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RBSE Class 12 Business Studies Chapter 10 : अनुबन्ध: वैधानिक प्रावधान

अनुबन्ध: वैधानिक प्रावधान
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अनुबन्ध एवं अर्द्ध अनुबन्ध में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अनुबन्ध दो या दो से अधिक पक्षकारों (व्यक्तियों) के बीच किया गया ठहराव है, जो पक्षकारों के मध्ये वैधानिक दायित्वों एवं दायित्वों की उत्पत्ति करता है जबकि अर्द्ध अनुबन्ध कानून द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं। ये पक्षकारों पर कानून द्वारा थोपे जाते हैं।
प्रश्न 2.
प्रतिफल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रतिफल से तात्पर्य उस मूल्य से है, जो वचनदाता के वचन के वदले वचनग्रहीता द्वारा दिया जाता है।
प्रश्न 3.
मिथ्यावर्णन क्या है?
उत्तर:
जब कोई पक्षकार किसी असत्य बात को उसकी सत्यता में विश्वास रखते हुये वर्णन करता है तो इस प्रकार का कथन मिथ्यावर्णन कहलाता है।
प्रश्न 4.
उत्पीड़न की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 15 के अनुसार – “जब ठहराव करने के लिये एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को बाध्य करता है अर्थात कोई ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना जो भारतीय दण्ड विधाने द्वारा वर्जित है, अंथवा किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के लिये किसी सम्पत्ति को अवैध रूप से रोक लेना या रोकने की धमकी देना ही उत्पीड़न कहलाता है।”
प्रश्न 5.
क्या बीमा अनुबन्ध बाजी है?
उत्तर:
बीमा अनुबन्ध बाजी नहीं है, ये ठहराव वैध है।
प्रश्न 6.
अर्द्ध अनुबन्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अर्द्ध अनुबन्ध वह अनुबन्ध है जिसे पक्षकारों द्वारा आपसी वचनों का आदान – प्रदान करके नहीं किया जाता है। बल्कि कानून द्वारा पक्षकारों पर थोपा जाता है।
प्रश्न 7.
गारन्टी अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
गारन्टी अनुबन्ध एक ऐसा अनुबन्ध है जिसमें एक पक्षकार किसी दूसरे पक्षकार को यह वचन देता है कि किसी तृतीय पक्षकार के वचन का पालन नहीं करने या दायित्व का निर्वाह नहीं करने की दशा में वह स्वयं उसके वचन का पालन या दायित्व का निर्वाह कर देगा।
प्रश्न 8.
एजेन्ट कौन बन सकता है?
उत्तर:
कोई भी व्यक्ति एजेन्ट बन सकता है किन्तु अवयस्क या अस्वस्थ मस्तिष्क के व्यक्ति को एजेन्ट नियुक्त करना जोखिम भरा कार्य हैं।
प्रश्न 9.
निक्षेपी कौन होता है?
उत्तर:
वह व्यक्ति जो अपने माल का निक्षेप करता है उसे निक्षेपी कहते हैं।
प्रश्न 10.
गिरवीकर्ता कौन होता है?
उत्तर:
वह व्यक्ति जो माल को गिरवी रखने हेतु निक्षेप करता है, उसे गिरवीकर्ता कहते हैं।
प्रश्न 11.
व्यर्थ ठहराव की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
वह ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता है, व्यर्थ ठहराव कहलाता है।
प्रश्न 12.
क्या आत्महत्या की धमकी उत्पीड़न है?
उत्तर:
आत्महत्या की धमकी देना उत्पीड़न है क्योंकि ये भारतीय दण्ड संहिता के विरुद्ध है।
प्रश्न 13.
हानिरक्षा अनुबन्ध में कितने पक्षकार होते हैं?
उत्तर:
हानिरक्षा अनुबन्ध में हानिरक्षक तथा हानिरक्षाधारी दो पक्षकार होते हैं।
प्रश्न 14.
क्या बैंक लॉकर में आभूषण रखना निक्षेप अनुबन्ध है?
उत्तर:
बैक लॉकर में सुरक्षा के लिये आभूषण रखना निक्षेप अनुबन्ध है।
प्रश्न 15.
एजेन्ट तथा नौकर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
एजेन्ट को पारिश्रमिक, कमीशन या फीस के रूप में मिलता है जबकि नौकर को अपना पारिश्रमिक वेतन के रूप में मिलता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्ताव तथा प्रस्ताव की इच्छा में अन्तर बताइए।
उत्तर:
जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से किसी कार्य को करने या न करने के विषय में अपनी इच्छा इस उद्देश्य से प्रकट करता है कि उस कार्य को करने अथवा उस कार्य से विरत रहने की स्वीकृति प्राप्त हो, तो कहा जाता है कि पहले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के सम्मुख प्रस्ताव रखा है। लेकिन बातचीत के दौरान प्रस्ताव इच्छा की घोषणा मात्र करने से यह नहीं कहा जा सकता है कि व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के सम्मुख प्रस्ताव रखा है। किसी विचार का कथन मात्र कर देने से वह प्रस्ताव नहीं बनता है।
प्रश्न 2.
अनुबन्ध करने की क्षमता से क्या आशय है?
उत्तर:
अनुबन्ध करने की क्षमता से तात्पर्य पक्षकारों की अनुबन्ध करने की वैधानिक क्षमता से है। अनुबन्ध अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति जो वयस्क है और जो स्वस्थ मस्तिष्क का है तथा किसी राजनियम (जो उस पर लागू होता है) के द्वारा अनुबन्ध करने के अयोग्य घोषित नहीं कर दिया गया है।
प्रश्न 3.
कपट का अर्थ उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कपट का अर्थ:
अनुबन्ध अधिनियम की धारा 17 के अनुसार – “कपट से तात्पर्य किसी पक्षकार या उसके एजेन्ट द्वारा जानबूझकर अनुबन्ध के महत्वपूर्ण तथ्यों का मिथ्यावर्णन करना या उन्हें मिलाना ताकि दूसरे पक्षकार को धोखे में रखकर उसे अनुबन्ध करने के लिये प्रेरित कर लिया जाये।”
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – एक कपड़ा विक्रेता एक ग्राहक को सूती कपड़ा यह कहकर बेच देता है कि यह टेरीकोट है ग्राहक कपड़ा खरीद लेता है। यहाँ पर कपड़ा विक्रेता ने कपटपूर्ण व्यवहार किया है।
प्रश्न 4.
सांयोगिक अनुबन्ध पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सांयोगिक अनुबन्ध:
किसी कार्य के करने या न करने का ऐसा अनुबन्ध है। जिसमें वचनदाता अनुबन्ध के समपार्श्विक किसी विशिष्ट भावी अनिश्चित घटना के घटित होने या घटित नहीं होने पर उस अनुबन्ध को पूरा करने का वचन देता है। हानिरक्षा, गारन्टी तथा बीमा के अनुबन्ध सांयोगिक अनुबन्धों की श्रेणी में आते हैं। किन्तु उन्हें जनहित की दृष्टि से अधिनियम में स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिया गया है। इन्हें शर्तयुक्त अनुबन्ध भी कहते हैं।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण:
एक ग्राहक कपड़े की दुकान से पसन्दगी हेतु पाँच साड़ी घर ले जाता है। इन सभी साड़ियों को खरीदना या उनमें से एक साड़ी को खरीदना ग्राहक की पसन्दगी पर निर्भर करता है, यह एक सांयोगिक अनुबन्ध है।
प्रश्न 5.
अर्द्ध अनुबन्ध का क्या महत्व है?
उत्तर:
अर्द्ध अनुबन्ध कानून की दृष्टि से वास्तविक अनुबन्ध नहीं है, यह अनुबन्ध पक्षकारों द्वारा ठहराव किये बिना ही उत्पन्न हो जाते हैं। जिससे अनुबन्ध करने के अयोग्य पक्षकारों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले पक्षकार अयोग्य व्यक्ति की सम्पत्ति में से मूल्य या धनराशि प्राप्त करने के अधिकारी हो जाते हैं। जब कोई व्यक्ति अपने हित के लिये किसी दूसरे पक्ष को जो भुगतान के लिये वैधानिक रूप से उत्तरदायी हो, भुगतान कर देता है तो वह ऐसे भुगतान को वापस प्राप्त करने का अधिकारी होता है। यदि किसी व्यक्ति को गलती से अथवा उत्पीड़न के अन्र्तगत कोई धन अथवा वस्तु दे दी गयी। है तो उसे धन या वस्तु वापस करना होगा।
प्रश्न 6.
निक्षेप के विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तर:
निक्षेप प्रमुखत:
दो प्रकार के होते हैं –
  1. निःशुल्क निक्षेप – जब निक्षेप के लिये कोई शुल्क नहीं लिया जाता है अथवा पूर्ण रूप से नि:शुल्क होता है तो इसे नि:शुल्क निक्षेप कहते हैं।
  2. सशुल्क निक्षेप – निक्षेप के लिये कोई शुल्क लिया अथवा दिया जाता है तो उक्त सेवा अथवा लिये गये कार्य को सशुल्क निक्षेप कहते हैं।
प्रश्न 7.
गिरवी अनुबन्ध के आवश्यक तत्वों को बताइए।
उत्तर:
गिरवी अनुबन्ध के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं –
  1. गिरवी का अनुबन्ध केवल चल सम्पत्ति के सम्बन्ध में ही किया जा सकता है।
  2. माल का हस्तान्तरण ऋण लेते-देते समय अथवा ऋण देने के उचित समय के अन्दर हो जाना चाहिए।
  3. गिरवी अनुबन्ध में गिरवी रखी जाने वाली वस्तु विक्रय योग्य होनी चाहिए।
  4. गिरवी विद्यमान माल की ही हो सकती है।
  5. गिरवी रखी जाने वाली वस्तुयें विभक्त करने योग्य होनी चाहिये।
प्रश्न 8.
आवश्यकता द्वारा एजेन्सी क्या है?
उत्तर:
आवश्यकता द्वारा एजेन्सी:
आवश्यकता द्वारा भी एजेन्सी की स्थापना हो सकती है। जब प्रधान किसी को स्पष्ट रूप से अपना एजेन्ट नियुक्त नहीं करता, परन्तु परिस्थितियों के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिये कुछ कार्य करने के लिये विवश हो जाता है तो इसे आवश्यकता द्वारा एजेन्सी कहते हैं। जैसे राम कुछ माल जयपुर में श्याम के पास इस आदेश के साथ भेजता है कि माल को शीघ्र ही मोहन के पास उदयपुर भेज दिया जाय। यदि श्याम को लगता है कि माल उदयपुर भेजे जाने पर पूर्णतया नष्ट हो जायेगा और वह माल को जयपुर में ही बेच देता है तो इस दशा में श्याम द्वारा राम को एजेन्ट माना जायेगा क्योंकि श्याम ने राम के हित में कार्य किया है तथा श्याम, राम से आदेश प्राप्त करने की स्थिति में नहीं था।
प्रश्न 9.
