RBSE Rajasthan Board, NCERT Commerce Solutions For Class 11 and 12 - Business Studies (Commerce), Accountancy, Economics, Mathematics or Informatics Practices, Statistics and English. you can find all the solutions here. PDF Notes for Patwari exam 2020 Rajasthan Gk Topic wise notes Hindi Vyakaran complete Notes, Ptet Exam Syllabus.
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषाण काल से प्रारंभ होता है। आज से करीब एक लाख वर्ष पहले मनुष्य मुख्यतः बनास नदी के किनारे या अरावली के उस पार की नदियों के किनारे निवास करता था। आदिम मनुष्य अपने पत्थर के औजारों की मदद से भोजन की तलाश में हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते रहते थे, इन औजारों के कुछ नमूने बैराठ, रैध और भानगढ़ के आसपास पाए गए हैं। प्राचीनकाल में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में वैसा मरुस्थल नहीं था जैसा वह आज है। इस क्षेत्र से होकर सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहा करती थीं। इन नदी घाटियों में हड़प्पा, ‘ग्रे-वैयर’ और रंगमहल जैसी संस्कृतियां फली-फूलीं। यहां की गई खुदाइयों से खासकर कालीबंग के पास, पांच हजार साल पुरानी एक विकसित नगर सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा, ‘ग्रे-वेयर’ और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली हुई थीं। कालीबंगा सभ्यता जिला – हनुमानगढ़ नदी – सरस्वती(वर्तमान की घग्घर) समय – 3000 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक। राजस्थान की सबसे पुराणी सभ्यता काल – ताम्र युगीन ...
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RBSE - Class 12 Business Studies Chapter 4 अभिप्रेरणा: अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व, तकनीक एवं विचारधाराएँ
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अभिप्रेरणा: अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्व, तकनीक एवं विचारधाराएँ
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अभिप्रेरणा क्या है?
उत्तर:
अभिप्रेरणा से तात्पर्य उसे शक्ति से है, जो व्यक्तियों में काम करने की इच्छा जाग्रत करती है तथा अधिकतम कार्य सन्तुष्टि प्रदान करती है। यह एक मनोवैज्ञानिक उत्तेजना है।
प्रश्न 2.
मास्लो के आवश्यकता क्रम के नाम बताइये।
उत्तर:
शारीरिक आवश्यकताएँ
सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ
स्नेह या अपनत्व की आवश्यकताएँ
स्वाभिमानी या अहंकारी आवश्यकताएँ
आत्म विकास की आवश्यकताएँ
प्रश्न 3.
मास्को की शारीरिक आवश्यकता में मुख्यतः कौन – कौन – सी आवश्यकता शामिल होती हैं?
उत्तर:
मास्को की शारीरिक आवश्यकताओं में भोजन, कपड़ा मकान, यौन सम्पर्क, स्वच्छ हवा, धूप आदि सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 4.
अभिप्रेरणा की दो तकनीक के नाम बताइए?
उत्तर:
अवित्तीय तकनीक (पद एवं सेवा सुरक्षा, प्रशंसा एवं सम्मान आदि)।
प्रश्न 5.
हर्जबर्ग के आरोग्य तत्वों को बताइये।
उत्तर:
संस्था की नीतियाँ, संस्था का प्रशासन, कार्य दशाएँ, पर्यवेक्षण, पारस्परिक वैयक्तिक सम्बन्ध, वेतन या मजदूरी, अनुषंगी लाभ, कार्य सुरक्षा आदि।
प्रश्न 6.
अवित्तीय अभिप्रेरणा के कुछ रूप बताइए।
उत्तर:
व्यक्तिगत सम्पर्क, पदोन्नति, विकास के अवसर, कार्य विस्तार, समूह चर्चा, सहभागिता, सम्मेलन एवं सभाएं, सामूहिक प्रशिक्षण आदि।
प्रश्न 7.
हर्जबर्ग के अभिप्रेरक तत्वों को लिखिए।
उत्तर:
उपलब्धियाँ, मान्यता एवं सम्मान, विकास, उत्तरदायित्व, व्यक्तिगत उन्नति, कार्य की प्रकृति।
प्रश्न 8.
अभिप्रेरण की जेड विचारधारा के प्रतिपादक कौन है?
उत्तर:
प्रो. विलियम जी. औची।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अभिप्रेरणा की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा की विशेषताएँ:
यह एक सतत् प्रक्रिया है।
यह मनोवैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है।
यह आवश्यकताओं से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है।
यह मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि है।
प्रश्न 2.
मास्लो की स्नेह अपनत्व की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्नेह या अपनत्व की आवश्यकता व्यक्ति के प्रेम, स्नेह, सहयोग, आत्मीयता, अपनत्व, मैत्री व सामाजिक सम्बन्ध के प्रति इच्छा को अभिव्यक्त करती है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी होने की वजह से इन आवश्यकताओं की। पूर्ति चाहता है। इस आवश्यकता की उत्पत्ति शारीरिक एवं सुरक्षात्मक आवश्यकता की उचित स्तर तक सन्तुष्टि होने के बाद होती है। यदि व्यक्ति की अपनत्व या सामाजिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं होती है, तो वह असहयोग, विरोध करने को तत्पर हो जाता है।
प्रश्न 3.
मेक् ग्रेगर की ‘वाई’ विचारधारा की प्रमुख मान्यताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मेक् ग्रेगर की ‘वाई’ विचारधारा की प्रमुख मान्यताएँ निम्नलिखित है –
कर्मचारी कार्य को स्वाभाविक एवं सहज क्रिया मानते हैं तथा कार्य करने से सुख एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है।
कर्मचारी महत्वाकांक्षी होते है तथा उत्तरदायित्वों को स्वीकार करते हैं।
कर्मचारी कल्पनाशील एवं सृजनशील होते हैं तथा नवीन विधियों एवं परिवर्तनों को स्वागत करते हैं।
कर्मचारी अपनी क्षमता एवं योग्यता का अधिकतम सद्प्रयोग करना चाहते हैं तथा स्वप्रेरित एवं स्वनियन्त्रित होते हैं।
कर्मचारी आधारभूत आवश्यकताओं की अपेक्षा स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास हेतु कार्य करते हैं।
प्रश्न 4.
मेक् ग्रेगर की ‘एक्स’ विचारधारा की प्रमुख मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेक ग्रेगर की ‘एक्स’ विचारधारा की प्रमुख मान्यताएँ निम्नलिखित है –
इस विचारधारा के अनुसार कर्मचारी अपनी इच्छा से कार्य करना नहीं चाहता है, क्योंकि काम को टालने में उसे सुख व सन्तोष की प्राप्ति होती है।
एक औसतन कर्मचारी स्वभावत: आलसी प्रवृत्ति का होता है एवं वह कम – से – कम काम करना चाहता है।
सामान्यतः कर्मचारी महत्वांकाक्षी नहीं होते हैं तथा ये उत्तरदायित्वों से दूर रहना पसन्द करते हैं।
संगठन में कर्मचारी परम्परागत ढंग से ही कार्य करना पसन्द करता है, उसके अन्दर सृजनशीलता का अभाव पाया जाता है।
कर्मचारियों से कार्य कराने हेतु दण्ड, भय, प्रताड़ना का सहयोग लिया जाता है।
कर्मचारी आर्थिक एवं वित्तीय लाभों के लिये कार्य करते हैं।
प्रश्न 5.
वित्तीय अभिप्रेरणा का उल्लेख कीजिय।
उत्तर:
वित्तीय – अभिप्रेरणा:
कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय अभिप्रेरणा को ही अपनाया जाता है। यह अभिप्रेरणा का सबसे लोकप्रिय तरीका है। वित्तीय अभिप्रेरणा में उच्च वेतन, वेतन वृद्धि, बोनस, लाभों की हिस्सेदारी, पेंशन, ग्रेच्युटी, बीमा, भविष्य निधि, अंशदान, विशेष वेतन वृद्धि आदि को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 6.
