञान – समूह – विज्ञान, ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है। इसके सिद्धान्त कारण एवं परिणाम बीच के सम्बन्ध पर आधारित हैं।
(ii) परीक्षण पर आधारित सिद्धान्त – वैज्ञानिक सिद्धान्तों को अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है। इसके बाद नियंत्रित परिस्थितियों में बार – बार परीक्षण करके उनकी जाँच की जाती है।
(iii) व्यापक वैधता – वैज्ञानिक सिद्धान्त, वैधता एवं उपयोग के लिए सार्वभौमिक होते हैं। प्रबन्ध में विज्ञान की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –
(a) प्रबन्ध के अप्नने सिद्धान्त एवं नियम हैं जो समय के साथ – साथ ही विकसित हुए हैं। अत: यह क्रमबद्ध ज्ञान का समूह है।
(b) प्रबन्ध के सिद्धान्त विभिन्न संगठनों में बार – बार के परीक्षण एवं अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं।
(c) प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रयोग सार्वभौमिक नहीं होता है लेकिन ये प्रबन्धकों को मानक तकनीक प्रदान करते हैं जिन्हें विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है।
प्रबन्ध पूर्ण रूप से न तो कला है और न ही विज्ञान। यह दोनों की ही विशेषताएँ लिये हुए है।
प्रश्न 5.
क्या आप सोचते हैं कि प्रबन्ध में एक सम्पूर्ण पेशे की विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
प्रबन्ध एक पेशे के रूप में –
पेशे का अर्थ उस आर्थिक क्रिया से है जिसमें एक व्यक्ति अपनी विशेष कुशलता और प्राप्त ज्ञान के द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा करता है।
पेशे की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
  1. सेवा का उद्देश्य – पेशे का मूल उद्देश्य निष्ठा एवं प्रतिबद्धता है तथा अपने ग्राहकों के हितों की साधना है।
  2. अवरोधित प्रवेश – पेशे को प्रवेश परीक्षा अथवा शैक्षिक योग्यता द्वारा सीमित कर दिया जाता है। अत: इसमें सभी लोग प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
  3. पेशागत परिषद – सभी पेशे किसी – न – किसी परिषद सभा से जुड़े होते हैं जो इनमें प्रवेश का नियमन करते हैं। कार्य करने के लिए प्रमाण-पत्र जारी करते हैं एवं सभी सदस्यों के व्यवहार के लिए एक आचार – संहिता तैयार करके लागू करते हैं।
  4. नैतिक आचार संहिता – पेशे में प्रवेश करने वाले सभी लोगों के लिए एक नैतिक आचार – संहिता होती है, जो विशेष पेशे से सम्बन्धित सदस्यों के व्यवहार को दिशा देती है।
  5. परिभाषित ज्ञान का समूह – सभी पेशे भली – भाँति परिभाषित ज्ञान के समूह पर आधारित होते हैं जिसे शिक्षा से अर्जित किया जा सकता है।
प्रबन्ध में पेशे की उपर्युक्त सभी विशेषताएँ पूर्ण रूप से नहीं पायी जाती हैं, लेकिन प्रबन्ध में पेशे की निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –
  1. परिभाषित ज्ञान का समूह – पूरे विश्व में प्रबन्ध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसित हुआ है। यह ज्ञान के व्यवस्थित समूह पर आधारित है जिसके भली-भाँति परिभाषित सिद्धान्त हैं जो व्यवसाय की विभिन्न स्थितियों पर आधारित हैं।
  2. ज्ञान व प्रशिक्षण – प्रबन्ध करने के लिए या प्रबन्धक के रूप में कार्य करने के लिए किसी विशेष डिग्री या शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन यदि किसी व्यक्ति के पास प्रबन्ध करने से सम्बन्धित ज्ञान अथवा प्रशिक्षण है तो इसी को उचित योग्यता माना जाता है।
  3. नैतिक आचार – संहिता – भारत में प्रबन्ध में लगे लोगों के लिए कई संगठन हैं। जैसे-ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन। जिसने अपने सदस्यों के कार्यों के नियमन के लिए आचारसंहिता बनाई है लेकिन इन संगठनों का सदस्य बनना प्रबन्धकों के लिए कानूनन अनिवार्य नहीं है।
  4. सेवा का उद्देश्य – प्रबन्धक का उद्देश्य सामान्यतया अधिकतम लाभ कमाना होता है लेकिन यह तेजी से बदल रहा है। अत: यदि किसी संगठन के पास अच्छे प्रबन्धकों की टीम है जो क्षमतावान एवं प्रभावी है। तो वह स्वयं वही उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध कराकर समाज की सेवा कर रहा है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रबन्ध को पूर्ण रूप से पेशे का दर्जा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि इसमें पेशे की सभी विशेषताएँ नहीं पायी जाती हैं।
प्रश्न 6.
प्रबन्ध के किसी सिद्धान्त का लागू होना या न होना मुख्यतः किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर: प्रबन्ध के किसी सिद्धान्त का लागू होना या न होना मुख्यत: तीन कारकों पर निर्भर करता है –
(i) देश या संगठन की संस्कृति –
विश्व के विभिन्न देशों में सांस्कृतिक रूप से विविधता पायी जाती है जिससे प्रबन्ध के सभी सिद्धान्तों को सभी देशों पर लागू नहीं किया जा सकता है। केवल यही नहीं, प्रत्येक संस्कृति में उप – संस्कृतियाँ भी होती है, इसलिए एक ही देश के दो संगठनों की संस्कृति भी अलग-अलग हो सकती है जो प्रबन्ध के सिद्धान्तों को प्रभावित करती है। इसलिए प्रबन्ध को संस्कृतिपरक माना गया है।
(ii) संगठन का उद्देश्य –
व्यावसायिक संगठन एवं गैर-व्यावसायिक संगठन के उद्देश्यों में विभिन्नता पायी जाती है। यहाँ तक कि दो व्यावसायिक संगठनों के उद्देश्यों में भी अन्तर हो सकता है। उद्देश्यों में भिन्नता के कारण प्रबन्ध के सिद्धान्तों के प्रयोग में भी भिन्नता हो सकती है। शीटर ड्रकर के अनुसार, व्यावसायिक संगठन के सिद्धान्तों एवं दक्षताओं को गैर-व्यावसायिक संगठनों में हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है।
(iii) संगठन का प्रबन्धकीय दर्शन –
प्रबन्धकीय दर्शन में उन मान्यताओं एवं विश्वासों को शामिल किया जाता है जिसके आधार पर किसी संगठन का प्रबन्ध किया जाता है। संगठन में प्रबन्धकीय दर्शन उच्च स्तर प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित किया जाता है क्योंकि विभिन्न संगठनों का प्रबन्धकीय दर्शन अलग हो सकता है। इसलिए उनमें प्रबन्ध के अलग सिद्धान्त लागू होते हैं। एस.के. भट्टाचार्य ने शोध उपरान्त निष्कर्ष निकाला था कि भारत में पेशेवर प्रबन्धित तथा परिवार प्रबन्धित कम्पनियों के प्रबन्ध सिद्धान्तों में भिन्नता है। ये भिन्नताएँ प्रबन्धकीय दक्षता एवं गुण, कार्य-निष्पादन, परिणाम, नियोजन एवं निर्णय विधियों, प्रबन्ध रीतियों और निर्णय के सम्बन्ध में है।

Important Links

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Solutions in Hindi Medium

No comments

Thank you for your comment !!!