“प्रतिफल नहीं अनुबन्ध नहीं” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कानून द्वारा किसी भी ठहराव का प्रवर्तनीय होने के लिये यह आवश्यक है कि कुछ न कुछ प्रतिफल हो। प्रतिफल से आशय “कुछ के बदले कुछ” से है। बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ माने जाते हैं।
अनुबन्ध अधिनियम की धारा 25 के अनुसार – “बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ माना जाता है। अत: अनुबन्ध में कुछ प्रतिफल अवश्य होने चाहिए।”
प्रश्न 10.
किन दशाओं में गारंटी अवैध हो जाती है?
उत्तर:
निम्नलिखित दशाओं में गारंटी अवैध हो जाती है –
  1. यदि प्रतिभू के दायित्वों को स्पष्ट रूप से न बताकर दिखाया गया हो।
  2. यदि प्रतिभू द्वारा दी गयी गारंटी मूल ऋणी की प्रार्थना पर न दी गयी हो।
  3. यदि अनुबंध में प्रतिभू के बिना जानाकरी दिये मूलधारी व ऋणदाता अनुबन्ध की शर्तों में परिवर्तन कर लें।
  4. यदि कोई ऋणदाता अनुबन्ध के किसी तथ्य को छिपाकर कोई गारन्टी प्राप्त कर लेता है।
  5. यदि प्रतिभू कोई अनुबन्ध करने में असक्षम हो तो भी गारन्टी अवैध होगी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्ताव और स्वीकृति सम्बन्धी वैधानिक नियमों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रस्ताव सम्बन्धी वैधानिक नियम:
प्रस्ताव सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –
(1) दो पक्षकारों का होना – प्रत्येक प्रस्ताव के लिये कम से कम दो पक्षकारों का होना आवश्यक है। कोई भी पक्षकार स्वयं के लिये प्रस्ताव नहीं करता है बल्कि प्रस्ताव हमेशा दूसरे व्यक्ति के लिये किया जाता है। प्रस्ताव में एक पक्षकार प्रस्ताव करने वाला तथा दूसरा पक्षकार जिसके सम्मुख प्रस्ताव रखा जाये।
(2) प्रस्ताव सकारात्मक अथवा नकारात्मक होना – प्रस्ताव सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकता है। प्रस्ताव में प्रस्तावक किसी भी कार्य को करने के उद्देश्य से प्रस्ताव करता है जिसके दो रूप होते हैं –
  • किसी कार्य को करने के लिये प्रस्ताव।
    किसी कार्य को न करने का प्रस्ताव।
(3) प्रस्ताव वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिये – प्रस्ताव का राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होने के लिये आवश्यक है कि प्रस्ताव वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिये। प्रस्ताव से वैधानिक परिणाम की उत्पत्ति होनी चाहिये और उसे वैधानिक उत्तरदायित्वों का निर्माण करना चाहिये।
(4) प्रस्ताव की शर्ते निश्चित होनी चाहिये – प्रस्ताव की शर्ते यदि अनिश्चित हैं तो उसकी स्वीकृति भी अनुबन्ध का निर्माण नहीं कर सकती है अतः प्रस्ताव की शर्ते अस्पष्ट एवं अनिश्चित न होकर स्पष्ट एवं निश्चित होनी चाहिए।
(5) प्रस्ताव में संवहन होना आवश्यक है – प्रस्ताव तभी किया हुआ माना जाता है जब प्रस्ताव उस व्यक्ति की जानकारी में आ जाता है, जिसको प्रस्ताव किया गया है। प्रस्ताव की जानकारी बिना जब कोई व्यक्ति स्वीकृति दे देता है तो वह स्वीति नहीं मानी जा सकती है।
स्वीकृति सम्बन्धी वैधानिक नियम:
प्रस्ताव की स्वीकृति सम्बन्धी प्रावधान निम्नलिखित हैं –
(1) किसी भी प्रस्ताव को वचन में परिवतर्तित करने के लिये स्वीकृति पूर्ण होनी चाहिये और उसमें कोई शर्त नहीं होनी चाहिये।
(2) यदि प्रस्तावक ने स्वीकृति की कोई विधि निश्चित कर दी है तो प्रस्ताव की स्वीकृति उसी विधि से दी जानी चाहिए। यदि प्रस्ताव में स्वीकृति की किसी निश्चित विधि का उल्लेख नहीं है तो स्वीकृति किसी उचित एवं प्रचलित विधि से दी जानी चाहिये।
(3) स्वीकृति स्पष्ट उच्चारण करके या लिखित रूप में या आचरण द्वारा दी जा सकती है।
(4) यदि स्वीकृति देने की कोई तिथि निश्चित कर दी गयी है तो स्वीकृति उस तिथि तक कभी भी दे देनी चाहिये अन्य दशाओं में स्वीकृति उचित समय के अन्दर दी जानी चाहिये।
(5) यदि कोई व्यक्ति प्रस्ताव को जाने बिना स्वीकृति देता है तो स्वीकृति का कोई महत्व नहीं होता है। लालमन शुक्ला बनाम गौरीदत्त के मामले में यह स्पष्ट किया गया कि बिना प्रस्ताव की
जानकारी के स्वीकृति देने व्यर्थ है।
(6) स्वीकर्ता के मौन का प्रस्ताव की स्वीकृति न ही माना जा सकता है यदि ऐसा होता है, तो प्रस्ताव की अस्वीकृति की सूचना देने की जिम्मेदारी का भार स्वीकृर्ता पर रहता है।
(7) स्वीकृति का संवहन उचित व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिये जिसे स्वीकृति के संवहन का अधिकार हो । अनाधिकृत व्यक्ति से प्राप्त स्वीकृति की सूचना प्रभावहीन होती है। जब प्रस्ताव में स्वीकृति के संवहन के माध्यम का निर्धारण नहीं किया जाता है तो स्वीकृति उचित एवं प्रचलित ढंग से देनी चाहिये।
(8) किसी प्रस्ताव के लिये उसकी स्वीकृति प्रस्ताव किए जाने के पहले नहीं दी जा सकती। अतः जब प्रस्ताव किसी व्यक्ति के समक्ष रख दिया जाय तभी उस पर स्वीकृति दिया जाना वैध होगा।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्र सहमति से क्या आशय है? अनुबन्ध के लिये इसका महत्व समझाइए।
उत्तर:
स्वतन्त्र सहमति से आशय:
सहमति का अर्थ है ठहराव करने वाले पक्षकार एक ही बात पर एक ही भाव से सहमत हों। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा – 13 के अनुसार, सहमति को स्वतन्त्र सहमतिं उसी दशा में माना जा सकता है जबकि वह सहमति –
  1. उत्पीड़न
  2. अनुचित प्रभाव
  3. कपट
  4. मिथ्यावर्णन
  5. गलती में से किसी भी तत्व के प्रभाव से न दी गयी हो अर्थात अनुबन्ध करने वाले पक्षकारों की सहमति प्राप्त करने के लिये उक्त पाँचों में से किसी का प्रयोग नहीं किया जाये।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – अमन, दीपक से कहता है तुम अपना मकान 5 लाख में बेच दो नहीं तो मैं तुम्हारे पुत्र का अपहरण करवा दूगा। इस पर दीपक 5 लाख में अपना मकान बेचने को सहमत हो जाता है। इस ठहरावे में उत्पीड़न का प्रयोग किया गया है, अतः यह स्वतन्त्र सहमति नहीं है।
अनुबन्ध के लिये स्वतन्त्र सहमति का महत्व:
एक वैध अनुबन्ध हेतु पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति आवश्यक है। यदि किसी पक्षकार की स्वतन्त्र सहमति नहीं है तो अनुबन्ध उस पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थ होगा, जिसकी सहमति इस प्रकार प्राप्त की गयी है।
अनुबन्ध के लिये स्वतन्त्र सहमति के महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) कपट अथवा मिथ्यावर्णन के अन्तर्गत यदि पीड़ित पक्षकार ने कोई धन अथवा सम्पत्ति दूसरे पक्षकार को दी है तो वह उसको वापस पाने का अधिकारी होगा।
(2) यदि सहमति अनुचित प्रभाव के कारण दी गयी है और पीड़ित पक्षकार ने उस अनुबन्ध के अधीन कोई लाभ प्राप्त किया है तो अनुबन्ध की शर्तों को निरस्त किया जा सकता है जो न्यायालय की दृष्टि में उचित हो।
(3) कपट की दशा में पीड़ित पक्षकार को अपनी क्षतिपूर्ति कराने का भी अधिकार होगा, मिथ्यावर्णन की दशा में ऐसा अधिकार नहीं होगा।
(4) कपट अथवा मिथ्यावर्णन की दशा में पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध की अभिपुष्टि कर सकता है, यदि ऐसा करना वह अपने हित में समझता है और अनुबन्ध की समस्त शर्तों की पूर्ति के लिये बाध्य कर सकता है।
(5) यदि किसी ठहराव के सम्बन्ध में सहमति उत्पीड़न, कपट, मिथ्यावर्णन एवं अनुचित प्रभाव द्वारा दिखायी गयी हो, तो अनुबन्ध उस पक्षकार की इच्छा पर जिसकी असहमति इस प्रकार दिखायी गयी हो, व्यर्थनीय होगा।
(6) तथ्यं सम्बन्धी गलती पर आधारित अनुबन्धों के अन्तर्गत दिया गया धन वापस प्राप्त किया जा सकता है। धन देने वाले व्यक्ति के द्वारा उस जानकारी का जो उसे प्राप्त थी, लाभ न उठाने की भूल उसे धन वापस लेने से रोक नहीं सकती है।
प्रश्न 3.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम द्वारा व्यर्थ घोषित किये गये ठहरावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ऐसा ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय न हो व्यर्थ ठहराव कहलाता है। ऐसा ठहराव पक्षकारों के मध्य किसी प्रकार का वैधानिक दायित्व उत्पन्न नहीं करता है। ऐसा पक्षकार, दूसरे पक्षकार को अपने वचन के पालन के लिये बाध्य नहीं कर सकेगा। अनुबन्ध अधिनियम में निम्नलिखित ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिये गये हैं –
(1) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति अनुबन्ध करने की क्षमता रखता है जो कि सम्बन्धित राजनियम के अनुसार वयस्क हो, स्वस्थ मस्तिष्क का हो, किसी भी राजनियम के द्वारा जिसके वह अधीन है, अनुबन्ध करने के लिये अनुबन्ध करने के लिये अयोग्य घोषित न कर दिया हो अर्थात अनुबन्ध करने के अयोग्य पक्षकारों (अवयस्क, अस्वस्थ मस्तिष्क, राजनियम द्वारा अयोग्य) द्वारा किये गये ठहराव व्यर्थ माने जाते हैं।
(2) जब ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव के लिये सहमत हों परन्तु ठहराव में आवश्यक तथ्य सम्बन्धी गलती हो तो ऐसा ठहराव व्यर्थ होता है।
(3) विदेशी राजनियम के सम्बन्ध में गलती के आधार पर हुये ठहराव पूर्णतः व्यर्थ होते हैं।