आरोग्य एवं अभिप्रेरक घटकों के प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आरोग्य घटक:
संस्था की नीतियाँ, संस्था का प्रशासन, कार्य दशाएँ, पर्यवेक्षण, पारस्परिक वैयक्तिक सम्बन्ध, वेतन व मजदूरी, अनुषंगी लाभ, कार्य सुरक्षा।
अभिप्रेरण घटकं:
उपलब्धियाँ, मान्यता एवं सम्मान, विकास, उत्तरदायित्व, व्यक्तिगत उन्नति, कार्य की प्रकृत्ति।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अभिप्रेरणा से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा का अर्थ:
अभिप्रेरणा का तात्पर्य उस शक्ति से है, जो व्यक्तियों में काम करने की इच्छा जाग्रत करती है। व्यवसाय के सन्दर्भ में इसका अर्थ उस प्रक्रिया से है जो अधीनस्थों को निर्धारित सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वांछित रूप से कार्य करने के लिए तैयार करती है।
स्टेनले वेन्स के अनुसार – “कोई भी ऐसी भावना या इच्छा जो किसी व्यक्ति की इच्छा को इस प्रकार परिवर्तित कर दें कि वह व्यक्ति कार्य करने को के अनुसार, हो जाये, उसे अभिप्रेरणा कहते हैं।”
मेक फारलैण्ड – “अभिप्रेरणा मूलत: मनोवैज्ञानिक धारणा है। इसका सम्बन्ध किसी कर्मचारी या अधीनस्थ में कार्य कर रही उन शक्तियों से है जो उसे किसी कार्य को विधिवत् तरीके से करने या न करने हेतु प्रेरित करती है।”
अभिप्रेरणा की विशेषताएँ:
अभिप्रेरणा के अर्थ, परिभाषाएँ, तथा विभिन्न विचार बिन्दुओं का विश्लेषण करने पर इसकी निम्न विशेषताएँ सामने आती हैं –
आन्तरिक अनुभूति –
आवेग, प्रवृत्ति, इच्छाएँ, प्रयास तथा मनुष्य की आवश्यकताएँ जो कि आन्तरिक हैं, मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करती हैं, जैसे किसी व्यक्ति की इच्छा हो सकती है कि उसके पास आरामेदह घर, कार और समाज में उसका मान – सम्मान हो। इस प्रकार की इच्छाएँ मानव की आन्तरिक इच्छाएँ कहलाती
लक्ष्य आधारित व्यवहार को जन्म देना –
अभिप्रेरणा मानव को इस प्रकार से व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करती है कि वह लक्ष्य को हासिल कर सके। जैसे – किसी व्यक्ति को पदोन्नति की लालसा है तो वह अधिक कुशलतापूर्ण कार्य करेगा ताकि उसे पदोन्नति मिल सके।
अभिप्रेरणा का सकारात्मक और नकारात्मक होना –
प्रबन्धक संस्था में कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए स्थितियों के अनुसार सकारात्मक या नकारात्मक दोनों प्रकारों का प्रयोग करते हैं। सकारात्मक अभिप्रेरणा के अन्तर्गत वेतन वृद्धि, पदोन्नति, प्रशंसा आदि को शामिल किया जाता है। जबकि सजा, वेतन वृद्धि रोकना, पदावनति, चेतावनी पत्र देना आदि नकारात्मक अभिप्रेरणा के तरीके हैं। सकारात्मक अभिप्रेरणा से लोगों की आवश्यकताएँ सन्तुष्ट होती हैं, वहीं नकारात्मक अभिप्रेरणा में डर के कारण लोग सही और वांछित तरीकों से कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं।
जटिल प्रक्रिया –
मनुष्यों की अपेक्षाओं में विविधता पायी जाती है। उनके अपबोधन तथा प्रतिक्रियाओं में भिन्नता होने के कारण सभी पर किसी अभिप्रेरणा के समान प्रभाव की कल्पना नहीं कर सकते। इसलिए कई लोगों की मौद्रिक प्रेरणाओं द्वारा और कई को गैर – मौद्रिक प्रेरणाओं द्वारा अभिप्रेरित किया जाने के कारण उसे जटिल प्रक्रिया माना जाता है।
सतत् प्रक्रिया –
लोगों की आवश्यकताएँ असीमित एवं निरन्तर परिवर्तित यानी बदलने वाली होती हैं, क्योंकि एक आवश्यकता की सन्तुष्टि दूसरी आवश्यकता को जन्म देती है। इसलिए प्रबन्धकों को अभिप्रेरण का कार्य निरन्तर करना होता है।
अभिप्रेरक तत्वों की भिन्नता –
विभिन्न व्यक्तियों को एक तत्व अभिप्रेरित नहीं करता है, किसी को पद की चाहत होती है तो किसी को अधिक वेतन की। अतः अलग – अलग व्यक्ति अलग – अलग अभिप्रेरक तत्वों से प्रभावित होते हैं।
मनोबल ऊँचा उठना –
व्यक्तियों को अभिप्रेरित करके उनके मनोबल को ऊँचा उठाने का प्रयास किया जाता है।
मानवीय सन्तुष्टि का परिणाम –
अभिप्रेरणा मानवीय संतुष्टि का परिणाम है, क्योंकि जब मानव सन्तुष्ट होता है तो वह अधिक एवं अच्छा कार्य प्रदर्शित करता है।
प्रश्न 2.
अभिप्रेरणा को परिभाषित करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामान्य अर्थों में अभिप्रेरणा एक आन्तरिक इच्छा या भावना है जो किसी कर्मचारी को पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए उत्प्रेरित करती है। अभिप्रेरणा की विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं।
स्टेनले वेन्स के अनुसार – “कोई भी ऐसी भावना या इच्छा जो किसी व्यक्ति की इच्छा को इस प्रकार परिवर्तित कर दे कि वह व्यक्ति कार्य करने को प्रेरित हो जाये, उसे अभिप्रेरणा कहते हैं।” कण्ट्ज तथा ओ’ डोनेल के अनुसार – “लोगों को इच्छित तरीके से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना अभिप्रेरणा है।”
विलियम जी. स्कॉट शब्दों में – “अभिप्रेरणा का तात्पर्य लोगों को इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कार्य करने हेतु प्रेरित करने की प्रक्रिया से है।”
अभिप्रेरणा का महत्व:
अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए कार्य करने को प्रोत्साहित करती है, ताकि वे संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उत्साहपूर्वक कार्य कर सके। सरल शब्दों में, कार्य करने की इच्छा पैदा करना ही अभिप्रेरणा है। अभिप्रेरणा के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा अच्छी प्रकार समझा जा सकता हैं –
संगठन के सफल निष्पादन में सहायक –
अभिप्रेरणा से कर्मचारियों के निष्पादन स्तर में सुधार होता है जो संगठन के सफल निष्पादन में सहायक होता है, क्योंकि एक अभिप्रेरित कर्मचारी अपनी सारी ऊर्जा संगठन के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगा देता है।
कर्मचारियों में सकारात्मकता लाना –
अभिप्रेरणा कर्मचारियों के नकारात्मक अथवा तटस्थ दृष्टिकोण को सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सकारात्मक दृष्टिकोण में रूपान्तरित करने में सहायक होती है।
कर्मचारियों की संस्था को छोड़कर जाने की दर को कम करना –
अभिप्रेरणा कर्मचारियों की संस्था को छोड़कर जाने की दर को कम करती है। इसके परिणामस्वरूप नयी नियुक्ति तथा प्रशिक्षण लागत में कमी आती है।
कर्मचारी अनुपस्थिति की दर में कमी –
अनुपस्थिति के कुछ महत्वपूर्ण कारण अनुपयुक्त कार्य स्थितियाँ, अपर्याप्त पारिश्रमिक, प्रतिष्ठा का अभाव, पर्यवेक्षकों के साथ बुरे सम्बन्ध तथा सहकर्मी आदि हैं। विश्वस्त अभिप्रेरणात्मक व्यवस्था के द्वारा इन सभी कमियों को दूर किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप कर्मचारी अनुपस्थिति की दर में कमी आयेगी।
परिवर्तनों के विरोधों में कमी –
अभिप्रेरणाओं के कारण कर्मचारी संस्था में किये जाने वाले परिवर्तनों का बहुत कम विरोध करते है, क्योंकि कर्मचारी यह समझ जाते हैं कि यदि संस्था में परिवर्तन नहीं किए जायेंगे तो न केवल संस्था की उन्नति में बाधा आयेगी, बल्कि उनकी स्वयं की प्रगति भी रुक जायेगी। अतः अभिप्रेरण के कारण ही कर्मचारी संस्थागत परिवर्तनों को स्वीकार कर लेते हैं।
कार्य करने की इच्छा –
अभिप्रेरणा लोगों में कार्य करने की इच्छाशक्ति जाग्रत करती है। कोई भी व्यक्ति काम करने में कितना ही सक्षम क्यों न हो, जब तक उसमें कार्य करने की इच्छा नहीं होगी तब तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। अभिप्रेरणा द्वारा ही कर्मचारी प्रबन्ध के साथ अधिकतम सहयोग करते हैं।
कार्य कुशलता में वृद्धि –
संगठन में कार्यरत कर्मचारी अपने ज्ञान और कौशल में वृद्धि कर यथासम्भव कार्यकुशल होने का प्रयास करके संगठन की उत्पादकता में वृद्धि के प्रयास करता है।
संसाधनों का बेहतर उपयोग –
किसी भी संस्था में भौतिक व वित्तीय संसाधनों की उपयोगिता मानवीय संसाधन की योग्यता पर निर्भर करती है। अभिप्रेरित कर्मचारी मशीनों व अन्य दूसरी सामग्री का सही इस्तेमाल कर बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है और अपव्यय में कमी आती है।
सौहार्दपूर्ण वातावरण –
कर्मचारियों को वित्तीय और गैर-वित्तीय प्रेरणाओं के माध्यम से अभिप्रेरित किया जाता है जिससे उनकी इच्छाओं की सन्तुष्टि होती है और औद्योगिक विवादों में कमी आने से बेहतर व सौहार्दपूर्ण कार्य वातावरण की स्थापना होती है।
प्रश्न 3.
