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साझेदारी का सामान्य परिचय (General introduction of Partnership )


Sajhedari ka samanya parichay

साझेदारी का  सामान्य परिचय (General introduction of Partnership )


Table of Contents In this Post

साझेदारी का  सामान्य परिचय (General introduction of Partnership ).

साझेदारी का अर्थ (Meaning of Partnership)–

साझेदारी की परिभाषा (Definition of Partnership)–

साझेदारी की आवश्यकता (Need of partnership)–

साझेदारी की विशेषताएं (Characteristics of partnership)–

दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना –

साझेदारो के मध्य समझौता या अनुबंध होना –

लाभों का विभाजन –

व्यवसाय का होना –

व्यवसाय का सञ्चालन सभी के द्वारा या उन सभी की और से किसी एक के द्वारा होना –

अधिनियम-

असीमित दायित्व-

पृथक अस्तित्व नहीं-

साझेदारी के प्रकार(Types of Partnership)-

दायित्व के अनुसार

समयानुसार साझेदारी

उद्देश्यानुसार साझेदारी

वैधता के अनुसार साझेदारी

साझेदारी संलेख(Paartnership Deed)

साझेदारी संलेख में सम्मिलित मदें (Contents of Partnership Deed)-

साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम(Rules Applicable in Absence of Partnership Deed)


साझेदारी का  सामान्य परिचय (General introduction of Partnership )


दो या दो से अधिक लोग मिलकर कोई लाभपूर्ण व्यापार करते हैं तथा लाभ को आपस में बांटते है साझेदारी कहलाता है .
The Law of Partnership is contained in the Indian Partnership Act, 1932, which came into force on 1-10-1932. It extends to the whole of India except for Jammu & Kashmir. Prior to this Act, the Law of Partnership was dealt with under the Indian Contract Act, 1872.

साझेदारी का अर्थ (Meaning of Partnership)–


भारतीय साझेदारी अधिनियम एक अक्टूबर 1932 को जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पुर्ण भारत में लागू हुआ था .  इस अधिनियम से पुर्व साझेदारी से सम्बंधित प्रावधान भारतीय संविदा (अनुबंध) अधिनियम 1872 में दिए गए थे . साझेदारी से आशय व्यावसायिक संगठन के ऐसे स्वरुप से है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छा से किसी वैधानिक व्यापार को चलने के लिए सहमत होते हैं . व्यवसाय में पूँजी लगाते हैं, प्रबंधकीय योग्यता का सामूहिक प्रयोग करते हैं तथा लाभ को आपस में बांटते हैं .
Partnership is an association of two or more persons who have agreed to combine their Financial resources and managerial abilities to run a legal business and share profit in an agreed ratio.

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 5 के अनुसार

“ साझेदारी का जन्म अनुबध से होता है किसी स्थिति के कारण नहीं “



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साझेदारी की परिभाषा (Definition of Partnership)–


भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 4 के अनुसार “साझेदारी उन व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध हैं जो किसी व्यवसाय के लाभों को बांटने के लिया सहमत हुए हैं जिसका संचालन उन सभी के द्वारा या उन सभी की और से किसी एक के द्वारा किया जाता है.”

Sir Fredrick Pollock :  "Partnership is the relation between two or more persons, who have agreed to share the profits of the business carried on by all or any of them acting for all."

According to section 4 of the Indian Partnership Act, 1932, "Partnership is the relation between persons who have agreed to share the profit of a business carried on by all or any of them acting for all."

The persons who have entered into a partnership with one another individually are called partners and collectively a firm. The name under which the business is carried is called firm name. 

साझेदारी की आवश्यकता (Need of partnership)–


सीमित पूँजी, सीमित प्रबंध, क्षमता व चातुर्य, अनिश्चित अस्तित्व आदि एकाकी व्यापार की कमियों को दूर करने के लिए साझेदारी का उद्भव हुआ . पूँजी कार्यकुशलता अनुभव की पूर्ति के लिए साझेदारी की स्थापना की जाती है .
Need of Partnership : To overcome the limitations of sole proprietorship namely limited capital, lack of managerial efficiency and uncertain existence, partnership is desirable.