(4) अवयस्क को छोड़कर किसी भी अविवाहित व्यक्ति के विवाह में रुकावट डालना या किसी व्यक्ति को विवाह के लिये बाध्य करना लोकनीति के विरुद्ध माना जाता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपने विवाह के सम्बन्ध में निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है, ऐसी स्वतन्त्रता में रुकावट डालने वाले ठहराव व्यर्थ होते हैं।
(5) प्रत्येक ऐसा ठहराव जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के किसी कानूनी व्यवसाय, धन्धे तथा व्यापार में रुकावट डाली जाती है तो वह ठहराव उस सीमा तक व्यर्थ होगा। कारण कि भारतीय संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को व्यापार, व्यवसाय व पेशे की स्वतन्त्रता का मौलिक अधिकार दिया गया है।
(6) एक वैध ठहराव के लिये प्रतिफल एवं उद्देश्यों को वैधानिक होना आवश्यक है तभी एक अनुबन्ध प्रवर्तनीय होगा। जिने ठहरावों का प्रतिफल तथा उद्देश्य अवैधानिक होता है, वे व्यर्थ माने जाते हैं।
(7) प्रत्येक ऐसा ठहराव जिसके द्वारा कोई पक्षकार किसी ठहराव के अधीन उससे सम्बन्धित अपने अधिकारों को साधारण न्यायालय में प्रचलित वैधानिक कार्यवाही द्वारा प्रवर्तनीय कराने से पूर्णतया रोका जाता है अथवा जो उस समय को सीमित करता है, जिसके अन्दर वह अपने अधिकारों को इस प्रकार प्रवर्तित करा सकता है, उस सीमा तक व्यर्थ है।
(8) ऐसे ठहराव जिनका अर्थ निश्चित नहीं किया जा सकता अर्थात ऐसे ठहराव जो भ्रमात्मक तथा सन्देहास्पद प्रकृति के होते हैं वे व्यर्थ ठहराव होते हैं।
(9) बाजी के ठहरावों में एक पक्षकार को लाभ या जीत व दूसरे पक्षकार की हानि या हार होती है। अतः ऐसे ठहराव व्यर्थ माने जाते हैं। लेकिन कुछ ठहराव ऐसे होते हैं जो प्रकृति के अनुसार बाजी के ठहराव लगते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। ऐसे ठहराव वैध माने जाते हैं, जैसे – घुड़दौड़ के ठहराव, चिटफण्ड के ठहराव, बीमा के अनुबन्ध, वर्ग पहेली, प्रतियोगिता आदि।
(10) ऐसा ठहराव व्यर्थ होता है जो किसी ऐसे कार्य को करने के लिये है, जो प्रारम्भ से ही असम्भव है, जैसे ‘अ’ और ‘ब’ आपस में विवाह करने का ठहराव करते हैं, विवाह के पूर्व ही ‘अ’ पागल हो जाता है। यह ठहराव व्यर्थ है।
प्रश्न 4.
एक अवयस्क को भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत कौन-कौन से विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर:
एक अवयस्क को भारतीय अनुबन्ध अधिनियम अन्तर्गत निम्न विशेषाधिकार प्राप्त हैं –
(1) यदि अवयस्क ने किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत कोई दायित्व अपने ऊपर लिया है या किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत कोई धनराशि प्राप्त कर ली है तो अवयस्क को ऐसे दायित्व को पूरा करने या धनराशि वापस करने के लिये दायी नहीं ठहराया जा सकता है चाहे उसके साथ अनुबन्ध करने वाले पक्षकार को अवयस्कता का ज्ञान हो या नहीं। इस प्रकार अवयस्क किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत लाभ तो प्राप्त कर सकता है लेकिन हानि के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इस सम्बन्ध में मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष’ का विवाद महत्वपूर्ण है।
(2) सामान्यत: एक अवयस्क ऋण लेने अथवा लाभ के लिये कोई स्थायी या अस्थायी सम्पत्ति खरीदने को वैधानिक ठहराव नहीं कर सकता है। लेकिन एक अवयस्क अपने जीवन निर्वाह सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिये किसी सम्पत्ति पर ऋण ले सकता है और उनको प्रदान करने वाला उसकी सम्पत्ति में से भुगतान पाने का अधिकारी है। भोजना, कपड़ा, यात्रा व्ययं, मकान, किराया, शिक्षा व्यय, चिकित्सा आदि पर व्यय, धार्मिक कार्यों पर किया गया व्यय आदि को अधिनियम में जीवन निर्वाह सम्बन्धी आवश्यक आवश्यकतायें माना गया है।
(3) अवयस्क में अनुबन्ध करने की क्षमता नहीं होती है इसीलिये उसके दायित्व भी सीमित होते हैं। अवयस्क को दिवालिया घोषित नहीं किया जा सकता है चाहे ऐसा ऋण उसने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ही क्यों न लिया हो।
(4) एक अवयस्क एजेन्ट हो सकता है लेकिन उसके द्वारा किये गये प्रत्येक कार्य के लिये उसका स्वामी अर्थात प्रधान उत्तरदायी होता है।
(5) कोई भी वयस्क व्यक्ति प्रतिभू हो सकता है इसीलिये कोई ऐसा व्यक्ति अवयस्क द्वारा लिये गये किसी ऋण के प्रति गारन्टी देता है तो ऐसा व्यक्ति ऋणदाता के प्रति दायी होगा, किन्तु अवयस्क न तो ऋणदाता और न प्रतिभू के प्रति दायी होगा।
(6) यदि अवयस्क कपट या मिथ्यावर्णन या झूठ बोलकर अपने आपको वयस्क बताकर कोई अनुबन्ध कर लेता है तो भी वह उत्तरदायी नहीं माना जायेगा। लेकिन कानून उसे इस बात की इजाजत नहीं देता है कि वह जन सामान्य को धोखा देकर ठगी करे।
(7) किसी भी अवयस्क के संरक्षक द्वारा अवयस्क की भलाई यो हित के लिये किये गये अनुबन्ध वैधानिक होते हैं।
प्रश्न 5.
निक्षेप क्या है? निक्षेपी तथा निक्षेपग्रहीता के कर्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निक्षेप का अर्थ:
जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अनुबन्ध के अन्तर्गत किसी विशिष्ट उद्देश्य से माल की सुपर्दगी करता है कि उसका उद्देश्य पूरा हो जाने पर माल सुपर्दगी देने वाले व्यक्ति को वापस कर दिया जायेगा अथवा उसके आदेशानुसार उसकी व्यवस्था कर दी जायेगी तो ऐसे अनुबन्ध को निक्षेप अनुबन्ध कहते हैं। जो सुपर्दगी देने वाला, व्यक्ति होता है उसे निक्षेपी कहते हैं और जो सुपर्दगी प्राप्त करने वाला, व्यक्ति होता है उसे निक्षेपम्रहीता कहते हैं।
उदाहरण – मनोज जयपुर के एक होटल में ठहरता है तथा अपना बैग आदि सामान होटल के प्रबन्धक को सुपुर्द कर देता है जब तक कि वह होटल में ठहरता है। यहाँ मनोज, निक्षेपी तथा होटल प्रबन्धक निक्षेपग्रहीता है।
निक्षेपी के कर्तव्य:
निक्षेपी के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं –
(1) माल के दोषों को प्रकट करना – निक्षेप किये गये माल के दोषों को प्रकट करना निक्षेपी का कर्तव्य है। निक्षेपी द्वारा निक्षेपग्रहीता को निक्षेपित माल के सम्बन्ध में ऐसे सभी दोषों को प्रकट कर देना चाहिए जिनकी उसे जानकारी है तथा जिनसे माल के प्रयोग में विशेष बाधा पड़ती है या निक्षेपग्रहीता को किसी असाधारण जोखिम का खतरा हो।
(2) आवश्यक व्ययों का भुगतान करना – जब निक्षेप की शर्तों के अन्तर्गत निक्षेपी को कोई वस्तु रखना या ले जाना अथवा उस पर कोई कार्य करना है और निक्षेपग्रहीता को उसका कोई परिश्रमिक नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति में निक्षेपी, निक्षेपग्रहीता को ऐसे समस्त आवश्यक व्यय चुकाने के लिये बाध्य कर सकता है। जो निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेप के लिये किये गये हैं।
(3) निःशुल्क निक्षेप में माल की वापसी से उत्पन्न हानि की क्षतिपूर्ति करना – यदि निःशुल्क निक्षेप में निश्चित अवधि या उद्देश्य की पूर्ति से पूर्व माल वापस माँग लिया जाता है जिससे निक्षेपग्रहीता को लाभ की अपेक्षा हानि उठानी पड़ती है तो निक्षेपी का कर्तव्य है कि वह निक्षेपग्रहीता की क्षतिपूर्ति को पूरा करे।
(4) असाधारण व्ययों का भुगतान करना – यदि निक्षेप निशुल्क है तो निक्षेपी साधारण व्यय को देने के लिये बाध्य नहीं होता है बल्कि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेप के सम्बन्ध में कोई असाधारण व्यय किये हों तो निक्षेपी को उनको चुकाना होगा।
निक्षेपग्रहीता के कर्त्तव्य:
निक्षेपग्रहीता के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं –
(1) निक्षेपित माल की देखभाल करना – निक्षेप चाहे सशुल्क हो या निशुल्क निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है कि वह निक्षेपित माल की उतनी ही देखभाल करे जितनी कि एक साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति उस स्थिति में उसी मात्रा, गुण, तथा मूल्य वाले स्वयं के माल के सम्बन्ध में करता।
(2) निक्षेप की शर्तों के विपरीत कार्य न करना – निक्षेपित माल के सम्बन्ध में यदि कोई शर्ते रखी गई हैं तो निक्षेपग्रहीता को शर्तों का पालन करना चाहिये। यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल के सम्बन्ध में शर्तों के विपरीत कार्य करता है तो निक्षेपी अनुबन्ध को अपनी इच्छा पर समाप्त कर सकता है। तथा निक्षेपित माल को वापस ले सकता है।
(3) निक्षेप के माल को अपने माल से न मिलाना – निक्षेपित मात के सम्बन्ध में निक्षेपग्रहीता का कर्त्तव्य है कि उसे अपने निजी माल के साथ नहीं मिलाना चाहिये। यदि वह ऐसा करता है तो माल के अलग करने के व्यय तथा होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी उसी की होगी।
(4) निक्षेपित वस्तु को वापस करना – निक्षेपित माल का उद्देश्य पूरा या अवधि समाप्त हो जाने पर निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है कि निक्षेपित माल निक्षेपी को समय पर वापस कर दे या निक्षेपी की आज्ञानुसार माल को सुपुर्द कर दे।
(5) किसी वृद्धि अथवा. लाभ को वापस करना – निक्षेपित माल में कोई वृद्धि या लाभ हुआ है तो निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है वह उसे निक्षेपी या उसके आदेशानुसार वापस कर देना चाहिये।
प्रश्न 6.