अभिप्रेरण की विभिन्न विचारधाराओं को समझाइए।
उत्तर:
अभिप्रेरण की विभिन्न प्रबन्ध विचारकों, मनोवैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों ने विभिन्न विचारधारायें प्रतिपादितं की हैं। इन विचारकों में अब्राहम एच. मास्लो, हर्जबर्ग, मेक ग्रेगर, औची, उर्विक, मेरी पार्कर फॉलेट, रेन्सिस लिकर्ट, ब्रुम हेराल्ड, जे. लेबिट आदि का नाम प्रमुख रूप से शामिल है।
अभिप्रेरणा की कुछ प्रमुख विचारधारायें निम्न प्रकार हैं –
(i) मास्लो की आवश्यकता क्रम पर आधारित विचारधारा मनोवैज्ञानिक अब्राहम एच. मास्लो ने सन् 1943 में अभिप्रेरणा की आवश्यकता क्रमबद्धता विचारधारा का प्रतिपादन किया था। यह विचाराधारा इस मान्यता पर आधारित है कि मनुष्य की आवश्यकतायें अनन्त हैं। एवं उन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु प्रयत्न करने को तत्पर रहता है। मास्लो के अनुसार यदि यह जानकारी कर ली जाये कि किस कर्मचारी की क़ौन-सी आवश्यकता अधूरी है तो उस अधूरी आवश्यकता को पूर्ण करके व्यक्ति को अभिप्रेरित किया जा सकता है। इस विचारधारा में मास्लो ने आवश्यकता को उत्प्रेरणा का आधार माना है तथा आवश्यकताओं को पाँच भागों में बाँटा है, जो निम्नवत् हैं –
शारीरिक आवश्यकताएँ भोजन, पानी, कपड़ा, हवा, मकान, यौनसम्पर्क)।
सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ (भय, बीमारी, जोखिम, हानि से सुरक्षा)।
स्नेह या अपनत्व की आवश्यकताएँ (प्रेम, स्नेह, सहयोग, मैत्री, अपनत्व)।
स्वाभिमान या अहंकारी आवश्यकताएँ (संस्था में पद, मान, स्थिति, मान्यता, प्रतिष्ठा, स्वतन्त्रता, निर्णयन अधिकार)।
आत्मविकास की आवश्यकताएँ (प्रतिभा व क्षमता का समग्र विकास)।
(ii) हर्जबर्ग की द्विघटक विचारधारा –
मनोवैज्ञानिक फ्रेडरिक हर्जबर्ग एवं इनके साथियों ने Psychological Service Pittsburgh में करीब 200 इंजीनियर्स पर शोध किया एवं उनसे कार्य के बारे में विचार जानकर इस विचारधारा का प्रतिपादन किया। इस विचारधारा की मान्यता है कि मनुष्य की आवश्यकताओं को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है। उन्होंने आवश्यकताओं के प्रथम समूह को स्वास्थ्य तत्वों और द्वितीय समूह को अभिप्रेरक तत्वों के नाम से पुकारा है। स्वास्थ्य तत्वों का सम्बन्ध वातावरण से होता है। तथा ये व्यक्ति को असन्तुष्ट होने से रोकते हैं। अभिप्रेरक तत्व मनुष्य को अधिक कुशलता के साथ कार्य करने के लिए। प्रेरित करते हैं। दोनों प्रकार के घटक अग्र हैं –
स्वास्थ्य/आरोग्य घटक –
संस्था की नीतियाँ, संस्था का प्रशासन, कार्य दशायें, पर्यवेक्षण, पारस्परिक वैयक्तिक सम्बन्ध, वेतन या मजदूरी, अनुपगी लाभ, कार्य सुरक्षा।
अभिप्रेरक घटक –
उपलब्धियाँ, मान्यता एवं सम्मान, विकास, उत्तरदायित्व व्यक्तिगत उन्नति, कार्य की प्रकृति।
(iii) मेक् ग्रेगर की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा –
अभिप्रेरणा की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा का प्रतिपादक, लेखक एवं मनोवैज्ञानिक डगलस मेक् ग्रेगर ने अपनी पुस्तक (Human Side of Enterprises) में किया था। इस विचारधारा में मानव व्यवहार को दो भागों में विभाजित करके ऋणात्मक व्यवहार को ‘एक्स’ और धनात्मक व्यवहार को ‘वाई’ विचारधारा के नाम से पुकारा गया है। ‘एक्स’ विचारधारा मानव व्यवहार के प्रति निराशावादी तथा नकारात्मक दृष्टिकोण रखती है तथा कर्मचारियों पर कठोर नियन्त्रण और गहन निरीक्षण पर बल देती है। ‘वाई’ विचारधारा मानव व्यवहार के प्रति सकारात्मक एवं आशावादी दृष्टिकोण रखती है तथा कर्मचारियों पर न्यूनतम नियंत्रण एवं निर्देशन पर बल देती है।
(iv) विलियम औची की ‘जेड’ विचारधारा –
अभिप्रेरण की इस विचारधारा को प्रतिपादित करने का श्रेय अमेरिकन प्रबन्ध शास्त्री प्रो. विलियम जी. औची को जाता है। इन्होंने इसका वर्णन अपनी पुस्तक सन् 1981 में प्रकाशित “Theory Z: How American Business can Meet the Japanese Challenge” में किया हैं। प्रो. औची ने अमेरिका, एवं जापान की कई बड़ी – बड़ी कम्पनियों की प्रबन्ध व्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात् ‘जेड’ विचारधारा का प्रतिपादन किया। जेड़’ विचारधारा जापानी एवं अमेरिकी प्रबन्ध के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित हैं। इसमें अमेरिकी तथा जापानी कम्पनियों की अच्छाइयों को शामिल किया गया है। इस विचारधारा में प्रो. औची ने जापानी प्रबन्ध की उन विशेषताओं को उजागर किया है, जिसकी वजह से यह अमेरिकी प्रबन्ध से श्रेष्ठ माना जाता है। इस विचारधारा के अनुसार विश्वास, मर्मज्ञता तथा आत्मीयता तीन तत्व अभिप्रेरक घटक हैं।
प्रश्न 4.
मास्लो की अभिप्रेरणा विचारधारा को सविस्तार समझाइए।
उत्तर:
मास्लो की आवश्यकता क्रमबद्धता विचारधारा:
मनोवैज्ञानिक अब्राहम एच. मास्लो ने सन् 1943 में अभिप्रेरणा की आवश्यकता क्रमबद्धता विचारधारा का प्रतिपादन किया था। यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त हैं एवं उन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु प्रयत्न करने को तत्पर रहता है। मास्लो के अनुसार, यदि यह जानकारी कर ली जाये कि किस कर्मचारी की कौन – सी आवश्यकता अधूरी है तो उस अधूरी आवश्यकता को पूर्ण करके व्यक्ति को अभिप्रेरित किया जा सकता है। इस विचारधारा में मास्लो ने ‘आवश्यकता’ को उत्प्रेरणा का आधार माना है तथा आवश्यकताओं को पाँच भागों में बांटा है, जो निम्न प्रकार हैं –
शारीरिक आवश्यकताएँ –
मानवीय जीवन यापन की मूल आवश्यकताएँ भोजन, पानी, कपड़ा, हवा, मकान, यौन सम्बन्ध है। ये. आवश्यकताएँ सर्वाधिक आवश्यक, प्रभावशाली एवं शक्तिशाली मानी जाती हैं। जिनकी पूर्ति मनुष्य हर स्थिति में करना चाहता है। मनुष्य की ये आवश्यकताएँ ज्यों ही सन्तुष्ट हो जाती हैं, फिर ये आवश्यकताएँ उसे अभिप्रेरित नहीं करती हैं।
सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ –
जब मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएँ सन्तुष्ट हो जाती हैं तो वह इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बारे में विचार करता है। जब किसी व्यक्ति को भावी शारीरिक या मानसिक संकट का भय उत्पन्न होता है तो वह अपने भविष्य को सुरक्षा करना चाहता है। भविष्य में आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक संकटों के प्रति सुरक्षा के लिये आश्वस्त होना ही इन आवश्यकताओं की उत्पत्ति का मुख्य कारण है। इनमें आजीवन आय का साधन, बीमा, पेन्शन, भविष्य निधि आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।
स्नेह या अपनत्व आवश्यकताएँ –
शारीरिक एवं सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बाद मनुष्य की स्नेह या अपनत्व की आवश्यकताएँ उत्पन्न होती हैं। इसमें प्रेम, स्नेह, सहयोग, मैत्री, अपनत्व की आवश्यकता शामिल होती है। यदि व्यक्ति की स्नेह या अपनत्व की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि नहीं होती है तो वह असहयोग, विरोध करने को तत्पर हो जाता है।
स्वाभिमान या अहंकारी आवश्यकताएँ –
स्नेह या अपनत्व आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के पश्चात् व्यक्ति की अहम एवं स्वाभिमान की आवश्यकताएँ उत्पन्न होती हैं। इन आवश्यकताओं में सम्मान, प्रशंसा, मान्यता, ख्याति, स्वतन्त्रता, निर्णयन अधिकार आदि सम्मिलित है। मास्लो के अनुसार, जब व्यक्ति अपने सम्बन्ध बनाने की आवश्यकता पूरी करने लगता है तो उसमें उनसे तथा अन्य व्यक्तियों में सम्मान पाने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
आत्मविकास आवश्यकताएँ –
आत्मविकास की आवश्यकता सभी आवश्यकताओं का चरम बिन्दु है। इस आवश्यकता की पूर्ति व्यक्ति को काम तथा जीवन में सन्तुष्टि प्रदान करती है। इसमें क्षमता, सृजनशीलता और उपलब्धि के माध्यम से अपने सामर्थ्य को पहचानने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की आवश्यकता कहा जा सकता है। मास्लो ने इस आवश्यकता का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “एक संगीतकार को संगीत बनाना चाहिए, एक पेन्टर को पेन्ट करना चाहिए, एक क़वि को कविता लिखनी चाहिए, यदि वह अन्ततोगत्वा प्रसन्न होना चाहता है, जो भी एक मनुष्य बन सकता है उसे बनना चाहिए।”
प्रश्न 5.