साझेदारी की विशेषताएं (Characteristics of partnership)–


निम्न विशेषताएं होती हैं-

दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना – 

                       साझेदारी हमेशा कम से कम दो व्यक्तिओं(जो अनुबंध की क्षमता रखते हो) के मध्य होगी. भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 के अनुसार एक अवयस्क, पागल, या नायालय द्वारा अयोग्य घोषित व्यक्ति साझेदार नहीं बन सकता. भविष्य में साझेदार दो से कम होने पार साझेदारी समाप्त हो जाएगी. कंपनी अधिनियम की धारा 464 के अनुसार एक साझेदारी में साझेदारों की अधिकतम संख्या वह होगी जो निर्धारित की जाएगी, जो 100 से ज्यादा नहीं होगी. लेकिन कंपनी( विविध) नियम 2014 के नियम 10 के अंतर्गत यह संख्या 50 तक सीमित कर दी गयी है.
Two or more than two persons : There must be at least two persons to form a partnership and all such persons to be competent to contract. According to Indian Contract Act, 1872 a minor, persons of unsound mind and persons disqualified by any Law are not competent to contract. If any time the numbers of partners in a firm gets reduced to one the firm is dissolved. The Partnership Act  does not prescribe the maximum number of partners in a firm. However section 464 of the Companies Act, 2013 empowers the Government to prescribe maximum number of partners in a firm subject to maximum of 100. The Government has prescribed maximum number of partners in a firm to be 50 vide rule 10 of the Companies (Miscellaneous) Rules, 2014.

साझेदारो के मध्य समझौता या अनुबंध होना – 

                     साझेदारों के मध्य लिखित या मौखिक समजौता होना आवश्यक है . भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 5 के अनुसार “साझेदारी का जन्म अनुबध से होता है किसी परिस्थिति से नहीं”

लाभों का विभाजन – 

                    साझेदारी का उद्येश्य लाभ कमाना होता है. परोपकारी संस्था साझेदारी नहीं कर सकती. साझेदारों का लाभ में हिस्सा होना आवश्यक है अवयस्क को हानि में हिस्सा होना आवश्यक नहीं है.

व्यवसाय का होना –

                 साझेदारी का उद्देश्य वैध व्यवसाय करके लाभ कमाना होना चाहिए.

व्यवसाय का सञ्चालन सभी के द्वारा या उन सभी की और से किसी एक के द्वारा होना – 

                  कानूनी रूप से व्यवसाय का संचालन में सभी साझेदार भाग ले सकते हैं परन्तु सहमति से कोई एक भी संचालन कर सकता है.

अधिनियम-

                 साझेदारी व्यवसाय भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 द्वारा संचालित किया जाता है.

असीमित दायित्व- 

                प्रत्येक साझेदार का दायित्व असीमित होता है. अन्य शब्दों में साझेदार के समस्त दायित्व के लिए प्रत्येक साझेदार संयुक्त और पृथक रूप से उत्तरदायी होता है.

पृथक अस्तित्व नहीं-

           इसका अर्थ है फर्म से सम्बंधित सभी अनुबंध फर्म पर लागू होने के साथ प्रत्येक साझेदार पर भी लागू होते हैं.

साझेदारी के प्रकार(Types of Partnership) –


1.       दायित्व के अनुसार


A.      सीमित दायित्व साझेदारी(Limited Liability Partnership) – 

                     इस साझेदारी में साझेदारों का दायित्व सीमित होता है.

B.      असीमित दायित्व साझेदारी(Unlimited Liability Partnership) – 

                    इस साझेदारी में फर्म के दायित्वों के लिए सभी साझेदार असीमित रूप से उतरदायी होते हैं.