एजेन्सी किसे कहते हैं? एक एजेन्ट के अधिकार एवं कर्तव्य लिखिए।
उत्तर:
एजेन्सी:
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम में एजेन्सी शब्द की परिभाषा नहीं की गयी है किन्तु अधिनियम की धारा 182 से 238 तक की धारायें एजेन्सी सम्बन्धों का ही नियमन करती हैं। एजेन्सी, एजेन्ट तथा प्रधान के बीच ठहराव द्वारा उत्पन्न एक ऐसा सम्बन्ध है जिसमें प्रधान, एजेन्ट को अपना प्रतिनिधित्व करने या अन्य पक्षकारों के साथ अपने अनुबन्धात्मक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु अधिकृत करता है।
एक न्यायिक निर्णय के अनुसार – “एजेन्सी का सार यह है कि प्रधान अपने एजेन्ट को अधिकार देता है कि वह अपने प्रधान का अन्य व्यक्तियों के साथ अनुबन्धात्मक सम्बन्ध स्थापित करे।”
एजेन्ट के अधिकार:
एक एजेन्ट के निम्नलिखित अधिकार होते हैं –
(1) पारिश्रमिक पाने का अधिकार – एजेन्ट तथा प्रधान के मध्य किये गये ठहराव के अनुसार एजेन्ट को निश्चित किया गया पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार है। यदि कोई पारिश्रमिक तय नहीं किया गया है तो भी उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकारी है। किसी विपरीत अनुबन्ध के प्रभाव में एजेन्ट निश्चित कार्य की समाप्ति से पहले पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता है।
(2) प्रधान की लापरवाही से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार – यदि प्रधान की अयोग्यता या लापरवाही के कारण कोई हानि होती है तो एक एजेन्ट उसकी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी होता है।
(3) माल को मार्ग में रोकने का अधिकार – एजेन्ट द्वारा यदि अपने धन से प्रधान के लिये माल खरीदा है तो ऐसी स्थिति में वह माल को मार्ग में भी रोक सकता है जब तक कि उसका पूर्ण भुगतान न हो जाय। क्रेता के दिवालिया होने की दशा में भी एजेन्ट माल को मार्ग में रोक सकता है।
(4) समय से पूर्व एजेन्सी समाप्त करने पर क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार – यदि प्रधान द्वारा बिना उचित कारण बताए निर्धारित समय से पूर्व एजेन्सी समाप्त कर देता है तो इससे होने वाली हानि के लिये एजेन्ट उससे क्षतिपूर्ति कराने का अधिकारी है।
(5) हानिरक्षा कराने का अधिकार – एजेन्ट अपने नियोक्ता का प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिये एजेन्सी का काम करते हुये यदि उसे कुछ हानि उठानी पड़ती है, तो नियोक्ता को चाहिए कि वह एजेन्ट की हानि से रक्षा करे।
एजेन्ट के कर्तव्य:
एक एजेन्ट के निम्नलिखित कर्त्तव्य होते हैं –
(1) नियोक्ता के आदेश के अनुसार कार्य करना – एजेन्ट को अपने नियोक्ता के अनुसार कार्य करना चाहिए। आज्ञा का उल्लंघन करने से हानि होने पर एजेन्ट अपने नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी होगा। यदि लाभ होता है तो लाभ का अधिकारी प्रधान होगा।
(2) आदेशों के अभाव में परम्परा के अनुसार कार्य करना – नियोक्ता द्वारा किसी कार्य को रोकने के लिये कोई स्पष्ट आदेश न दिया हो तो एजेन्ट को परम्परागत नीति से ही कार्य करना चाहिये। यदि एजेन्ट किसी अन्य रीति से कार्य करता है और कोई हानि हो जाती है, तो उसे नियोक्ता की क्षतिपूर्ति करनी पड़ेगी और यदि लाभ होता है, तो उसका हिसाब देना होगा।
(3) कार्य को पूर्ण योग्यता व परिश्रम से करना – एजेन्ट का कर्तव्य है कि वह सौंपे गये कार्य को पूर्ण योग्यता एवं परिश्रम के साथ करे। उसे सौंपे गये कार्य को अपना समझकर करना चाहिये।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

वहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्ताव हो सकता है –
(अ) सकारात्मक तथा नकारात्मक
(ब) विशिष्ट या साधारण
(स) स्पष्ट तथा गर्भित
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तरमाला:
(द)
प्रश्न 2.
“मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष” केस को सम्बन्ध है –
(अ) एक अवयस्क के साथ किया गया ठहराव प्रारम्भ से ही पूर्णतः व्यर्थ होता है।
(ब) स्वीकृति पूर्ण तथा शर्तरहित होनी चाहिये।
(स) प्रतिफल वचनग्रहीता एवं अन्य किसी व्यक्ति की ओर से हो सकता है।
(द) सम्पत्ति को अवैधानिक रूप से रोके जाने की धमकी।
उत्तरमाला:
(अ)
प्रश्न 3.
उत्पीड़न को इंगित करने वाला कार्य है –
(अ) मारना – पीटना।
(ब) अपहरण करने की धमकी देना।
(स) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में रुकावट डालना
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तरमाला:
(द)
प्रश्न 4.
जब कोई पक्षकार किसी असाध्य बात को उसकी सत्यता में विश्वास रखते हुये वर्णन करता है तो इस प्रकार का कथन कहलाता है –
(अ) उत्पीड़न
(ब) मिथ्यावर्णन
(स) अनुचित प्रभाव
(द) कपट।
उत्तरमाला:
(ब)
प्रश्न 5.
“प्रतिफल अनुबन्ध करने वाले एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दिया जाने वाला वचन है।” यह परिभाषा दी है –
(अ) अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2 (d) द्वारा
(ब) अनुबन्ध अधिनियम की धारा 17 द्वारा
(स) विद्वान ब्लैक स्टोन के द्वारा
(द) उपयुक्त में से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
(स)
प्रश्न 6.
अनुबन्ध समाप्ति की विधि है –
(अ) निष्पादन द्वारा समाप्ति
(ब) निष्पादन की असम्भवता द्वारा समाप्ति
(स) अनुबन्ध या खण्डन द्वारा
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तरमाला:
(द)
प्रश्न 7.
वह व्यक्ति जो जमानत देता है, कहलाता है –
(अ) प्रतिभू
(ब) ऋणदाता या लेनदार
(स) मूल ऋणी
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तरमाला:
(अ)
प्रश्न 8.
निक्षेपी या निक्षेपकर्ता का कर्तव्य है –
(अ) निक्षेपग्रहीता को माल सुपुर्द करना
(ब) माल के दोषों को प्रकट करना
(स) आवश्यक व्ययों का भुगतान करना
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तरमाला:
(द)
प्रश्न 9.
गिरवीग्राही का अधिकार है –
(अ) ऋण की राशि के लिये माल को रोकना
(ब) असाधारण व्यय को पाने का अधिकार
(स) गिरवीकर्ता पर वाद प्रस्तुत करने का अधिकार
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तरमाला:
(द)
प्रश्न 10.
एजेन्ट का अधिकार नहीं है –
(अ) अपना पारिश्रमिक पाना
(ब) गुप्त लाभों को प्राप्त करना
(स) संकटकाल में सभी आवश्यक कार्य करना
(द) उचित सूचना देकर एजेन्सी अनुबन्ध से मुक्त होना।
उत्तरमाला:
(ब)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्ताव के लिये कम से कम कितने पक्षकारों की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
दो।
प्रश्न 2.
किन्हीं दो प्रस्तावों के निमंत्रण के उदाहरण बताइये जो प्रस्ताव नहीं हैं?
उत्तर:
  1. होटल का मेन्यू कार्ड
  2. बीमा का विज्ञापन।
प्रश्न 3.
अनुबन्ध करने की क्षमता से तात्पर्य है?
उत्तर:
अनुबन्ध करने की क्षमता से तात्पर्य पक्षकारों में अनुबन्ध करने की वैधानिक क्षमता से है।
प्रश्न 4.
एक अवयस्क एजेन्ट द्वारा किये गये प्रत्येक कार्य के लिये कौन जिम्मेदार होता है?
उत्तर:
एजेन्ट का स्वामी अर्थात प्रधान उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 5.
किसी भी अवयवस्क के संरक्षक द्वारा अवयस्क की भलाई या हित के लिये किये गये। अनुबन्ध क्या वैधानिक होते हैं?
उत्तर:
हाँ, वैधानिक होते हैं।
प्रश्न 6.
राजनियम या कानून द्वारा घोषित दो अयोग्य व्यक्तिों के नाम बताइए।
उत्तर:
  1. विदेशी शत्रु
  2. कैदी या अपराधी।
प्रश्न 7.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 13 के अनुसार सहमति को स्वतन्त्र सहमति किस दशा में माना जाता है?
उत्तर:
उत्पीड़न, अनुचित प्रभाव, कपट, मिथ्यावर्णन गलती में से किसी भी तत्व के प्रभाव में न दी गयी सहमति को स्वतन्त्र संहमति माना जाता है।
प्रश्न 8.