हर्जबर्ग की अभिप्रेरणा विचारधारा की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर:
हर्जबर्ग की द्विघटक विचारधारा:
हर्जबर्ग ने अभिप्रेरणा की एक नवीन विचारधारा का विकास किया। इस विचारधारा को स्वास्थ्य या आरोग्य विचारधारा के नाम से भी जाना जाता है। हर्जबर्ग एवं इनके साथियों ने ‘Psychological Service Pittsburgh’ में 200 इन्जीनियरों की कार्य मनोवृत्ति पर किये गये शोध के आधार पर ऐसे घटकों की पहचान की जो उन्हें असन्तुष्ट और सन्तुष्ट बनाते हैं। हर्जबर्ग का इस अध्ययन का महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि मानवीय अभिप्रेरण को प्रभावित करने वाले सन्तुष्ट घटक तथा असन्तुष्ट घटक एक – दूसरे के बिल्कुल भिन्न होते हैं। ऐसे घटक जो असन्तुष्टि उत्पन्न करते हैं, उन घटकों से सर्वथा अलग हैं जिनका परिणाम सन्तुष्टि होता है।
इस तरह हर्जबर्ग का तर्क है कि सन्तुष्टि सिर्फ असन्तुष्टि का अभाव नहीं है। एक व्यक्ति असन्तुष्टि महसूस नहीं करता है, भले ही वह सन्तुष्ट नहीं है। हर्जबर्ग के मतानुसार, जब व्यक्ति कार्य स्थल पर अपने कार्य से असन्तुष्टि प्राप्त करता है तो उस असन्तुष्टि का कारण वह वातावरण है जहाँ वह काम करता है। इस वातावरण को जो घटक प्रभावित करते हैं, उन्हें स्वास्थ्य या आरोग्य घटक कहते हैं। ये घटक व्यक्ति को अभिप्रेरित नहीं करते हैं, किन्तु उसे असन्तुष्ट होने से रोकते हैं। अर्थात् जो कर्मचारियों की सन्तुष्टि को बनाये रखने हेतु आवश्यक होते हैं। हर्जबर्ग के स्वास्थ्य घटकों में संस्था की नीतियाँ, संस्था का प्रशासन, कार्य दशायें, पर्यवेक्षण, पारस्परिक वैयक्तिक सम्बन्ध, वेतन या मजदूरी, अनुषंगी लाभ, कार्य सुरक्षा आदि तत्व शामिल होते हैं।
ये घटक कर्मचारी की कार्यक्षमता को बनाये रखते हैं, इसी कारण इन्हें अनुरक्षण घटक भी कहते हैं। हर्जबर्ग ने सन्तुष्टि प्रदान करने वाले घटकों को ‘अभिप्रेरक घटक’ के नाम से पहचान दी है। ये सभी घटक कार्य से सम्बन्धित घटक होते हैं। इन्हें सन्तुष्टि प्रदान करने वाले घटक भी कहा जाता है। ये सभी घटक मनुष्य को अधिक कुशलता के साथ कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं। इन सभी घटकों को हर्जबर्ग एवं उनके सहयोगियों ने कार्य के आन्तरिक घटक माना है जिनमें उपलब्धियाँ, मान्यता एवं सम्मान, विकास, उत्तरदायित्व, व्यक्तिगत उन्नति, कार्य की प्रकृति आदि बिन्दुओं को सम्मिलित किया गया है। हर्जबर्ग ने बताया कि अभिप्रेरक तत्वों से व्यक्ति को अभिप्रेरित किया जा सकता है, स्वास्थ्य तत्वों से नहीं।
प्रश्न 6.
विलियम औची की ‘जेड’ विचारधारा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विलियम औची की ‘जेड’ विचारधारा –
अभिप्रेरण की इस विचारधारा को प्रतिपादित करने का श्रेय अमेरिकन प्रबन्ध शास्त्री प्रो. विलियम जी. औची को जाता है। इन्होंने इसका वर्णन सन् 1981 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “Theory Z: How American Business can Meet the Japanese Challenge” में किया है। प्रो. औची ने अमेरिका एवं जापान की कई बड़ी – बड़ी कम्पनियों की प्रबन्ध व्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात् ‘जेड’ विचारधारा का प्रतिपादन किया। ‘जेड’ विचारधारा जापानी एवं अमेरिकी प्रबन्ध के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। इसमें अमेरिकी तथा जापानी कम्पनियों की अच्छाइयों को शामिल किया गया है। इस विचारधारा में प्रो. औची ने जापानी प्रबन्ध की न विशेषताओं को उजागर किया है, जिसकी वजह से यह अमेरिकी प्रबन्ध से श्रेष्ठ माना जाता है। इस विचारधारा के अनुसार विश्वास, मर्मज्ञता तथा आत्मीयता तीन तत्व अभिप्रेरक घटक हैं।
‘जेड’ विचारधारा की मान्यताएँ:
आजीवन रोजगार योजना –
प्रो. औची के मुताबिक कर्मचारियों को आजीवन रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए। जापानी संस्थानों में एक बार चयन के पश्चात् मंदीकाल में भी कम्पनियाँ किसी कार्मिक की छंटनी या जबरन छुट्टी नहीं करती है। वहाँ की संस्थायें हानि उठाकर भी अपने कार्मिकों को बनाये रखती हैं। इससे कर्मचारी संगठन के वफादार एवं निष्ठावान बनते हैं।
मंदगति से मूल्यांकन एवं पदोन्नति –
औची ने अपने निष्कर्षों में बताया कि जापानी प्रबन्धक यह मानते हैं कि उत्पादकता किसी एक व्यक्ति की देन न होकर सामूहिक प्रयासों का परिणाम होती है एवं उनकी मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति के गुण – अवगुण का मूल्यांकन करने के लिये 1 – 2 वर्ष की अवधि अत्यन्त अल्प है। अत: वे दीर्घकालीन लगभग 10 वर्षों की सेवा के पश्चात् अपने कर्मचारियों का प्रथम कार्य मूल्यांकन करते हैं।
जीवन वृत्ति पथ –
औची की विचारधारा यह मानती है कि कर्मचारियों की जीवन वृत्ति पथ का निर्धारण गैर – विशिष्टीकृत आधार पर होना चाहिए। जापान में यह प्रयास रहता है कि प्रबन्धक समस्त विभागों के कार्यों को समझे। इस हेतु कार्य परिवर्तन की नीति होती है। जापान में प्रबन्धकों की विशेषज्ञता पर अधिक बल नहीं दिया जाता है।
मानवीयता पर बल –
विलियम औची की यह विचारधारा बताती है कि प्रबन्धकों को कर्मचारियों पर पूर्ण ध्यान देना चाहिए। उन्हें अपने कर्मचारियों का ध्यान केवल कार्यस्थल तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। प्रबन्धकों की कर्मचारी के साथ – साथ उसके परिवार, उसकी रुचियों, एवं महत्वाकांक्षाओं आदि का ध्यान रखना चाहिए एवं कर्मचारी के साथ सदैव मानवीयता पूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
सामूहिक निर्णयन –
यह विचारधारा इस तथ्य पर जोर देती है कि संस्था के कर्मचारियों को निर्णयन में भागीदार बनाया जाना चाहिए। जो निर्णय कर्मचारियों से जुड़े हुए हों एवं प्रत्यक्ष रूप से उनको प्रभावित करते हों ऐसे निर्णयों के लिये सामूहिक निर्णयन प्रक्रिया का सहारा लिया जाना चाहिए।
मानव संसाधन विकास –
इस विचारधारा में कर्मचारियों में कार्य के प्रति लग्न एवं उत्साह पैदा करने के लिये मानवीय संसाधनों के विकास की योजना बनानी चाहिए। कर्मचारियों की छिपी हुई क्षमता को पहचानकर इन क्षमताओं के विकास हेतु उचित शिक्षण – प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए एवं कर्मचारियों को इस हेतु प्रेरित किया जाना, चाहिए।
अनौपचारिक नियन्त्रण –
‘जेड’ विचारधारा में संस्था के कर्मचारियों के साथ अनौपचारिक सम्बन्धों का निर्माण करके उन पर अनौपचारिक नियन्त्रण के तरीके से नियन्त्रण करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिये प्रबन्धकों को अपने अधीनस्थों में विश्वास तथा सहयोग की भावना पर बल देना चाहिए।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“लोगों को इच्छित तरीके से कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करना अभिप्रेरणा है।” यह कथन है –
(अ) स्टेनले वेन्स का
(ब) कूण्ट्ज तथा ओ’ डोनेल का
(स) विलियम जी. स्कॉट का
(द) विलियम ग्लूक का
प्रश्न 2.