2.       समयानुसार साझेदारी


A.       निश्चितकालीन साझेदारी (Fixed Time Partnership)– 

                      वह साझेदारी जो एक निश्चित समय के लिए की जाए .

B.       अनिशिचित्कालीन साझेदारी(Non-Fixed Partnership)-

                      वह साझेदारी जिसमें निश्चित समय नहीं होता.

3.       उद्देश्यानुसार साझेदारी


A.      ऐच्छिक साझेदारी (Partnership at Will)– 

                  साझेदार यदि निश्चित अवधि के बाद भी साझेदारी जारी रखना चाहे तो तो ऐच्छिक साझेदारी होती है.

B.      विशेष साझेदारी (Particular Partnership)– 

                 विशेष कार्य या उद्देश्य के लिए स्थापित साझेदारी

4.       वैधता के अनुसार साझेदारी


A.      वैध साझेदारी (Legal Partnership)– 

                 प्रचलित नियमों के अनुसार स्थापित साझेदारी

B.      अवैध साझेदारी (Illegal Partnership)– 

                नियमों के विरुद्ध की गयी साझेदारी अवैध होती है. इसके निम्न कारण होते हैं.

1.       स्थापना का उद्देश्य गैरकानूनी हो

2.       साझेदारों की संख्या दो से कम हो जाए या 50 से अधिक हो जाए

3.       यदि व्यापर लोक नीति या अंतररास्ट्रीय नीति के विरुद्ध हो

4.       कोई साझेदार शत्रु देश का नागरिक हो



साझेदारी संलेख(Paartnership Deed)


भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 5 के अनुसार “ साझेदारी का जन्म अनुबध से होता है किसी स्थिति के कारण नहीं “. यह लिखित अनुबंध ही साझेदारी संलेख कहलाता है.

साझेदारी संलेख में सम्मिलित मदें (Contents of Partnership Deed)–


फर्म का नाम व पता
साझेदारों के नाम व पते
साझेदारी व्यवसाय की प्रकृति व कार्यक्षेत्र
लाभ विभाजन अनुपात
साझेदारों की पूँजी
पूँजी पर ब्याज के सम्बन्ध में प्रावधान
आहरण की राशि
आहरण पार ब्याज के सम्बन्ध में प्रावधान
फर्म की लेखा पुस्तकें रखने की विधि
साझेदारों को देय वेतन, बोनस कमीशन आदि
खातों का अंकेक्षण
साझेदारी की अवधि
साझेदारों के ऋण व उस पर ब्याज की दर
पूँजी खाता रखने की विधि
साझेदारों के अधिकार, कर्तव्य व दायित्व
विवादों के निपटारे की विधि
नए साझेदार के प्रवेश पर प्रावधान
नए साझेदार के प्रवेश , अवकाश ग्रहण करने, मृत्यु होने व लाभ विभाजन अनुपात में परिवर्तन होने ख्याति का मूल्यांकन व लेखांकन
किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने या मृत्यु पार हिसाब के निपटारे की विधि
फर्म के समापन की विधि व परिस्थिति
फर्म के समापन पर हिसाब के निपटारे की विधि
किसी साझेदार के दिवालिया होने पर गार्नर बनाम मर्रे नियम का प्रयोग


साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम(Rules Applicable in Absence of Partnership Deed)


लाभ विभाजन अनुपात – बराबर होगा
पूँजी पर ब्याज – नहीं दिया जाएगा
आहरण पर ब्याज – नहीं लिया जाएगा
साझेदारों को पारिश्रमिक (वेतन, कमीशन ) – नहीं दिया जाएगा
साझेदारों के ऋणों पर ब्याज – 6 % वार्षिक की दर से दिया जाएगा
प्रत्येक साझेदार को व्यापर संचालन व प्रबंध में हिस्सा लेने का अधिकार होगा
प्रत्येक साझेदार को फर्म की पुस्तकें देखने, निरीक्षण करने व प्रतिलिपि लेने का अधिकार होगा

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