उत्पीड़न को इंगित करने वाले कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर:
  1. व्यक्ति की स्वतन्त्रता में रुकावट डालना।
  2. आत्महत्या करने की धमकी देना।
प्रश्न 9.
कर्मचारियों द्वारा अपने नियोक्ता को अपनी मांगें मनवाने के लिये यदि धमकी दी जाती है तो क्या ऐसी धमकी को उत्पीड़न माना जाता है?
उत्तर:
ऐसी धमकी को उत्पीड़न नहीं माना जाता है।
प्रश्न 10.
कोई दो कार्य बताइए जिन्हें कपट माना जाता है?
उत्तर:
  1. किसी असत्य बात को जानबूझकर सत्य बताना।
  2. कोई भी ऐसा कार्य जिसका उद्देश्य दूसरे पक्षकार को धोखा देना।
प्रश्न 11.
मिथ्यावर्णन कितने प्रकार का होता है? नाम बताइए।
उत्तर:
मिथ्यावर्णन दो प्रकार का होता है –
  1. कपटपूर्ण मिथ्यावर्णन
  2. अज्ञानतावश मिथ्यावर्णन।
प्रश्न 12.
कपटपूर्ण मिथ्यावर्णन से क्या आशय है?
उत्तर:
जानबूझकर धोखा देने के उद्देश्य से किसी असत्य बात को सत्य बतलाना कपटपूर्ण मिथ्यावर्णन कहलाता है।
प्रश्न 13.
अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत प्रतिफल सम्बन्धी कोई दो प्रमुख प्रावधान बताइए।
उत्तर:
  1. प्रतिफल से वचनदाता को स्वयं को लाभ – हानि होना आवश्यक नहीं है।
  2. प्रतिफल वचनदाता अथवा किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किया जा सकता है।
प्रश्न 14.
ऐसी कोई दो दशायें बताइये जिनमें अनुबन्ध बिना प्रतिफल के भी वैध माना जाता है?
उत्तर:
  1. जब अनुबन्ध नि:शुल्क निक्षेप का हो।
  2. जब कोई अनुबन्ध दान देने का हो तथा दान प्राप्तकर्ता ने दान प्राप्ति की आशा में कुछ दायित्व उत्पन्न कर लिये हों।
प्रश्न 15.
अधिनियम के अनुसार कोई दो दशायें बताइए जिसमें कोई भी ठहराव गैर कानूनी हो जाता है?
उत्तर:
  1. जब ठहराव राजनियम द्वारा वर्जित हो।
  2. जब ठहराव अनैतिक हो।
प्रश्न 16.
अवयस्क को छोड़कर किसी भी अविवाहित व्यक्ति के विवाह में रुकावट डालने वाले ठहराव व्यर्थ क्यों होते हैं?
उत्तर:
देश में प्रत्येक वयस्क नागरिक को द्विवाह करने की स्वतंत्रता होने के कारण विवाह में रुकावट डालने वाले ठहराव व्यर्थ होते हैं।
प्रश्न 17.
प्रत्येक ऐसा ठहराव जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के किसी भी कानूनी व्यवसाय, धन्धे तथा व्यापार में रुकावट डाली जाती है तो वह ठहराव उस सीमा तक व्यर्थ क्यों होता है?
उत्तर:
क्योंकि भारतीय संविधान द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को व्यापार, व्यवसाय व पेशे की स्वतन्त्रता का मौलिक अधिकार दिया गया है।
प्रश्न 18.
बाजी के ठहराव से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बाजी के ठहराव से तात्पर्य यह है कि इसमें ठहराव के एक पक्षकार को लाभ या जीत व दूसरे व्यक्ति को हानि या हार होती है। बाजी के ठहराव व्यर्थ माने जाते हैं।
प्रश्न 19.
सांयोगिक अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
सांयोगिक अनुबन्ध एक ऐसा अनुबन्ध है जो घटना के घटित होने पर आधारित होता है अर्थात ऐसे अनुबन्ध संयोग या अवसर पर आधारित होते हैं।
प्रश्न 20.
सांयोगिक अनुबन्ध की श्रेणी में कौन – कौन से अनुबन्ध आते हैं?
उत्तर:
हानिरक्षा, गारन्टी तथा बीमा के अनुबन्ध सांयोगिक अनुबन्धों की श्रेणी में आते हैं। बाजी के ठहराव भी सांयोगिक अनुबन्धों की श्रेणी में आते हैं लेकिन जनहित की दृष्टि से अधिनियम में स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित कर दिया गया
प्रश्न 21.
अनुबन्ध के निष्पादन से क्या आशय है?
उत्तर:
अनुबन्ध के पक्षकारों द्वारा अपने अपने दायित्वों को पूरा करना ही अनुबन्ध का निष्पादन कहलाता है।
प्रश्न 22.
ऐसी दो दशायें बताइये जिनमें अनुबन्ध का निष्पादन करना आवश्यक नहीं है?
उत्तर:
  1. जब अनुबन्ध को निरस्त कर दिया जाये।
  2. जब अनुबन्ध गैर कानूनी हो।
प्रश्न 23.
अनुबन्ध की समाप्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
अनुबन्ध की समाप्ति से आशय अनुबन्ध की उस स्थिति से है जब अनुबन्ध के पक्षकारों का कोई दायित्व शेष नहीं बचता है।
प्रश्न 24.
अनुबन्ध समाप्ति की कोई दो विधियाँ बताइए।
उत्तर:
  1. निष्पादन द्वारा समाप्ति।
  2. पारस्परिक ठहराव या सहमति द्वारा समाप्ति।
प्रश्न 25.
पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध भंग होने की स्थिति में प्राप्त होने वाले दो उपचार या अधिकार बताइये।
उत्तर:
  1. हर्जाने का दावा या क्षतिपूर्ति के लिये वाद प्रस्तुत करना।
  2. अर्जित या उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार।
प्रश्न 26.
इंग्लैण्ड में गर्भित अनुबन्धों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
अर्द्ध अनुबन्ध।
प्रश्न 27.
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की किन धाराओं के अन्तर्गत अर्द्ध अनुबन्धों के प्रकार वर्णित हैं?
उत्तर:
धारा 68 – 72 के अन्तर्गत्।
प्रश्न 28.
हानिरक्षा अनुबन्ध क्या है?
उत्तर:
हानि रक्षा अनुबन्ध से आशये एक ऐसे अनुबन्ध से है जिसके अन्तर्गत एक पक्षकार किसी दूसरे पक्षकार को किसी ऐसी हानि से बचाने का वचन देता है जो उसे स्वयं वचनदाता के या किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से पहुँचे।
प्रश्न 29.
प्रतिभू किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो व्यक्ति जमानत या गारन्टी देता है उसे प्रतिभू कहते हैं।
प्रश्न 30.
निक्षेपग्रहीता किसे कहते हैं?
उत्तर:
निक्षेप अनुबन्ध में सुपुर्दगी प्राप्त करने वाला व्यक्ति निक्षेपग्रहीता कहलाता है।
प्रश्न 31.
निःशुल्क निक्षेप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी निक्षेपी अनुबन्ध में किसी प्रतिफल (शुल्क, पारिश्रमिक, किराया आदि) का लेन – देन नहीं होता है उसे नि:शुल्क निक्षेप कहते हैं।
प्रश्न 32.
निक्षेपी या निक्षेपकर्ता के कोई दो कर्तव्य बताइए।
उत्तर:
  1. निक्षेपग्रहीता को माल सुपुर्द करना।
  2. माल के दोषों को प्रकट करना।
प्रश्न 33.
निक्षेपग्रहीता के दो कर्तव्यों को बताइये।
उत्तर:
  1. माल की उचित देखभाल करना।
  2. निक्षेप की शर्तों के विरुद्ध कार्य न करना।
प्रश्न 34.
गिरवी से क्या आशय है?
उत्तर:
जब किसी माल का निक्षेप किसी ऋण, वचन के पालन के लिये प्रतिभूति के रूप में किया जाता है, तो उसे गिरवी कहते हैं।
प्रश्न 35.
गिरवीग्राही कौन होता है?
उत्तर:
जिस व्यक्ति के पास माल गिरवी रखा जाता है तो उसे गिरवी रख लेने वाला अथवा गिरवीग्राही कहते हैं।
प्रश्न 36.
गिरवीग्राही के दो अधिकार बताइये।
उत्तर:
  1. ऋण की राशि के लिये माल रोकना।
  2. असाधारण व्यय को पाने का अधिकार।
प्रश्न 37.
गिरवीग्राही के दो कर्तव्य बताइए।
उत्तर:
  1. माल की उचित देखरेख रखना।
  2. गिरवी रखी वस्तु को अपने निजी उपयोग में नहीं लेना।
प्रश्न 38.
गिरवीकर्ता के दो कर्तव्य बताइए।
उत्तर:
  1. माल के समस्त दोषों को प्रकट करना।
  2. यथासमय अपने ऋण का भुगतान कर देना।
प्रश्न 39.
एजेनी किसे कहते हैं।
उत्तर:
एजेण्ट तथा प्रधान के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों को ही एजेन्सी कहते हैं।
प्रश्न 40.
एजेन्सी के कोई दो आवश्यक तत्व बताइये।
उत्तर:
  1. एजेन्सी का जन्म एजेण्ट तथा प्रधान के बीच ठहराव से हो सकता है।
  2. एजेन्सी के लिए किसी अनुबन्ध का होना अनिवार्य नहीं है।
प्रश्न 41.
गर्भित एजेन्सी किसे कहते हैं?
उत्तर:
पक्षकारों के आचरण या पक्षकारों के आपसी सम्बन्धों के द्वारा स्थापित एजेन्सी को गर्भित एजेन्सी कहते हैं।
प्रश्न 42.
एजेण्ट के कोई दो अधिकार बताइए।
उत्तर:
  1. अपना पारिश्रमिक पाने का अधिकार।
  2. प्रधान की अयोग्यता से होने वाली हानि पाने का अधिकार।
प्रश्न 43.
एजेण्ट के विरुद्ध प्रधान के दो अधिकार बताइए।
उत्तर:
  1. आदेश के अनुसार कार्य कराना।
  2. गुप्त लाभों को प्राप्त करना।
प्रश्न 44.
प्रधान अथवा मालिक के कोई दो कर्तव्य बताइए।
उत्तर:
  1. एजेण्ट को पारिश्रमिक प्रदान करना।
  2. उप एजेण्ट तथा स्थानापन्न एजेन्ट की नियुक्ति करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न (S.A – I)

प्रश्न 1.