अभिप्रेरणा के सम्बन्ध में सत्य है –
(अ) अभिप्रेरणा एक प्रबन्धकीय प्रक्रिया है।
(ब) यह एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है
(स) अभिप्रेरणा एक कार्य पद्धति है।
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 3.
अभिप्रेरणा के सम्बन्ध में असत्य है –
(अं) अभिप्रेरणा एक सतत् प्रक्रिया है।
(ब) अभिप्रेरणा मनोबल से भिन्न नहीं होती है।
(स) यह प्रबन्धकीय सफलता का कारण एवं परिणाम दोनों है।
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 4. महत्व को दृष्टिगत रखते हुए अभिप्रेरणा को प्रबन्ध का हृदय बताया है –
(अ) रेन्सिस लिकर्ट ने
(ब) स्टेनले वेन्स ने
(स) विलियम जी. स्कॉट ने
(द) विलियम ग्लूक ने
प्रश्न 5.
“अपर्याप्त अभिप्रेरित व्यक्ति एक सुदृढ़ संगठन का प्रभाव समाप्त कर देते हैं।” यह कथन है –
(अ) मास्लो का
(ब) एलन का
(स) रेन्सिस लिकर्ट का
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 6.
अभिप्रेरणा का महत्व है –
(अ) निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक
(ब) कार्य संतुष्टि में अभिवृद्धि
(स) अच्छे श्रम सम्बन्धों का निण
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 7.
“अभिप्रेरणा की समस्या प्रबन्ध कार्यवाही की कुंजी है।” यह कथन है –
(अ) ब्रीच का
(ब) ऐलन का
(स) रेन्सिस लिकर्ट का
(द) विलियम ग्लूक का
प्रश्न 8.
अभिप्रेरणा की अवित्तीय तकनीक है –
(अ) उच्च वेतन
(ब) प्रशंसा एवं सम्मान
(स) ग्रेच्युटी
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 9.
अभिप्रेरणा आवश्यकता क्रम सिद्धान्त के जन्मदाता है –
(अ) मास्लो
(ब) हर्जबर्ग
(स) विलियम औची
(द) मेक ग्रेगर
प्रश्न 10.
स्वास्थ्य व आरोग्य विचारधारा के प्रतिपादक हैं –
(अ) मास्लो
(ब) विलियम, औची
(स) मेक ग्रेगर
(द) हर्जबर्ग।
प्रश्न 1.
विलियम ग्लूक के अनुसार अभिप्रेरणा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
“अभिप्रेरणा वह आन्तरिक स्थिति है जो मानवीय व्यवहार को अर्जित, प्रवाहित एवं क्रियाशील रखती है।”
प्रश्न 2.
अभिप्रेरणा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है।
यह मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि है।
प्रश्न 3.
अभिप्रेरणा के सन्दर्भ में उद्देश्य को अर्थ समझाइए।
उत्तर:
उद्देश्य एक आन्तरिक स्थिति है जो व्यवहार को अर्जित तथा सक्रिय बनाकर लक्ष्यों की पूर्ति के लिये दिशा निर्देशित करती है।
प्रश्न 4.
व्यावसायिक संगठन में अभिप्रेरणा के दो महत्व बताइये।
उत्तर:
अभिप्रेरणा कर्मचारियों तथा संगठन के निष्पादन स्तर में सुधार लाती है।
अभिप्रेरणा संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कर्मचारियों के दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाती है।
प्रश्न 5.
अभिप्रेरणा की वित्तीय तकनीक से क्या आशय है?
उत्तर:
वित्तीय तकनीक का सम्बन्ध मुद्रा या आर्थिक अभिप्रेरणा से है। वित्तीय तकनीकी में पेन्शन, ग्रेच्युटी, बीमा, भविष्य निधि आदि को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 6.
अभिप्रेरणा की दो अवित्तीय तकनीकों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रंबन्ध में सहभागिता
प्रशंसा एवं सम्मान
प्रश्न 7.
अभिप्रेरणा की आवश्यकता क्रम पर आधारित विचारधारा का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक अब्राहम एच. मास्लो ने।
प्रश्न 8.
मास्लो की आवश्यकता क्रमबद्धता विचारधारा का प्रतिपादन कब हुआ?
उत्तर:
सन् 1943 में।
प्रश्न 9.
मास्लो के सिद्धान्त की कोई एक संकल्पना बताइए।
उत्तर:
लोगों की आवश्यकताएँ एक क्रम श्रृंखला में होती हैं।
प्रश्न 10.
मास्लो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में कितनी आवश्यकताओं की क्रमबद्धता विद्यमान होती है?
उत्तर:
पाँच।
प्रश्न 11.
सुरक्षात्मक आवश्यकता में किन – किन आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
पद की सुरक्षा, भय से सुरक्षा, बीमारी से सुरक्षा, जोखिम/हानि से सुरक्षा, आय स्रोत में स्थिरीकरण आदि।
प्रश्न 12.
मास्लो के अनुसार सामाजिक या स्नेह की उत्पत्ति किन – किन स्तरों के सन्तुष्ट होने के बाद होती है?
उत्तर:
शारीरिक एवं सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बाद।
प्रश्न 13.
सामाजिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बाद कौनसी आवश्यकता की उत्पत्ति होती है?
उत्तर:
अहंकारी या स्वाभिमान की आवश्यकता।
प्रश्न 14.
मास्लो के अनुसार उच्च आवश्यकता का स्तर क्या होता है?
उत्तर:
आत्मविकास की आवश्यकता।
प्रश्न 15.
अभिप्रेरणा की द्विघटक विचारधारा के प्रतिपादक कौन है?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक फ्रेडरिक हर्जबर्ग।
प्रश्न 16.
हर्जबर्ग ने द्विघटक विचारधारा के प्रतिपादन में कितने इंजीनियर्स पर शोध किया?
उत्तर:
200 इंजीनियरों पर।
प्रश्न 17.
आरोग्य घटक किसे कहते है?
उत्तर:
जब व्यक्ति कार्यस्थल पर अपने कार्य से असन्तुष्टि प्राप्त करता है तो असन्तुष्टि का कारण वह वातावरण है। जहाँ वह काम करता है। इस वातावरण को जो घटक प्रभावित करते हैं उसे आरोग्य घटक कहते हैं। जैसे – संस्था की नीतियाँ।
प्रश्न 18.
अभिप्रेरक घटक क्या है?
उत्तर:
अभिप्रेरक घटक कार्य से सम्बन्धित होते हैं। इन्हें सन्तुष्टि प्रदान करने वाले घटक भी कहते हैं। हर्जबर्ग ने अभिप्रेरक घटकों में उपलब्धि, मान्यता एवं सम्मान, विकास, उत्तरदायित्व आदि को सम्मिलित किया है।
प्रश्न 19.
अनुरक्षण तत्व किन घटकों को कहा जाता है?
उत्तर:
स्वास्थ्य/आरोग्य घटकों को अनुरक्षण तत्व कहा जाता है।
प्रश्न 20.
अभिप्रेरणा की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा के प्रतिपादक कौन हैं?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक डगलस मेक् ग्रेगर।
प्रश्न 21.
“Human Side of Enterprises” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
डगलस मेक् ग्रेगर।
प्रश्न 22.
मेक ग्रेगर की ‘एक्स’ विचारधारा किस मान्यता पर आधारित है?
उत्तर:
ऋणात्मक मान्यता पर।
प्रश्न 23.