स्वस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार, स्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति ही अनुबन्ध करने के योग्य माने जाते हैं जिसमें सोच विचार करने की क्षमता हो और उसे यह पता हो कि वह क्या कर रहा है, उसका उसके हित पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह जानकारी जिस व्यक्ति को है उसे हम स्वस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति कहते हैं।
प्रश्न 2.
उत्पीड़न से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्पीड़न का आशय जोर – जबदस्ती, दबाव, धमकी अथवा बल प्रयोग आदि से लिया जाता है। धारा 15 के अनुसार, जब ठहराव करने के लिए एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को बाध्य करता है अर्थात कोई ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना जो भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित है। अथवा किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के लिए किसी सम्पत्ति को अवैध रूप से रोक लेना या रोकने की धमकी देना ही उत्पीड़न कहलाता है।
प्रश्न 3.
उत्पीड़न तथा अनुचित प्रभाव में अन्तर बताइए।
उत्तर:
उत्पीड़न तथा अनुचित प्रभाव में अन्तर निम्नलिखित हैं –
  1. उत्पीड़न में अनुबन्ध अधिनियम की धारा 15 लागू होती है तथा अनुचित प्रभाव में धारा 16 लागू होती है।
  2. उत्पीड़न में सहमति देने को बाध्य होना पड़ता है लेकिन अनुचित प्रभाव में सहमति के लिए प्रेरित किया जाता है।
  3. उत्पीड़न वचनगृहीता अथवा वचनदाता के द्वारा होना आवश्यक नहीं है अर्थात् अन्य पक्षकार भी हो सकता है। लेकिन अनुचित प्रभाव अन्य पक्षकार के साथ नहीं हो सकता है यह पक्षकारों के मध्य ही होता है।
प्रश्न 4.
ऐसी कौन – कौन सी दशाएँ हैं जिसमें अनुबन्ध बिना प्रतिफल के भी वैध माना जाता है?
उत्तर:
निम्न दशाओं में अनुबन्ध बिना प्रतिफल के भी वैध माना जाता है –
  1. जब किसी व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के लिए स्वेच्छा से कुछ कार्य किया हो जिसे करने के लिए दूसरा व्यक्ति वैधानिक रूप से बाध्य था।
  2. जब अनुबन्ध किन्हीं निकट सम्बन्धियों के बीच स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह के कारण होती है और वह अनुबन्ध लिखित एवं रजिस्टर्ड होता है।
  3. जब अनुबन्ध नि:शुल्क निक्षेप का हो।
  4. जब कोई अनुबन्ध दान देने का हो तथा दान प्राप्तकर्ता ने दान प्राप्ति की आशा में कुछ दायित्व उत्पन्न कर लिए हों।
प्रश्न 5.
अधिनियम के अनुसार किन दशाओं में कोई ठहराव गैर कानूनी हो जाता है?
उत्तर:
कोई ठहराव निम्न दशाओं में गैर कानूनी हो जाता है –
  1. जब ठहराव रोजनियम द्वारा वर्जित हो।
  2. जब ठहराव कपटपूर्ण हो।
  3. जब कोई ठहराव किसी दूसरे व्यक्ति, देश या सम्पत्ति को हानि पहुँचाने वाला हो।
  4. जब ठहराव अनैतिक हो।
  5. जब कोई ठहराव लोकनीति के विरुद्ध हो।
प्रश्न 6.
एक अनुबन्ध का निष्पादन कितने प्रकार से किया जा सकता है?
उत्तर:
अनुबन्ध के पक्षकारों द्वारा अपने – अपने दायित्वों को ही पूरा करना अनुबन्ध का निष्पादन कहलाता है। अनुबन्ध का निष्पादन दो प्रकार से किया जाता है –
1. वास्तविक निष्पादन – जिसमें अनुबन्ध के दोनों पक्षकार अपने – अपने वचनों एवं दायित्वों को पूरा करते हैं तथा दोनों पक्षकारों द्वारा कुछ भी करना शेष नहीं रहता है।
2. प्रस्ताव द्वारा निष्पादन जिसमें पक्षकार अपने – अपने दायित्वों एवं वचनों के निष्पादन का प्रस्ताव दूसरे पक्षकार को करते हैं।
प्रश्न 7.
एक पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध भंग होने की स्थिति में कौन – कौन से उपचार या अधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर:
जब अनुबन्ध भंग होता है तो ऐसी स्थिति में पीड़ित पक्षकार को निम्न उपचार या अधिकार प्राप्त होते हैं –
  1. अनुबन्ध निरस्त करना।
  2. हर्जाने का दावा या क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत करना।
  3. अर्जित या उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकार।
  4. निर्दिष्ट निष्पादन का अधिकार।
  5. निषेधाज्ञा प्राप्त करने का अधिकार।
प्रश्न 8.
हानि रक्षा या क्षतिपूर्ति अनुबन्ध का आशय बताइए।
उत्तर:
हानिरंक्षा अनुबन्ध – हानिरक्षा या क्षतिपूर्ति अनुबन्धं से आशय ऐसे अनुबन्ध से है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को भविष्य की हानि से बचाने का वचन देता है।
अनुबन्ध अधिनियम की धारा 124 के अनुसार – “हानिरक्षा अनुबन्ध से आशय एक ऐसे अनुबन्ध से है जिसके अन्तर्गत एक पक्षकार किसी दूसरे पक्षकार को किसी ऐसी हानि से बचाने का वचन देता है जो उसे स्वयं वचनदाता के या किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से पहुँचे।”
प्रश्न 9.
गारन्टी अनुबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर:
गारन्टी अनुबन्ध का आशय – जब एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किसी किसी तीसरे पक्षकार की जमानत दी जाती है तो उसे गारन्टी अनुबन्ध कहते हैं।
अनुबन्ध अधिनियम की धारा 125 के अनुसार – “गारन्टी के अनुबन्ध से आशय एक ऐसे अनुबन्ध से है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से किसी तीसरे व्यक्ति की त्रुटि की दशा में उसको तीसरे व्यक्ति के वचन का निष्पादन करने या उसके दायित्व को पूरा करने का वचन देता है।”
गारन्टी अनुबन्ध में जो जमानत या गारन्टी देता है उसे प्रतिभू कहते हैं और जिसे जमानत या गारन्टी दी जाती है उसे ऋणदाता या लेनदारे कहते हैं और जिस व्यक्ति की त्रुटि या कार्यों के सम्बन्ध में जमानत या गारन्टी दी जाती है उसे मूल ऋणी कहते हैं।
प्रश्न 10.
गारन्टी अनुबन्धों की आवश्यकता किन कारणों से होती है?
उत्तर:
गारेन्टी अनुबन्ध की आवश्यकता सामान्यतः तीन कारणों से होती है –
  1. जब कोई व्यक्ति क्रियाओं के लिए या व्यक्तिगत रूप से धनराशि या ऋण प्राप्त करना चाहता है।
  2. जब क्रेता, विक्रेता से उधार माल क्रय करता हो।
  3. जब नियोक्ता किसी नये व्यक्ति की नियुक्ति के समय उसके चरित्र, आचरण व्यवहार व ईमानदारी के सम्बन्ध में गारन्टी की मांग करे।
प्रश्न 11.
निपेक्षी यो निक्षेपकर्ता के कर्तव्य को बताइए।
उत्तर:
निक्षेपी या निक्षेपकर्ता के निम्न कर्त्तव्य होते हैं –
  1. निक्षेपग्रहीता को माल सुपुर्द करना।
  2. माल के दोषों को प्रकट करना।
  3. आवश्यक व्ययों को भुगतान करना।
  4. निक्षेपग्रहीता को पारिश्रमिक या शुल्क चुकाना।
  5. माल पुनः प्राप्त करना या उसकी व्यवस्था का निर्देश देना।
प्रश्न 12.
निक्षेपग्रहीता के क्या – क्या कर्तव्य है? बताइए।
उत्तर:
निक्षेपग्रहीता के निम्नलिखित कर्त्तव्य होते हैं –
  1. निक्षेपित माल की देखभाल करना।
  2. निक्षेप की शर्तों के विपरीत कार्य न करना।
  3. निक्षेप के माल को अपने माल से न मिलाना।
  4. निक्षेपित वस्तु को वापस करना।
  5. किसी वृद्धि अथवा लाभ को वापस करना।
प्रश्न 13.
गिरवी किसे कहते हैं? गिरवीग्राह्य के अधिकार बताइए।
उत्तर:
गिरवी – जब किसी माल का निक्षेप किसी ऋण या वचन के पालन के लिए प्रतिभूति के रूप में किया जाता है तो उसे गिरवी. कहते हैं।
गिरवीग्राही के अधिकार:
जिस व्यक्ति के पास माल गिरवी रखा जाता है उसे गिरवीग्राही कहते हैं। इसके निम्नलिखित अधिकार होते हैं –
  1. ऋण की राशि के लिए माल रोकना।
  2. असाधारण व्यय पाने का अधिकार।
  3. उचित सूचना देकर माल को विक्रय करने का अधिकार।
  4. गिरवीकर्ता पर वाद प्रस्तुत करने का अधिकार।
प्रश्न 14.
गिरवीकर्ता के अधिकार एवं कर्त्तव्य बताइए।
उत्तर:
गिरवीकर्ता के अधिकार:
  1. वह गिरवी रखे माल को बकाया ऋणों, ब्याज तथा खर्चे का भुगतान करके प्राप्त कर सकता है।
  2. गिरवी रखी वस्तु को क्षति पहुँची है तो उसकी उचित क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार।
  3. ऋण का उचित समय पर भुगतान न होने पर माल को बेचने का अधिकार।
गिरवीकर्ता के कर्तव्य:
  1. माल के समस्त दोषों को प्रकट करना।
  2. यथासमय अपने ऋण का भुगतान कर देना।
  3. माल के विक्रय से पूर्व वचन पूरा करके या भुगतान करके माल छुड़ाना।
प्रश्न 15.
एजेन्सी के आवश्यक तत्वों को बताइए।
उत्तर:
एजेन्सी के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं –
  1. एजेन्सी का जन्म एजेण्ट तथा प्रधान के बीच ठहराव से हो सकता है।
  2. एजेन्सी के लिए किसी अनुबन्ध का होना आवश्यक नहीं है।
  3. एजेन्सी ठहराव में प्रधान में अनुबन्ध करने की क्षमता होना अनिवार्य है।
  4. एजेन्सी अनुबन्ध में किसी मूल्यवान प्रतिफल का होना आवश्यक है।
प्रश्न 16.
क्या कोई भी व्यक्ति एजेण्ट बन सकता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोई भी व्यक्ति एजेण्ट बन सकता है चाहे उसमें अनुबन्ध करने की क्षमता हो या नहीं। इसलिए अवयस्क, अस्वस्थ मस्तिष्क के व्यक्ति भी एजेन्ट नियुक्त किये जा सकते हैं क्योंकि एजेन्सी की स्थापना के लिए ठहराव का होना ही पर्याप्त है और अनुबन्ध का होना अनिवार्य नहीं है किन्तु अवयस्क या अस्वस्थ मस्तिष्क के व्यक्ति को एजेण्ट नियुक्त करना जोखिम भरा कार्य है।
प्रश्न 17.
एजेण्ट तथा नौकर में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
  1. एजेण्ट तीसरे पक्षकार के साथ अपने मालिक से अनुबन्धात्मक सम्बन्ध स्थापित करवाता है जबकि नौकर ऐसा नहीं करता है।
  2. एजेण्ट को पारिश्रमिक कमीशन या फीस के रूप में मिलता है जबकि नौकर को अपना पारिश्रमिक वेतन के रूप में मिलता है।
  3. एक एजेण्ट के अनेक सेवायोजक/प्रधान हो सकते हैं जबकि नौकर का सामान्यत: एक ही सेवायोजक होता है।
  4. एजेण्ट एक ही समय में नौकर नहीं हो सकता है जबकि नौकर कभी – कभी नौकर के साथ – साथ एजेण्ट भी बन सकता है।
प्रश्न 18.
एजेण्ट तथा ठेकेदार में अन्तर बताइए।
उत्तर:
एजेण्ट तथा ठेकेदार में अन्तर निम्नलिखित है –
  1. एजेण्ट अपने प्रधान/मालिक के निर्देशानुसार कार्य करने के लिए बाध्य होता है। जबकि एक ठेकेदार अपने अनुबन्ध के अनुसार कार्य करने के लिए उत्तरदायी होता है।
  2. एक एजेण्ट ठेकेदार नहीं हो सकता है किन्तु विशेष परिस्थितियों में ठेकेदार, एजेण्ट हो सकता है।
प्रश्न 19.
प्रदर्शन द्वारा एजेन्सी क्या है?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति अपने आचरण या शब्दों द्वारा किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित अथवा प्रदर्शन करता है कि कोई अन्य व्यक्ति उसका एजेण्ट है। जबकि वास्तव में वह व्यक्ति उसका एजेण्ट नहीं है तो ऐसा प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति अन्य के प्रति उत्तरदायी होगा। इसी को प्रदर्शन द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
प्रश्न 20.
पुष्टीकरण द्वारा एजेन्सी किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा बिना उसके अधिकार के किए गए किसी कार्य का अनुमोदन कर देता है तो अनुमोदन हो जाने के बाद यह माना जाता है कि अनाधिकृत रूप से कार्य करने वाला व्यक्ति कार्य करने के समय से ही वह कार्य करने हेतु अधिकृत एजेण्ट था। इसे पुष्टीकरण द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
प्रश्न 21.
एजेण्ट के विरुद्ध प्रधान के अधिकार बताइए।
उत्तर:
एजेण्ट के विरुद्ध प्रधान के अधिकार निम्नलिखित हैं –
  1. आदेश के अनुसार कार्य करवाना।
  2. गुप्त लाभों को प्राप्त करना।
  3. एजेण्ट के अनाधिकृत कार्यों को अस्वीकार करना या स्वीकार करना।
  4. एजेण्ट के अधिकारों को बढ़ाना, घटाना या समाप्त करना।
  5. एजेण्ट द्वारा दुराचरण करने पर पारिश्रमिक देने से इंकार करना।
  6. एजेण्ट से हिसाब मांगनी तथा एजेण्ट की लापरवाही तथा असावधानी से कार्य करने पर उससे क्षतिपूर्ति प्राप्त करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)

प्रश्न 1.
प्रस्ताव सम्बन्धी वैधानिक नियमों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रस्ताव सम्बन्धी वैधानिक नियम:
प्रस्ताव सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –
1. दो पक्षकारों का होना – प्रत्येक प्रस्ताव के लिए कम से कम दो पक्षकारों का होना आवश्यक है। कोई भी पक्षकार स्वयं के लिए प्रस्ताव नहीं करता है बल्कि प्रस्ताव हमेशा दूसरे व्यक्ति के लिए किया जाता है। प्रस्ताव में एक पक्षकार प्रस्ताव करने वाला तथा दूसरा पक्षकार जिसके सम्मुख प्रस्ताव रखा जाये।
2. प्रस्ताव का सकारात्मक अथवा नकारात्मक होना – प्रस्ताव सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकता है। प्रस्ताव में प्रस्तावक किसी भी कार्य को करने के उद्देश्य से प्रस्ताव करता है जिसके दो रूप होते हैं –
  • किसी कार्य को करने के लिए प्रस्ताव
  • किसी कार्य को न करने का प्रस्ताव।
3. प्रस्ताव वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए – प्रस्ताव को राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होने के लिए आवश्यक है कि प्रस्ताव वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए। प्रस्ताव से वैधानिक परिणाम की उत्पत्ति होनी चाहिए और उसे वैधानिक उत्तरदायित्वों का निर्माण करना चाहिए।
4. प्रस्ताव की शर्ते निश्चित होनी चाहिए – प्रस्ताव की शर्ते यदि अनिश्चित हैं तो उसकी स्वीकृति भी अनुबन्ध का निर्माण नहीं कर सकती है अतः प्रस्ताव की शर्ते अस्पष्ट एवं अनिश्चित न होकर स्पष्ट एवं निश्चित होनी चाहिए।
5. प्रस्ताव में संवहन होना आवश्यक है – प्रस्ताव तभी किया हुआ माना जाता है। जब प्रस्ताव उस व्यक्ति की जानकारी में आ जाता है, जिसको प्रस्ताव किया गया है। प्रस्ताव की जानकारी बिना जब कोई व्यक्ति स्वीकृति दे देता है तो वह स्वीकृति नहीं मानी जा सकती है।
प्रश्न 2.
स्वीकृति सम्बन्धी वैधानिक नियमों को बताइए।
उत्तर:
स्वीकृति सम्बन्धी वैधानिक नियम:
प्रस्ताव की स्वीकृति सम्बन्धी प्रावधान निम्नलिखित हैं –
1. किसी भी प्रस्ताव को वचन में परिवर्तित करने के लिए स्वीकृति पूर्ण होनी चाहिए और उसमें कोई शर्त नहीं होनी चाहिए।
2. यदि प्रस्तावक ने स्वीकृति की कोई विधि निश्चित कर दी है तो प्रस्ताव की स्वीकृति उसी विधि से दी जानी चाहिए। यदि प्रस्ताव में स्वीकृति की किसी निश्चित विधि का उल्लेख नहीं है तो स्वीकृति किसी उचित एवं प्रचलित विधि से दी जानी चाहिए।
3. स्वीकृति स्पष्ट उच्चारण करके या लिखित रूप में यो आचरण द्वारा दी जा सकती है।
4. यदि स्वीकृति देने की कोई तिथि निश्चित कर दी गई है तो स्वीकृति उस तिथि तक कभी भी दे देनी चाहिए। अन्य दशाओं में स्वीकृति उचित समय के अन्दर ही दी जानी चाहिए।
5. यदि कोई व्यक्ति प्रस्ताव को जाने बिना स्वीकृति देता है तो स्वीकृति का कोई महत्व नहीं होता है। लालमन शुक्ला बनाम गौरीदत्त के मामले में यह स्पष्ट किया गया है कि बिना प्रस्ताव की जानकारी के स्वीकृति देना व्यर्थ है।
6. स्वीकर्ता के मौन को प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं माना जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो प्रस्ताव की अस्वीकृति की सूचना देने की जिम्मेदारी का भार स्वीकर्ता पर रहता है।
7. स्वीकृति का संवहन उचित व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जिसे स्वीकृति के संवहन का अधिकार हो। अनाधिकृत व्यक्ति प्राप्त स्वीकृति की सूचना प्रभावहीन होती है। जब प्रस्ताव में स्वीकृति के संवहन के माध्यम का निर्धारण नहीं किया जाता है तो स्वीकृति उचित एवं प्रचलित ढंग से देनी चाहिए।
8. किसी प्रस्ताव के लिए उसकी स्वीकृति प्रस्ताव किए जाने के पहले नहीं दी जा सकती। अतः जब प्रस्ताव किसी व्यक्ति के समक्ष रख दिया जाय तभी उस पर स्वीकृति दिया जाना वैध होगा।
प्रश्न 3.
अनुबन्ध की समाप्ति से क्या आशय है? इसकी प्रमुख विधियों को बताइए।
उत्तर:
अनुबन्ध की समाप्ति:
अनुबन्ध की समाप्ति से आशय अनुबन्ध की उस स्थिति से है। जब अनुबन्ध के पक्षकारों का कोई दायित्व शेष नहीं बचता है। दूसरे शब्दों में, अनुबन्ध की समाप्ति तब होती है जब अनुबन्ध के पक्षकार अनुबन्ध के अधीन अपने – अपने दायित्वों को पूरा कर देते हैं अथवा अन्य किसी प्रकार से उन्हें समाप्त कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप पक्षकारों के अनुबन्धात्मक सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं।
अनुबन्ध समाप्ति की विधियाँ:
अनुबन्ध समाप्ति की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
  1. निष्पादन द्वारा अनुबन्ध की समाप्ति।
  2. पारस्परिक ठहराव या समाप्ति होने से अनुबन्ध की समाप्ति।
  3. अवधि समाप्त होने से अनुबन्ध की समाप्ति।
  4. राजनियम के प्रभावित होने से अनुबन्ध की समाप्ति।
  5. अनुबन्ध भंग या खण्डन द्वारा समाप्ति।
  6. निष्पादन की असम्भवता द्वारा समाप्ति।
प्रश्न 4.