मेक ग्रेगर की ‘वाई’ विचारधारा मानव व्यवहार के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखती है?
उत्तर:
सकारात्मक एवं आशावादी दृष्टिकोण।
प्रश्न 24.
मेक्ग्रेगर की ‘एक्स’ और ‘वाई’ विचारधारा में एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
‘एक्स’ विचारधारा में व्यक्ति परम्परागत विधियों से कार्य करना पसन्द करते हैं, लेकिन ‘वाई’ विचारधारा में व्यक्ति सृजनशील होते हैं।
प्रश्न 25.
‘एक्स’ विचारधारा के कर्मचारी समूह के सम्बन्ध में दो मान्यताएं बताइए।
उत्तर:
कर्मचारियों से कार्य करवाने के लिये दण्ड, भय, प्रताड़ना का सहारा लिया जाता है।
कर्मचारी आर्थिक एवं वित्तीय लाभों के लिये कार्य करते हैं।
प्रश्न 26.
‘वाई’ विचारधारा के कर्मचारियों के सम्बन्ध में दो मान्यताएँ बताइये।
उत्तर:
इसमें कर्मचारी कार्य को स्वाभाविक एवं सहज क्रिया मानते हैं।
कर्मचारी महत्वाकांक्षी होते हैं तथा उत्तरदायित्व को स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 27.
विलियम जी. औची किस देश के प्रबन्ध शास्त्री हैं?
उत्तर:
अमेरिका के।
प्रश्न 28.
विलियम जी. औची की कौन-सी पुस्तक में ‘जेड’ विचारधारा का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
Theory Z : How American Business can Meet the Japanese Challenge.
प्रश्न 29.
विलियम जी. औची की ‘जेड’ विचारधारा से सम्बन्धित पुस्तक कब प्रकाशित हुई?
उत्तर:
सन् 1981 में।
प्रश्न 30.
विलियम जी. औची ने किन दो देशों की प्रबन्ध व्यवस्था के अध्ययन के बाद जेड’ विचारधारा का प्रतिपादन किया?
उत्तर:
अमेरिका और जापान।
प्रश्न 31.
प्रो. औची के अनुसार जापानी प्रबन्ध का मूल आधार क्या है?
उत्तर:
प्रो. औची के अनुसार जापानी प्रबन्ध का मूल आधार विश्वास, मर्मज्ञता और आत्मीयता है।
प्रश्न 32.
प्रो. औची ने पदोन्नति के सम्बन्ध में क्या विचार दिया है?
उत्तर:
प्रो. औची ने बताया कि पदोन्नति लम्बवत् के स्थान पर समानान्तर पदोन्नति की जानी चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)
प्रश्न 1.
अभिप्रेरणा क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा एक आन्तरिक इच्छा या भावना है जो किसी कर्मचारी को पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिये उत्प्रेरित करती है।
स्टेनले वेन्स के अनुसार – “कोई भी ऐसी भावना या इच्छा जो किसी व्यक्ति की इच्छा को इस प्रकार परिवर्तित कर दे कि वह व्यक्ति कार्य करने को प्रेरित हो जाये, उसे अभिप्रेरणा कहते है।”
प्रश्न 2.
किसी व्यावसायिक उपक्रम में कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
उत्पादन के विभिन्न साधनों में मानव ही सजीव सक्रिय साधन माना जाता है जो अभिप्रेरणा के माध्यम से सक्रिय एवं गतिशील रहता है। परिणामस्वरूप अभिप्रेरित व्यक्तियों द्वारा उत्पादन के अन्य साधनों की गुणवत्ता में सुधार आता है तथा उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी होती है। इसलिए उपक्रम के कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना आवश्यक है।
प्रश्न 3.
“अपर्याप्त अभिप्रेरित कर्मचारी सुदृढ़ संगठन का प्रभाव भी समाप्त कर देते हैं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी संस्थान में निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अभिप्रेरणा अत्यन्त आवश्यक है। अभिप्रेरणा से कर्मचारियों को उन कार्यों को करने के लिये प्रेरित किया जाता है जिनको करने से संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। यदि किसी उपक्रम में कर्मचारियों को अभिप्रेरित नहीं किया जायेगा तो उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता में निरन्तर कमी होती जायेगी और उपक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाई होगी। इसलिये ही ऐलन ने कहा कि अपर्याप्त अभिप्रेरित कर्मचारी सुदृढ़ संगठन का प्रभाव भी समाप्त कर देते हैं।
प्रश्न 4.
अभिप्रेरणा के कोई चार महत्व बताइए।
उत्तर:
कार्य करने की इच्छा पैदा करना ही अभिप्रेरणा है। अभिप्रेरणा के महत्व के चार बिन्दु निम्नलिखित हैं –
संगठन के सफल निष्पादन में सहायक।
कर्मचारियों में सकारात्मकता लाने में सहायता करना।
कर्मचारियों की संस्था को छोड़कर जाने की दर कम करना।
संसाधनों के बेहतर उपयोग कराने में सहायक।
प्रश्न 5.
अभिप्रेरणा के महत्व एवं आवश्यकता के सम्बन्ध में क्लेरेंस फ्रांसिस ने क्या कहा है?
उत्तर:
अभिप्रेरणा के महत्व एवं आवश्यकता के सम्बन्ध में क्लेरेंस फ्रांसिस ने कहा है – “आप किसी व्यक्ति का समय खरीद सकते हैं, आप किसी व्यक्ति की विशिष्ट स्थान पर शारीरिक उपस्थिति खरीद सकते हैं, किन्तु आप किसी का उत्साह, पहलपन या वफादारी नहीं खरीद सकते हो।”
प्रश्न 6.
“अभिप्रेरणा व्यावहारिक प्रबन्ध की कुंजी है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ई.एफ.एल. ब्रीच के शब्दों में, “अभिप्रेरणा व्यावहारिक प्रबन्ध की एक कुंजी है तथा निष्पादित रूप से प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है। सभी प्रबन्धकीय कार्यों में अभिप्रेरणा की क्रियान्वित होना आवश्यक है। अभिप्रेरणा के क्रियान्वयन से ही प्रबन्धकीय कार्यों में गति लायी जा सकती है।”
प्रश्न 7.
अभिप्रेरणा की अवित्तीय तकनीकों को समझाइए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा की अवित्तीय तकनीकें मनोवैज्ञानिक होती हैं जिनका धन या मुद्रा से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। ये तकनीकें व्यक्ति की भावनाओं एवं इच्छाओं को पूरा करने में सहायक होती हैं। अवित्तीय तकनीक वैयक्तिक तथा सामूहिक दोनों होती हैं। वैयक्तिक तकनीक में व्यक्तिगत सम्पर्क, पदोन्नति, विकास के अवसर, कार्य विस्तार आदि तथा सामूहिक तकनीक में समूह चर्चा, सहभागिता, सम्मेलन एवं सभाएँ तथा सामूहिक प्रशिक्षण आदि को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 8.
अधिकार प्रत्यायोजनं क्या है? समझाइए।
उत्तर:
अधिकार प्रत्यायोजन:
वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक अपने कार्यक्षेत्र के भीतर अपने अधीनस्थों को कुछ कार्यभार सौंपता है, उन कार्यों को पूरा करने के लिये उसे अधिकार सत्ता प्रदान करता है, उसे निष्पादन के लिये जवाबदेह बनाता है। अधिकार प्रत्यायोजन से कर्मचारियों में विश्वास जाग्रत होता है, उनमें कार्य करने की भावना प्रोत्साहित होती है एवं अधीनस्थों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। .
प्रश्न 9.
अभिप्रेरणा की अवित्तीय तकनीक में समूह चर्चा को समझाइये।
उत्तर:
समूह चर्चा के माध्यम से कर्मचारियों में आत्मविश्वास, मनोबल एवं उनके ज्ञानार्जन में वृद्धि होती है। समूह चर्चा में कर्मचारियों के एक विशेष वर्ग या समूह के साथ सामाजिक विषय पर विचार मन्थन किया जाता है जिससे सभी कर्मचारियों को अपने विचार रखने का अवसर मिलता है एवं अन्य व्यक्तियों के विचारों को जानने का अवसर मिलता है।
प्रश्न 10.
अभिप्रेरणा की तकनीकों को एक चार्ट के माध्यम से प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 11.
मास्लो की शारीरिक आवश्यकता को समझाइए।
उत्तर:
शारीरिक आवश्यकतायें मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकतायें होती हैं। ये आवश्यकतायें सर्वाधिक आवश्यक, प्रभावशाली एवं शक्तिशाली मानी जाती हैं जिनकी पूर्ति मनुष्य हर स्थिति में करना चाहता है। मनुष्य की ये आवश्यकताएँ ज्यों ही सन्तुष्ट हो जाती हैं, फिर ये आवश्यकताएँ उसे अभिप्रेरित नहीं करती हैं। इन आवश्यकताओं में भोजन, कपड़ा, मकान, यौन – सम्पर्क, स्वच्छ हवा, धूप आदि को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 12.
सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ क्या हैं? समझाइए।
उत्तर:
सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की उत्पत्ति शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् होती है। जब किसी व्यक्ति को भावी शारीरिक या मानसिक संकट का भय उत्पन्न होता है तो वह अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है। भविष्य में आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक संकटों के प्रति सुरक्षा से आश्वस्त होने के लिये सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की जरूरत पड़ती है। इन आवश्यकताओं में आजीवन आय का साधन, बीमा, पेन्शन, भविष्य निधि आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।
प्रश्न 13.
विलियम औची की ‘जेड’ विचारधारा के ‘मानवीयता पर बल’ दृष्टिकोण को समझाइए।
उत्तर:
‘मानवीयता के बल पर यह विचारधारा यह स्पष्ट करती है कि प्रबन्धकों को कर्मचारियों पर पूर्ण ध्यान देना चाहिए। उन्हें अपने कर्मचारियों का ध्यान केवल कार्यरत् स्थल तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। प्रबन्धक को कर्मचारी के साथ – साथ उसके परिवार, उसकी रुचियों, महत्वाकांक्षाओं आदि का ध्यान रखना चाहिए एवं कर्मचारी के साथ सदैव मानवीयता पूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)
प्रश्न 1.
अभिप्रेरणा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ:
निम्न प्रकार हैं –
मेक्फारलैण्ड के अनुसार – “अभिप्रेरणा मूलत: मनोवैज्ञानिक धारणा है। इसका सम्बन्ध किसी कर्मचारी अथवा अधीनस्थ में कार्य कर रही उन शक्तियों से है जो उसे किसी कार्य को विधिवत् तरीके से करने या न करने हेतु प्रेरित करती है।”
विलियम जी. स्कॉट के अनुसार – “अभिप्रेरणा का तात्पर्य लोगों को इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कार्य करने हेतु प्रेरित करने की प्रक्रिया से है।”
विलियम ग्लूक के अनुसार – “अभिप्रेरणा वह आन्तरिक स्थिति है जो मानवीय व्यवहार को अर्जित, प्रवाहित एवं क्रियाशील रखती है।”
निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि अभिप्रेरणा वह प्रक्रिया है जो अधीनस्थों को निर्धारित सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये वांछित रूप से कार्य करने के लिये तैयार करती है।
प्रश्न 2.
अभिप्रेरणा क्या है? इसके महत्व को समझाइए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा:
अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए कार्य करने को प्रोत्साहित करती है, ताकि वे संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उत्साहपूर्वक कार्य कर सकें सरल शब्दों में, कार्य करने की इच्छा पैदा करना ही अभिप्रेरणा है। अभिप्रेरणा के महत्व को निम्नलिखित लाभों के द्वारा अच्छी प्रकार समझा जा सकता है –
संगठन के सफल निष्पादन में सहायक –
अभिप्रेरणा से कर्मचारियों के निष्पादन स्तर में सुधार होता है जो संगठन के सफल निष्पादन में सहायक होता है, क्योंकि एक अभिप्रेरित कर्मचारी अपनी सारी ऊर्जा संगठन के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगा देता है।
कर्मचारियों में सकारात्मकता लाना –
अभिप्रेरणा कर्मचारियों के नकारात्मक अथवा तटस्थ दृष्टिकोण को सांगठीनक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सकारात्मक दृष्टिकोण में रूपान्तरित करने में सहायक होती है।
कर्मचारियों की संस्था को छोड़कर जाने की दर को कम करना –
अभिप्रेरणा कर्मचारियों की संस्था को छोड़कर जाने की दर को कम करती है। इसके परिणामस्वरूप नयी नियुक्ति तथा प्रशिक्षण लागत में कमी आती है।
कर्मचारी अनुपस्थिति की दर में कमी –
अनुपस्थिति के कुछ महत्वपूर्ण कारण अनुपयुक्त कार्य स्थितियाँ, अपर्याप्त पारिश्रमिक, प्रतिष्ठा का अभाव, पर्यवेक्षकों के साथ बुरे सम्बन्ध तथा सहकर्मी आदि हैं। विश्वस्त अभिप्रेरणात्मक व्यवस्था के द्वारा इन सभी कमियों को दूर किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप कर्मचारी अनुपस्थिति की दर में कमी आयेगी।
प्रश्न 3.
अभिप्रेरणा की किन्हीं पांच अवित्तीय तकनीकों को समझाइए।
उत्तर:
पद – प्रतिष्ठा:
संगठन के सन्दर्भ में पद का अर्थ संस्था में पदों के क्रम से है। पद से मनुष्य की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं।
सांगठनिक वातावरण:
इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, पारिश्रमिक अभिविन्यास, कर्मचारियों का ध्यान रखना, जोखिम उठाना आदि शामिल हैं। यदि संगठन में इनका पालन होता है तो कर्मचारियों को कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
जीवनवृत्ति विकास के सुअवसर:
प्रोत्साहन हेतु संस्था में अपने कौशलों में सुधार करके उच्च स्तरीय पदों पर नियुक्ति के लिए कर्मचारियों को सुअवसर प्रदान किये जाते हैं।
पद संवर्धन:
यदि कार्य का संवर्धन किया जाये तथा उन्हें रुचिपूर्ण बनाया जाये तो कार्य अपने आप ही व्यक्ति के लिए अभिप्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
कर्मचारियों को मान:
सम्मान देने सम्बन्धी कार्यक्रम इसके अन्तर्गत कर्मचारियों के कार्यों की पहचान कर उनकी सराहना की जाती है। जब इस प्रकार की प्रशंसा कर्मचारियों के कार्य निष्पादन पर की जाती है तो वे उच्च स्तर का कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं।
प्रश्न 4.
कर्मचारियों को पहचान/मान – सम्मान देने के लिए क्या – क्या कार्यक्रम किये जा सकते हैं?
उत्तर:
कर्मचारियों को मान – सम्मान देने हेतु किये जाने वाले कुछ कार्यक्रम निम्नलिखित हैं –
कार्य निष्पादन अच्छा होने पर कर्मचारी को बधाई देना।
कम्पनी के नोटिस बोर्ड पर अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करना अथवा कम्पनी के न्यूजलैटर में कर्मचारियों की उपलब्धि के बारे में छापना।
उत्तम निष्पादन के लिए कर्मचारियों को पारितोषिक या प्रमाण – पत्र देना।
कर्मचारी की सेवाओं के समानार्थ स्मृति चिन्हों का वितरण जैसे – टी – शर्ट आदि।
कर्मचारी के द्वारा दिये गये महत्वपूर्ण सुझावों के लिये पारितोषिक देना।
अच्छा कार्य करने वाले कर्मचारियों की प्रशंसा सार्वजनिक रूप से करना।
प्रश्न 5.
अब्राहम एच. मास्लो की विचारधाराओं में किन संकल्पनाओं का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
अब्राहम एच. मास्लो की विचारधारा निम्न संकल्पनाओं पर आधारित है –
व्यक्तियों का व्यवहार उन आवश्यकताओं की पूर्ति पर निर्भर होता है जो उनके व्यवहार को प्रभावित करती है।
लोगों की आवश्यकताएँ आधारभूत आवश्यकताओं से प्रारम्भ होकर उच्च स्तरीय आवश्यकताओं तक एक क्रम – श्रृंखला में होती हैं।
एक व्यक्ति के लिये यदि एक आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है तो वह अभिप्रेरणा का स्रोत नहीं रहती है। बल्कि उसे इससे अगले क्रम की आवश्यकता अभिप्रेरित करती है।
एक व्यक्ति अगले उच्चस्तर की आवश्यकता का अनुभवं तभी करता है जब उसके नीचे के स्तर की आवश्यकता की संतुष्टि हो जाती है।
प्रश्न 6. ‘
मास्लो की आत्मविकास की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
अथवा
मास्लो की आवश्यकता क्रमबद्धता विचारधारा की अन्तिम आवश्यकता को समझाइए।
उत्तर:
आत्मविकास की आवश्यकता सभी आवश्यकताओं का चरम बिन्दु है। इस आवश्यकता की पूर्ति व्यक्ति को काम तथा जीवन में सन्तुष्टि प्रदान करती है। इसमें क्षमता, सृजनशीलता और उपलब्धि के माध्यम से अपने सामर्थ्य को पहचानने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की आवश्यकता कहा जा सकता है। मास्लो ने इस आवश्यकता का वर्णन करते हुए लिखा है कि, “एक संगीत्तकार को संगीत बनाया चाहिये, एक पेन्टर को पेन्ट करना चाहिए, एक कवि को कविता लिखनी चाहिए, यदि वह अन्ततोगत्वा प्रसन्न होना चाहता है, जो भी एक मनुष्य बन सकता है उसे बनना चाहिए।”
प्रश्न 7.
मेक ग्रेगर की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा को तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 8.