निक्षेप क्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
निक्षेप का अर्थ:
जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अनुबन्ध के अन्तर्गत किसी विशिष्ट उद्देश्य से माल की सुपर्दगी करता है कि उसका उद्देश्य पूरा हो जाने पर माल सुपर्दगी देने वाले व्यक्ति को वापस कर दिया जायेगा अथवा उसके आदेशानुसार उसकी व्यवस्था कर दी जायेगी तो ऐसे अनुबन्ध को निक्षेप का अनुबन्ध कहते हैं। जो सुपर्दगी देने वाला व्यक्ति होता है उसे निक्षेपी कहते हैं और जो सुपर्दगी प्राप्त करने वाला व्यक्ति होता है उसे निक्षेपगृहीता कहते हैं।
निक्षेप के अनेक उदाहरण हैं, जैसे – मरम्मत के लिए स्कूटर, कार देना, धोबी को धुलाई के लिए कपड़े देना, दर्जी को सिलाई के हेतु कपड़े देना, स्टैण्ड पर वाहन को सुरक्षा हेतु खड़ा करना, टेण्ट हाउस से सामान उपयोग के लिए लाना, यात्रा हेतु टैक्सी किराये पर लेना, पुस्तकालय से पुस्तकें लेना आदि।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – अमन कक्षा 12 में पढ़ता है। वह पुस्तकालय से 15 दिन के लिए अध्ययन हेतु व्यवसाय अध्ययन की पुस्तक लेता है। यह निक्षेप अनुबन्ध है। इसमें सुपुर्दगी देने वाला पुस्तकालय निक्षेपी कहलायेगा तथा सुपुर्दगी प्राप्त करने वाला अमन निक्षेपगृहीता कहलायेगा।
प्रश्न 5.
एजेन्सी के निर्माण या स्थापना के तरीकों को बताइए।
अथवा
एजेन्सी संस्थापित करने की विभिन्न रीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एजेन्सी की स्थापना अथवा निर्माण:
एजेन्सी की स्थापना की रीतियाँ निम्नलिखित हैं –
1. स्पष्ट ठहराव द्वारा – जब एजेन्सी की नियुक्ति प्रधान द्वारा लिखित तथा मौखिके शब्दों द्वारा की जाती है, उसे स्पष्ट ठहराव द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
2. गर्भित अनुबन्ध द्वारा – पक्षकारों के आचरण या मामले की परिस्थितियों के करण जब एजेन्सी की स्थापना होती है तो इसे गर्भित अनुबन्ध द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
3. प्रदर्शन द्वारा एजेन्सी – जब कोई व्यक्ति अपने आचरण अथवा शब्दों द्वारा किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित अथवा प्रदर्शन करता है कि कोई अन्य व्यक्ति उसका एजेण्ट है। जबकि वास्तव में वह व्यक्ति उसका एजेण्ट नहीं है तो ऐसा प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति अन्य के प्रति उत्तरदायी होगा। इसी को प्रदर्शन द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
4. आवश्यकता द्वारा एजेन्सी – जब कुछ परिस्थितियाँ किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के लिए बिना उसको स्पष्ट अधिकार के एजेन्सी का कार्य करने को मजबूर या बाध्य कर देती है तो उसे आवश्यकता द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
5. पुष्टिकरण द्वारा – जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा बिना उसके अधिकार के किए गए किसी कार्य का अनुमोदन कर देता है तो अनुमोदन हो जाने के बाद यह माना जाता है कि अनाधिकृत रूप से कार्य करने वाला व्यक्ति कार्य करने के समय से ही वह कार्य हेतु अधिकृत एजेण्ट था। इसे पुष्टिकरण द्वारा एजेन्सी कहते हैं।
प्रश्न 6.
एक एजेण्ट के अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक एजेण्ट के निम्नलिखित अधिकार होते हैं –
1. पारिश्रमिक पाने का अधिकर – एजेण्ट तथा प्रधान के मध्य किए ठहराव के अनुसार एजेण्ट को निश्चित किया पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार है। यदि कोई पारिश्रमिक तय नहीं किया गया है तो भी उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकार है। किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में एजेण्ट निश्चित कार्य की समाप्ति से पहले पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता।
2. प्रधान की लापरवाही से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार – यदि प्रधान की अयोग्यता या लापरवाही के कारण कोई हानि होती है तो एक एजेण्ट उसकी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी होता है।
3. माल को मार्ग में रोकने का अधिकार – एजेण्ट द्वारा यदि अपने धन से प्रधान के लिए माल खरीदा है तो ऐसी स्थिति में वह माल को मार्ग में भी रोक सकता है जब तक उसका पूर्ण भुगतान न हो जाए। क्रेता के दिवालिया होने की दशा में भी एजेण्ट माल को मार्ग में रोक सकता है।
4. समय से पूर्व एजेन्सी समाप्त करने पर क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार – यदि प्रधान द्वारा बिना उचित कारण निर्धारित समय से पूर्व एजेन्सी समाप्त कर देता है तो इससे होने वाली हानि के लिए एजेण्ट उससे क्षतिपूर्ति कराने का अधिकारी है।
5. हानिरक्षा कराने का अधिकार – एजेण्ट अपने नियोक्ता का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए एजेन्सी का काम करते हुये यदि उसे कुछ हानि उठानी पड़ती है तो नियोक्ता को चाहिए कि वह एजेण्ट की हानि से रक्षा करे।
प्रश्न 7.
नियोक्ता के प्रति एजेण्ट के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियोक्ता के प्रति एजेण्ट के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं –
1. आदेशों के अभाव में परम्परा के अनुसार कार्य करना – नियोक्ता द्वारा किसी कार्य को रोकने के लिए कोई स्पष्ट आदेश दिया हो तो एजेण्ट को परम्परागत नीति से ही कार्य करना चाहिए। यदि एजेण्ट किसी अन्य रीति से कार्य करता है और कोई हानि हो जाती है, तो उसे नियोक्ता की क्षतिपूर्ति करनी पड़ेगी और यदि लाभ होता है तो उसका हिसाब देना होगा।
2. कार्य को पूर्ण योग्यता व परिश्रम से करना – एजेण्ट का कर्तव्य है। कि वह सौंपे गए कार्य को पूर्ण योग्यता एवं परिश्रम के साथ करे। उसे सौंपे गए कार्य को अपना समझकर करना चाहिए।
3. माल तथा धन की सुरक्षा करना – नियोक्ता के माल एवं धन की सुरक्षा करना। एजेण्ट का कर्तव्य होता है। इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही नुकसान का कारण बन सकती है। एजेण्ट को माल एवं धन की सुरक्षा अपना मानकर करनी चाहिए।
4. अचित हिंसाब रखना – एक एजेण्ट को अपने कार्यों का उचित रीति से हिसाब रखना चाहिए तथा प्रधान द्वारा माँग करने पर उसे हिसाब दिखाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
5. अधिकार का दुरुपयोग न करना – एजेण्ट का यह कर्तव्य है कि जो अधिकार उसे मालिक द्वारा प्रदान किए गए हैं उनका दुरुपयोग नहीं करे। उसे यह मानना चाहिए कि अधिकारों के दुरुपयोग से यदि कोई हानि होती है तो उसका भार उसे स्वयं उठाना पड़ेगा।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रतिफल से क्या आशय है? अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत प्रतिफल सम्बन्धी प्रमुख प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रतिफल से आशय:
प्रतिफल से आशय “कुछ के बदले कुछ” अन्य शब्दों में, प्रतिफल से तात्पर्य उस मूल्य से है, जो वचनदाता के वचन के बदले वचनगृहीता द्वारा दिया जाता है।
विद्वान ब्लैक स्टोन के अनुसार – ”प्रतिफल अनुबन्ध करने वाले एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दिया जाने वाला वचन है।”
अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2(a) के अनुसार – ”जब वचनदाता की इच्छा पर वचनगृहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किया जाने वाला कार्य अथवा विरति या अलग रहना ही प्रतिफल कहलाता है। जो भूत, वर्तमान अथवा भविष्य काल से सम्बन्धित हो सकता है।”
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – हर्ष अपने मकान को बेचने हेतु विष्णु से 5,00,000 का ठहराव करता है। यहाँ हर्ष के लिए प्रतिफल 5,00,000 है तथा विष्णु के लिए प्रतिफल मकान है।
प्रतिफल के सम्बन्ध में वैधानिक नियम:
अनुबन्ध के अन्तर्गत प्रतिफल सम्बन्धी प्रावधान/नियम निम्नलिखित हैं –
1. प्रतिफल वचनदाता की इच्छा पर होना चाहिए। स्वेच्छा से वचनदाता की इच्छा के अभाव में किया गया कार्य प्रतिफल के रूप में नहीं माना जा सकता है।
2. प्रतिफल से वचनदाता को स्वयं को लाभ होना आवश्यक नहीं है।
3. प्रतिफल वचनदाता अथवा किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किया जा सकता है।
4. प्रतिफल सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों में से किसी भी प्रकार से हो सकता है अर्थात वचनेदाता की इच्छा के अनुसार किसी कार्य को करने पर सकारात्मक और न करने पर प्रतिफल नकारात्मक हो सकता है।
5. प्रतिफल भूत, वर्तमान या भावी किसी भी प्रकार का हो सकता है।
6. प्रत्येक अनुबन्ध में कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए। अनुबन्ध बहुत कम हो तो भी अनुबन्ध वैध हो सकता है।
7. प्रतिफल वास्तविक एवं मूल्यवान होना चाहिए। यदि प्रतिफल भ्रामक, अनिश्चित और असम्भुव या अस्पष्ट है तो वह वास्तविक और मूल्यवान प्रतिफल नहीं माना जा सकता है।
8. प्रतिफल वैध होना चाहिए। अवैधानिक प्रतिफल वाले ठहराव व्यर्थ होते हैं।
9. प्रतिफल सम्भव होने के साथ निश्चित भी होना चाहिए।
10. अनुबन्ध अधिनियम के द्वारा 25 के अनुसार – “बिना प्रतिफल के ठहराव व्यर्थ माना जाता है। अत: प्रत्येक ठहराव में प्रतिफल होना आवश्यक है अन्यथा व्यर्थ माना जाता है। लेकिन कुछ दशाओं में अनुबन्ध बिना प्रतिफल के भी वैध माना जाता है यदि –
  • अनुबन्ध किन्हीं निकट सम्बन्धियों के बीच स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह के कारण होय है और वह अनुबन्ध लिखित एवं रजिस्टर्ड होता है।
  • जब किसी व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के लिए स्वेच्छा से कुछ कार्य किया हो जिसे करने के लिए दूसरा व्यक्ति वैधानिक रूप से बाध्य था।
  • कालावधित तत्वों के भुगतान के लिए किया गया अनुबन्ध।
  • जब अनुबन्ध नि:शुल्क निक्षेप का हो।
  • जब कोई अनुबन्ध दान देने का हो तथा दान प्राप्तकर्ता ने दान प्राप्ति की आशा में कुछ दायित्व उत्पन्न कर लिए हों।

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