विलियम औची की जेड’ विचारधारा की मान्यतायें बताइए।
उत्तर:
‘जेड’ विचारधारी की मान्यतायें:
कर्मचारियों को जीवनपर्यन्त रोजगार दिया जाना चाहिए।
उत्पादकता किसी एक व्यक्ति की देन न होकर सामूहिक प्रयासों का परिणाम होती है। पदोन्नति लम्बवत् के स्थान पर समानान्तर पदोन्नति की जानी चाहिए।
कर्मचारियों की जीवन वृत्ति का निर्धारण गैर – विशिष्टीकृत आधार पर होना चाहिए।
कर्मचारियों के साथ मानवीयता पूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
संस्था के कर्मचारियों को सामूहिक निर्णयन में भागीदार बनाना चाहिए।
कर्मचारियों में कार्य के प्रति लग्न एवं उत्साह पैदा करने के लिये मानव संसाधन विकास की योजना बनानी चाहिए।
प्रबन्धकों को अपने अधीनस्थों में विश्वास तथा सहयोग की भावना पर बल देना चाहिए।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कम्पनी के कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए प्रयोग में आने वाले विभिन्न तथा गैर – वित्तीय प्रोत्साहनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोत्साहन – प्रोत्साहन से तात्पर्य उन सभी उपायों से है जिनका प्रयोग कार्य – निष्पादन में सुधार हेतु व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिये किया जाता है। ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं –
(i) वित्तीय प्रोत्साहन –
वे प्रोत्साहन जो प्रत्यक्ष रूप से वित्त के रूप में होते हैं या जो वित्तं के रूप में मापे जा सकते हैं, उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन कहते हैं। प्रमुख वित्तीय प्रोत्साहन निम्नलिखित हैं –
वेतन तथा भत्ता –
प्रत्येक कर्मचारी के लिए वेतन एक आधारिक वित्तीय प्रोत्साहन है। इसमें आधारभूत वेतन, महँगाई – भत्ता तथा अन्य भत्ते शामिल हैं।
उत्पादकता सम्बन्धित पारिश्रमिक प्रोत्साहन –
इसके अन्तर्गत उत्पादन पर आधारित पारिश्रमिक प्रोत्साहन योजनाओं को सम्मिलित किया जाता है।
बोनस/अधिलाभांश –
बोनस वह प्रोत्साहन है जो कर्मचारियों को उनकी मजदूरी/वेतन से अतिरिक्त दिया जाता है।
लाभ में भागीदारी –
लाभ में भागीदारी प्रदान करना कर्मचारियों को अपना निष्पादन सुधारने की प्रेरणा देता है।
सह –
साझेदारी/स्कंध विकल्प – इन प्रोत्साहन योजनाओं के अन्तर्गत कर्मचारियों को एक निर्धारित कीमत पर कम्पनी के शेयर दिये जाते हैं। यह निर्धारित कीमत बाजार से कम होती है।
सेवानिवृत्ति लाभ –
संस्था में कार्यरत कर्मचारियों को सेवा निवृत्ति लाभ, जैसे- भविष्य निधि, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि भी प्रोत्साहित करते हैं।
अनुलाभ –
बहुत – सी कम्पनियों में अनुलाभ तथा फ्रिज लाभ दिये जाते हैं जैसे – कार भत्ता, घर की सुविधा, चिकित्सा सहायता तथा बच्चों के लिए शिक्षा आदि। ये उपाय भी कर्मचारियों को अभिप्रेरित करते हैं।
(ii) गैर – वित्तीय प्रोत्साहन –
वित्तीय कारकों के अलावा कुछ मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा संवेगी कारक भी कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इन्हें गैर – वित्तीय प्रोत्साहन कहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण गैर – वित्तीय प्रोत्साहन निम्नलिखित हैं –
पद – प्रतिष्ठा –
संगठन के सन्दर्भ में पद का अर्थ संस्था में पदों के क्रम से है। पद से मनुष्य की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यकताएँ पूरी हो सकती हैं।
सांगठनिक वातावरण –
इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, पारिश्रमिक अभिविन्यास, कर्मचारियों का ध्यान रखना, जोखिम उठाना आदि शामिल हैं। यदि संगठन में इनका पालन होता है तो कर्मचारियों को कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
जीवनवृत्ति विकास के सुअवसर-प्रोत्साहन हेतु संस्था में अपने कौशलों में सुधार करके उच्च स्तरीय पदों पर नियुक्ति के लिए कर्मचारियों को सुअवसर प्रदान किये जाते हैं।
पद संवर्धन –
यदि कार्य का संवर्धन किया जाये तथा उन्हें रुचिपूर्ण बनाया जाय तो कार्य अपने आप ही व्यक्ति के लिए अभिप्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
कर्मचारियों को मान – सम्मान देने सम्बन्धी कार्यक्रम –
इसके अन्तर्गत कर्मचारियों के कार्यों को पहचान कर उनकी सराहना की जाती है। जब इस प्रकार की प्रशंसा कर्मचारियों के कार्य निष्पादन पर की जाती है तो वे उच्च स्तर का कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं।
पद – सुरक्षा/स्थायित्व –
कर्मचारी अपने पद की सुरक्षा चाहते हैं जब उन्हें पद और आय में स्थायित्व प्राप्त हो जाता है तो वे उत्साह से कार्य करते हैं।
कर्मचारियों की भागीदारी –
कर्मचारियों से सम्बन्धित निर्णयों में कर्मचारियों की भागीदारी सुनिश्चित होने से वे प्रोत्साहित होते हैं।
कर्मचारियों का सशक्तिकरण –
सशक्तिकरण से आशय अधीनस्थों को अधिक स्वायत्ततता तथा सत्ता देने से है। जब संस्था में सशक्तिकरण होता है तो कर्मचारी अपने कार्य का उत्साहपूर्णक निर्वहन करते हैं।
प्रश्न 2.
मेक ग्रेगर की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधाराओं को समझाइए।
अथवा
मेक् ग्रेगर की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा की प्रमुख मान्यताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अभिप्रेरणा की ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ विचारधारा का प्रतिपादन लेखक एवं मनोवैज्ञानिक डगलस मेक् ग्रेगर ने अपनी पुस्तक ‘Human Side of Enterprises’ में किया था। इस विचारधारा में मानव व्यवहार को दो भागों में विभाजित करके ऋणात्मक व्यवहार को ‘एक्स’ और धनात्मक व्यवहार को ‘वाई’ विचारधारा के नाम से पुकारा गया। ‘एक्स’ विचारधारा मानव व्यवहार के प्रति निराशावादी तथा नकारात्मक दृष्टिकोण रखती है तथा कर्मचारियों पर कठोर नियन्त्रण और गहन निरीक्षण पर बल देती है। ‘वाई’ विचारधारा मानव व्यवहार के प्रति सकारात्मक एवं आशावादी दृष्टिकोण रखती है तथा कर्मचारियों पर न्यूनतम नियंत्रण एवं निर्देशन पर बल देती है।
‘एक्स’ विचारधारा की मान्यतायें:
इस विचारधारा के अनुसार कर्मचारी अपनी इच्छा से कार्य करना नहीं चाहता है क्योंकि काम को टालने में उसे सुख व सन्तोष की प्राप्ति होती है।
एक औसतने कर्मचारी स्वभावतः आलसी प्रवृत्ति का होता है एवं वह कम – से – कम काम करना चाहता है।
सामान्यतः कर्मचारी महत्वाकांक्षी नहीं होते हैं तथा ये उत्तरदायित्वों से दूर रहना पसन्द करते हैं।
संगठन में कर्मचारी परम्परागत ढंग से ही कार्य करना पसन्द करता है, उसके अन्दर सृजनशीलता का अभाव पाया जाता है।
कर्मचारी आत्मकेन्द्रित या स्वार्थी होता है एवं संस्था से इनका बहुत कम लगाव होता है।
कर्मचारियों से कार्य कराने हेतु दण्ड, भय, प्रताड़ना का सहयोग लिया जाता है।
कर्मचारी आर्थिक एवं वित्तीय लाभों के लिये कार्य करते हैं।
‘वाई’ विचारधारा की मान्यतायें:
कर्मचारी कार्य को स्वाभाविक एवं सहज क्रिया मानते हैं तथा कार्य करने से सुख एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है।
कर्मचारी महत्वाकांक्षी होते हैं तथा उत्तरदायित्वों को स्वीकार करते हैं।
कर्मचारी कल्पनाशील एवं सृजनशील होते हैं तथा नवीन विधियों एवं परिवर्तनों का स्वागत करते हैं।
कर्मचारी अपनी क्षमता एवं योग्यता का अधिकतम सदुपयोग करना चाहते हैं तथा स्वप्रेरित एवं स्वनियन्त्रित होते हैं।
कर्मचारी आधारभूत आवश्यकताओं की अपेक्षा स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास हेतु कार्य करते हैं।
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